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Shardiya Navratri 2021 Day 4 : घर में ही रह कर करें कुष्मांडा देवी की पूजा, जानें शुभ मुहूर्त

पंडित जी से जानिए कि देवी दुर्गा के चौथे स्वरूप कुष्मांडा देवी की पूजा विधि क्या है। 
Editorial
Updated:- 2021-10-09, 17:00 IST

नवरात्रि के चौथे दिन देवी के कुष्मांडा स्वरूप की पूजा की जाती है। यह देवी जी का चौथा स्‍वरूप है। देवी जी के इस स्‍वरूप का संबंध सूर्य से है। आप नवरात्रि के चौथे दिन देवी कुष्‍मांडा की पूजा करते हैं तो आपकी कुंडली में अगर सूर्य ग्रह से मिलने वाली पीड़ाएं लिखी हैं, तो वह दूर हो जाएंगी। इस वर्ष नवरात्रि के तीसरे ही दिन देवी चंद्रघंटा के साथ देवी कुष्‍मांडा की पूजा की जाएगी, क्‍योंकि इस बार नवरात्रि 8 दिन की ही पड़ रही है।

इतना ही नहीं देवी कुष्‍मांडा की पूजा करने से समाज में आपका मान-सम्‍मान बढ़ेगा। देवी कुष्‍मांडा की अराधना से आपकी आर्थिक परेशानियां भी दूर हो जाएंगी। अगर आप देवी जी के इस चौथे स्‍वरूप की अराधना करती हैं तो आपको या आपके परिवार में किसी को भी यदि कोई जटिल रोग है वह दूर हो जाता है। देवी के इस रूप की कृपा से निर्णंय लेने की क्षमता में वृद्धि एवं मानसिक शक्ति अच्छी रहती हैं।

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शुभ मुहूर्त

देवी कुष्मांडाकी पूजा करने का शुभ मुहूर्त 9 अक्‍टूबर शाम 4 बजकर 35 मिनट से शाम 5 बजकर 59 मिनट तक।

शुभ रंग- लाल रंग

कैसे करें देवी जी को प्रसन्‍न

अगर आप नवरात्रि के चौथे दिन देवी कुष्‍मांडा को मालपुआ का भोग लगाती हैं और‍फिर उस प्रसाद को बच्‍चों में वितरित करती हैं तो आपको पुण्‍य प्राप्‍त होता है। वहीं देवी प्रसन्‍न हो कर आपको इस पुण्‍य का फल भी देती हैं।

कूष्माण्डा का संस्कृत में अर्थ होता है लौकी,कद्दू। कई बार मजाक में हम लोगों को लौकी या कद्दू पुकार देते हैं। इससे सामने वाले को क्रोध भी आ जाता है। मगर इस पर आपको क्रोध करने की जरूरत नहीं है।अतः यहाँ इसका अर्थ प्राणशक्ति से है - वह प्राणशक्ति जो पूर्ण, एक गोलाकार, वृत्त की भांति। देवी कुष्‍मांडा की पूजा के दौरान इस मंत्र का जरूर उच्‍चारण करें।

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Navratri Day Four Kushmanda Devi

ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥

या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥


क्‍या कहते हैं पंडित जी

पंडित दयानंद शास्‍त्री बताते हैं, ‘संतान की इच्छा रखने वाले लोगों को देवी के इस स्वरूप की पूजा जरूर करनी चाहिए। देवी जी का यह स्‍वरूप देवी पार्वती के विवाह से लेकर भगवान कार्तिकेय को संतान के स्‍वरूप में प्राप्‍त करने तक का है। देवी जी का यह स्‍वरूप हमेशा मुस्‍कुराता रहता है। ऐसा कहा जाता है कि देवी जी की मुस्‍कुराहत से ही इस सृष्‍टी की रचना हुई थीं। ’

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