बच्चों को अच्छी परवरिश देना हर माता-पिता के लिए चुनौती होती है। खासकर अगर बच्चा इकलौता हो तो यह चुनौती और भी बढ़ जाती है। इकलौते बच्चे के मामले में अक्सर माता-पिता कुछ ऐसी गलतियां कर देते हैं, जो बच्चे के विकास में बाधक हो सकती हैं और बच्चे के मानसिक एवं भावनात्मक विकास पर भी दुष्प्रभाव डालती हैं। तो चलिए इसी के साथ आर्टेमिस अस्पताल के मानसिक स्वास्थ्य और व्यवहार विज्ञान के प्रमुख मनोचिकित्सक व सलाहकार डॉ. राहुल चंडोक से जानते हैं कि ऐसी स्थिति में पैरेंट्स को किन गलतियों से बचना चाहिए।
पैरेंट्स का जरूरत से ज्यादा सुरक्षात्मक होना
इकलौते बच्चे के मामले में अक्सर देखने को मिलता है कि माता-पिता बहुत ज्यादा सुरक्षात्मक हो जाते हैं। बच्चे को हर खतरे से बचाने के नाम पर उन्हें बाहरी दुनिया में घुलने-मिलने ही नहीं दिया जाता है। यह सही नहीं है। बच्चे की सुरक्षा का ध्यान रखना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी है कि उन्हें बाहरी दुनिया का ज्ञान हो। ऐसा नहीं करने से बच्चे सामाजिक नहीं बन पाते हैं।
हर जिद पूरी करना
कई बार कुछ माता-पिता को कहते सुना जाता है कि हमारा जो है, वो सब बच्चे का ही तो है। अगर उसकी इच्छा भी पूरी न कर पाए तो क्या फायदा। यह सोच गलत है। इस सोच के कारण बहुत से माता-पिता बच्चे की हर जिद पूरी करते चले जाते हैं। कई बार उन्हें यह अंदाजा होता है कि बच्चा गलत चीज की जिद कर रहा है, लेकिन तब तक बच्चे का स्वभाव ऐसा बन चुका होता है कि उसे मना करना स्वयं माता-पिता के लिए संभव नहीं रह जाता।
सीमाओं का ध्यान न रखना
बच्चे को प्यार-दुलार देने के नाम पर कुछ माता-पिता अनुशासन की सीमा भूल जाते हैं। वे बच्चे के सामने अनुशासन की वह महीन लकीर भी नहीं खींच पाते हैं कि उसे बड़ों के साथ और अन्य लोगों के साथ कैसे पेश आना चाहिए। अगर ध्यान न दिया जाए तो ऐसे बच्चों में हिंसक प्रवृत्ति बढ़ने की आशंका रहती है। आगे चलकर यह स्वभाव सभी के लिए घातक सिद्ध होता है।
पर्याप्त समय न देना
बच्चों को पर्याप्त समय देना सबसे जरूरी है। इकलौते बच्चे के मामले में यह और भी आवश्यक हो जाता है, क्योंकि उसके पास अपनी भावनाओं को साझा करने के लिए कोई भाई या बहन नहीं है। कभी-कभी माता-पिता बच्चे की अच्छी परवरिश के चक्कर में पूरा समय बस ऑफिस और काम में बिता देते हैं। यह बच्चे के मानसिक विकास के लिए बहुत घातक है। अच्छी परवरिश का अर्थ केवल पैसा नहीं है।
इसे भी पढ़ें-बच्चों पर नहीं पड़ेगी चीखने की जरूरत, इन तरीकों से उनकी आदतों में ला सकते हैं सुधार
भावनाओं को दबाना
बच्चे को हमेशा खुश रखने के चक्कर में माता-पिता कई बार उसकी भावनाओं को दबाने का काम करते हैं। बच्चा किसी बात के लिए रोता है तो उसे समझाया जाता है कि इतनी सी बात के लिए नहीं रोना चाहिए। ऐसा करते-करते माता-पिता उसकी भावनाओं को सीमित करते चले जाते हैं। ऐसा न करें। अगर बच्चा किसी शोर से डर जाए तो उसे समझाएं कि ऐसी स्थिति में डरना स्वाभाविक है। साथ ही उसे उन तरीकों के बारे में बताएं, जिनसे वो अपने डर पर नियंत्रण पा सकता है। ऐसा करने से न केवल बच्चों की भावनाएं विकसित होती हैं, बल्कि वे अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना भी सीखते हैं।
इसे भी पढ़ें-2 से 5 साल के बच्चों को डिसिप्लिन सिखाने का ये है बेस्ट तरीका, डांटने की नहीं पड़ेगी जरूरत
परफेक्ट होने की उम्मीद करना
कभी-कभी बच्चे से परफेक्ट होने की उम्मीद करना भी उस पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। कुछ माता-पिता सोचते हैं कि वह अपने बच्चे की खुशी के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं, तो बच्चे को भी उनकी उम्मीदों पर खरा उतरना चाहिए। कई बार ये उम्मीदें करियर से जुड़ी भी होती हैं। इसमें इस बात की अनदेखी हो जाती है कि बच्चा स्वयं क्या चाहता है। माता-पिता उसे ऐसे काम में परफेक्ट देखना चाहते है, जिसमें शायद उसकी रुचि नहीं होती। ऐसी स्थिति में या तो बच्चा कुंठित हो जाता है या फिर वह माता-पिता के प्रति असम्मान की भावना से भर जाता है।
इसे भी पढ़ें-3 से 7 साल के बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए जरूरी हैं ये 6 बातें
इस आर्टिकल के बारे में अपनी राय भी आप हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। साथ ही,अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हर जिन्दगी के साथ
आपकी राय हमारे लिए महत्वपूर्ण है! हमारे इस रीडर सर्वे को भरने के लिए थोड़ा समय जरूर निकालें। इससे हमें आपकी प्राथमिकताओं को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी। यहां क्लिक करें
Image credit- Herzindagi
HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों