गुजरात का सोमनाथ मंदिर पूरे विश्व में मशहूर है। इस मंदिर को देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं और भगवान शिव के इस धाम की खूबसूरती का आनंद भी लेते हैं। समुद्र के किनारे बसा यह मंदिर बहुत ही खूबसूरत है। गुजरात के प्रभास पट्टन में स्थित सोमनाथ मंदिर को लेकर यह कहा जाता है कि यह मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहला था। इस मंदिर को इतिहास में कई बार तोड़ा गया और दोबारा बनाया गया।
इस मंदिर का इतिहास भी खून से लिखा हुआ है और इससे जुड़ी कई कहानियां भी हैं।
सबको लगता है कि सोमनाथ मंदिर को सबसे पहले महमूद गजनवी ने ध्वस्त करने की कोशिश की थी, लेकिन ऐसा नहीं है। इस मंदिर के अस्तित्व ईसा पूर्व में भी मिलते हैं। इसके बाद सातवीं सदी में वल्लभी (गुजरात का एक ऐतिहासिक नगर) के राजाओं ने इसका निर्माण करवाया। आठवीं सदी में सिंध के एक अरबी गवर्नर जुनायद ने अपनी सेना भेज इसे ध्वस्त करवाया।
इसके बाद 815 ईस्वी में गुर्जर प्रतिहार राजा नागभट्ट ने इसका पुनर्निमाण करवाया था। उस वक्त मंदिर इतना विशाल और समृद्ध था कि इसके बारे में दूर-दूर तक बातें होती थीं।
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उस समय अरब यात्री अल-बरुनी भी इस जगह आया। इस यात्रा के बाद उसने एक किताब में इसकी ख्याती लिखी। इसके बाद महमूद गजनवी को पता चला कि गुजरात में एक ऐसा मंदिर है जिसमें सोने-चांदी की मूर्तियां हैं, जहां शिवलिंग हवा में उड़ता है और जहां संपत्ति भरी हुई है। इसके बाद 1025 में गजनवी अपनी असंख्य सेना के साथ यहां आ पहुंचा। जिस समय वह यहां आया मंदिर में पूजा चल रही थी। दावा किया जाता है कि इस दौरान कुछ 50 हजार लोग इस मंदिर के अंदर हाथ जोड़कर खड़े रहे और पूजा अर्चना कर रहे थे। सभी पर सेना ने आक्रमण कर दिया।
माना जाता है कि सोमनाथ के मंदिर के अंदर जो शिवलिंग है उसके अंदर भगवान कृष्ण की स्यमंतक मणि छुपाई गई है। माना जाता है कि इस मणि को जो भी चीज छूती है वह सोना बन जाती है। माना जाता है कि इस मणि के अंदर ही ऐसी ताकत थी जिसके कारण वह शिवलिंग हवा में तैरता रहता था और जब महमूद गजनवी आया था तब वह हवा में उड़ते शिवलिंग को देखकर डर गया था जिसके कारण उसने अपने सैनिकों को कहा था कि वह शिवलिंग को तोड़ दो।
कुछ का मानना है कि शिवलिंग के ऊपर और नीचे कुछ ऐसे पत्थर लगे हुए थे जिससे एक मैग्नेटिक फील्ड बनती थी जिसके कारण ही शिवलिंग हवा में उड़ता था। बात जो भी हो, यह दावा किया जाता है कि जब गजनवी आया था तब सोमनाथ मंदिर का शिवलिंग हवा में उड़ा करता था।
सोमनाथ को सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि सोमनाथ मंदिर असल में चंद्रदेव ने बनवाया था। उन्होंने दक्ष प्रजापति की 27 पुत्रियों से शादी की थी, लेकिन वह रोहिणी को सबसे ज्यादा प्यार करते थे। इससे खफा होकर दक्ष प्रजापति ने चंद्र देव यानी सोम को श्राप दिया था कि उनका तेज धीरे-धीरे कम हो जाए। इस श्राप से दुखी होकर सोम ने शिव जी की पूजा की और शिव ने उन्हें वरदान दिया कि कम हुआ तेज धीरे-धीरे करके वापस आ जाएगा। इसलिए ही अमावस और पूर्णिमा का जन्म हुआ। ऐसे में चंद्रदेव ने सोमनाथ शिवलिंग की स्थापना की।
श्रीमद भगवत गीता, स्कंद पुराण, शिव पुराण, ऋग्वेद सभी में सोमनाथ मंदिर का जिक्र है। इसलिए ही इसका असल इतिहास किसी को नहीं पता और ना ही इस बात का पता है कि इसे कब बनाया गया था।
सिर्फ महमूद गजनवी (सन 1024) ही नहीं, खिलजी की सेना (सन 1296), मुजफ्फर शाह (सन 1375), महमूद बेगदा (सन 1451) और औरंगजेब (1665) में सोमनाथ मंदिर को तबाह किया, लेकिन हर बार इसे दोबारा बनाया गया।
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सोमनाथ का बाण स्तंभ भी छठी शताब्दी से वहां मौजूद है। इसका जिक्र कुछ किताबों में भी किया गया है। असल में इस स्तंभ के ऊपर लिखा है- 'आसमुद्रांत दक्षिण ध्रुव, पर्यंत अबाधित ज्योतिर्मार्ग' यानी इस बिंदु से दक्षिणी ध्रुव तक सीधी रेखा है।
इसका मतलब जहां यह स्तंभ मौजूद है वहां से लेकर साउथ पोल तक सीधी लाइन खींची जा सकती है। उसके बीच में ना तो कोई पहाड़ है और ना ही कोई जमीन। अब छठी शताब्दी में बना यह स्तंभ उस वक्त कैसे बनाया गया और उस वक्त ऐसी तकनीक कैसे थी जो आज किसी बड़े रडार या अंतरिक्ष में घूमते सैटेलाइट्स के जरिए ही मिल सकता है।
सोमनाथ मंदिर को लेकर ऐसी कई कहानियां हैं जिनके बारे में अभी भी लोगों को नहीं पता। क्या आप भी ऐसा कोई रहस्य जानना चाहती हैं? हमें अपने जवाब कमेंट बॉक्स में दें और हम अपनी स्टोरीज के जरिए आप तक उसके बारे में पहुंचाने की कोशिश करेंगे।
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Image Credit: Quora/ Trawell/ wikipedia/
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