भारत में सैलरी पाने वाले लोगों के लिए प्रोविडेंट फंड किसी गुल्लक की तरह है जिसमें न जाने कितना पैसा बचत के तौर पर सुरक्षित रहता है। प्रोविडेंट फंड का पैसा हमेशा ही एक खजाने जैसा माना जाता रहा है और हमें मां-पापा ने सिखाया भी यही है कि सबसे सुरक्षित पैसा यही है। पर क्या वाकई ऐसा है? दरअसल, 90's के समय में सबसे सुरक्षित पैसा सेविंग स्कीम्स में से एक यही मानी जाती थी। तब ज्यादा इन्वेस्टमेंट ऑप्शन नहीं थे और ऐसे में इसे ही सबसे बेस्ट माना जाता था।
ये उन गिने-चुने सेविंग ऑप्शन में से एक थी जिसमें इंट्रेस्ट पर भी टैक्स नहीं लगता था, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। पिछले साल ही ये नियम आया था कि प्रोविडेंट फंड में मिलने वाला इंट्रेस्ट अब टैक्सेबल होगा और 1 साल बाद 1 अप्रैल से टैक्स की गणना शुरू हो जाएगी। इसका फैसला बजट 2021 में लिया गया था और अब पिछले साल जिन लोगों का पीएफ योगदान तय सीमा से अधिक है उनके खातों को अलग किया जाएगा और फिर टैक्स की गणना शुरू होगी।
पर इससे क्या आम लोगों और आम टैक्सपेयर्स के पैसों पर कोई फर्क पड़ेगा और इसका सीधा सा मतलब क्या है चलिए जानते हैं विस्तार से।
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बदला हुआ नियम कहता है कि 1 अप्रैल 2022 से पीएफ अकाउंट्स दो तरह से डिवाइड कर दिए जाएंगे। एक टैक्सेबल और एक नॉन-टैक्सेबल।
ऐसे कर्मचारी जिनका पीएफ कॉन्ट्रिब्यूशन 2.5 लाख सालाना से ज्यादा है उन्हें मिलने वाले टैक्स पर इंटरेस्ट देना होगा। हालांकि, सरकारी कर्मचारियों के लिए ये छूट 5 लाख सालाना तक की है।
प्रोविडेंट फंड का ये बदलाव कितना असरदार होगा इसके बारे में जानने के लिए हमने इन्वेस्टमेंट, इंश्योरेंस, टैक्सेशन और फाइनेंशियल सर्विसेज की फील्ड में काम करने वाले जिगर शाह से बात की।
जिगर जी का कहना है कि, 'ये सिर्फ एम्प्लॉय कॉन्ट्रिब्यूशन के लिए है और एम्प्लॉयर का कॉन्ट्रीब्यूशन इसमें टैक्सेबल नहीं होगा। ये 2021 के बजट में ही टैक्स ब्रैकेट में आया है। ये खासतौर पर 2.50 लाख से ऊपर के कॉन्ट्रीब्यूशन के लिए ही है। इसका मतलब अगर आपकी सैलरी इतनी बढ़ी हुई है कि एम्प्लॉय कॉन्ट्रिब्यूशन न कि एम्प्लॉयर के कॉन्ट्रीब्यूशन को मिलाकर हुआ कॉन्ट्रीब्यूशन अगर 2.50 लाख से ऊपर होता है तो वो टैक्स ब्रैकेट के अंतर्गत आएगा।'
इसका सीधा मतलब ये है कि ऐसे लोग जिनकी सैलरी ज्यादा है उनपर इसका असर पड़ेगा।
आपको यहां समझना होगा कि एम्प्लॉयर कर्मचारी की बेसिक का 12% हिस्सा ईपीएफ में देता है और ऐसे ही 12% कर्मचारी की सैलरी से काटता है जिसे प्रोविडेंट फंड में जमा किया जाता है। तो इसका मतलब टैक्स सिर्फ 12% पर मिले इंट्रेस्ट पर लगेगा। एम्प्लॉयर के हिस्से का 8.33% एम्प्लॉय पेंशन स्कीम (EPS) में चला जाता है।
इस नियम को लागू करने के लिए नया सेक्शन 9D इनकम टैक्स रूल्स में लागू किया गया है।
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इसका मुख्यत: असर सिर्फ 1 प्रतिशत टैक्स पेयर्स पर होगा यानी वो सैलरी वाले कर्मचारी जिनकी सैलरी काफी ज्यादा है। अगर बेसिक के 12% के हिस्से को देखा जाए तो कई कर्मचारियों का मासिक योगदान 2-3 हज़ार से ज्यादा नहीं होता है। ऐसे में अगर 2.5 लाख की बात करें तो इसके हिस्से में ऐसे कर्मचारी आएंगे जिनका मासिक योगदान 19000 रुपए से ज्यादा हो और इसलिए मध्यमवर्गीय कर्मचारियों पर इसका असर ज्यादा नहीं होगा।
इसलिए अगर आपका पीएफ योगदान इतना नहीं है तो आपके अकाउंट पर इससे कोई असर नहीं पड़ेगा।
इस महीने प्रोविडेंट फंड से जुड़े बहुत सारे बदलाव देखने को मिले हैं। 2021-22 में मिलने वाला इंट्रेस्ट रेट अब 8.1 प्रतिशत हो जाएगा। ये पिछले 40 सालों में सबसे कम इंटरेस्ट रेट है। पिछले साल ये 8.5 प्रतिशत था।
ऐसी कोई भी फर्म जिसमें 20 कर्मचारियों से ज्यादा हैं और कर्मचारी 15000 रुपए प्रति माह से ज्यादा कमा रहे हैं उनके लिए ईपीएफ अकाउंट खोलना जरूरी होता है।
पीएफ के अलावा कई अन्य सरकारी स्कीम्स जैसे नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट, एफडी आदि पर भी इंट्रेस्ट पर टैक्स कटता है और इन स्कीम्स को काफी सुरक्षित माना जाता है। हालांकि, सुरक्षित होने के साथ-साथ इनमें इंट्रेस्ट रेट काफी कम होता है और अब सेविंग्स के लिए टैक्स सेविंग एसआईपी का ऑप्शन भी उपलब्ध है। वैसे तो ज्यादा इंट्रेस्ट रेट के लिए शेयर मार्केट का ऑप्शन भी है, लेकिन इसमें निवेश से पहले किसी जानकार से सलाह लेना ज्यादा बेहतर होगा।
आपके पैसों की सेविंग्स के लिए आप अलग-अलग ऑप्शन चुन सकते हैं। बेहतर होगा कि एक साथ बहुत सारा पैसा किसी भी स्कीम में निवेश करने से पहले किसी एक्सपर्ट की सलाह ले लें। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।
Image Source: Freepik, EPFO
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