छात्राओं और कामकाजी महिलाओं को पीरियड के दिनों में छुट्टी के लिए सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई गई है। इस याचिका में एक स्टडी के बारे में भी बताया है और मेंस्ट्रूअल लीव से जुड़ी हुई बात सुप्रीम कोर्ट में रखी गई है। तो चलिए जानते है इस याचिका के जुड़ी हुई सभी जानकारी के बारे में।
पीरियड में होने वाला दर्द
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा गया है कि महिलाओं को माहवारी के समय छुट्टी दी जाए। सुप्रीम कोर्ट में अदालत में एडवोकेट शैलेंद्र मणि त्रिपाठी ने यह याचिका दायर की है। इसमें कहा गया है कि महिला स्टूडेंट्स और कामकाजी महिलाओं को माहवारी के वक्त छुट्टी दी जानी चाहिए।
इस याचिका में यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन की एक स्टडी के बारे में भी बताया गया है। (2022 में सुप्रीम कोर्ट के इन फैसलों ने बदला देश का हाल, सशक्त नारी का रहा साल)आपको बता दें कि इस स्टडी में बताया गया है कि पीरियड के समय महिलाओं को काफी दर्द रहता है। स्टडी में यह भी कहा गया है कि दर्द की स्थिति यह होती है कि वह किसी आदमी के हार्ट अटैक में होने वाले दर्द के बराबर होता है। इस कारण कामकाजी महिलाओं के काम की क्षमता को प्रभावित करता है।
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कई कंपनियां देती हैं पीरियड लीव
याचिकाकर्ता ने यह भी बताया है कि ऐसी कई कंपनियां हैं जो पेड पीरियड लीव ऑफर करती हैं जैसे ईविपिनन, मैगस्टर, एआरसी आदि और महिलाओं का इससे वंचित रहना समानता के अधिकार का उल्लंघन भी है। याचिकाकर्ता ने कहा कि साल 2018 में शशि थरूर ने वूमेन्स सेक्सुअल रिप्रोडक्टिव एंड मेंस्ट्रुअल राइट्स बिल पेश किया था।
जिसमें कहा गया था कि महिलाओं को पब्लिक अथॉरिटी फ्री में सेनेटरी पैड आदि उपलब्ध कराए जाएं।(क्या हैं अबॉर्शन के कानूनी पेंच?) आपको बता दें कि याचिकाकर्ता ने यह बात भी सामने लाने की कोशिश की है कि पीरियड के समय छुट्टी के लिए कोई कानून नहीं है लेकिन यूके, वेल्स, चीन, जापान, इंडोनेशिया, साउथ कोरिया, स्पेन और जांबिया में माहवारी के लिए छुट्टी अलग-अलग नाम पर दी जाती है।
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आपको बता दें कि दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार को कहा था कि माहवारी छुट्टी के लिए दाखिल पीआईएल को रिप्रजेंटेशन के तौर पर देखा जाए। तब लोकसभा में केंद्रीय मंत्री ने लिखित जवाब में कहा था कि सेंट्रल सिविल सर्विसेज लीव रूल्स 1972 में मेंस्ट्रूअल लीव के लिए कोई प्रावधान नहीं है।
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image credit- freepik
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