मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है। यह शोक और स्मरण का महीना होता है। इस महीने में, मुसलमान हज़रत इमाम हुसैन और उनके परिवार की शहादत को याद करते हैं, जो 680 ईस्वी में कर्बला की लड़ाई में हुए थे।
साल 2024 में मुहर्रम का पहला दिन रविवार, 7 जुलाई से शुरू हो गया है। इस दिन यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, अमेरिका, सऊदी अरब, यूएई, कतर, कुवैत, ओमान, इराक, बहरीन, और भारत के साथ-साथ दूसरे अरब देशों के मुसलमानों ने नए इस्लामिक साल 1446 एएच यानी हिजरी की शुरुआत मनाई गई है। इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक, भारत में इस्लामी नया साल 1446, 8 जुलाई से शुरू हो चुका है।
कब मनाया जाएगा मुहर्रम?
इस्लामिक कैलेंडर के आखिरी महीने जिलहिज्जा 1445 का आखिरी दिन 7 जुलाई को था। हालांकि, 6 जुलाई को मगरिब के बाद चांद नहीं देखा गया था, इसलिए 7 जुलाई को जुल हिज्जा का आखिरी दिन माना गया था। वहीं, मुहर्रम के 10वें दिन यानी 17 जुलाई को आशूरा मनाया जाएगा। इसके अलावा यह भी माना जाता है कि मुहर्रम को बकरीद के 20 दिन बाद मनाया जाता है। जबकि, इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने मुहर्रम को शिया मुस्लिम गम के तौर पर मनाते हैं। इस महीने में शिया मुस्लिम पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की शहादत की याद में मातम मनाते हैं।
इस दिन शिया मुस्लिम ये काम करते हैं
- मजलिस यानी कथा का आयोजन करते हैं
- शोक और दुख के प्रतीक के रूप में काले कपड़े पहनते हैं
- हुसैन के जीवन से सबक लेने के अवसर के रूप में देखते हैं
- किसी अन्य की शादी या खुशी के किसी मौके पर भी शरीक नहीं होते
- शिया महिलाएं और लड़कियां पूरे 2 महीने 8 दिन के लिए सभी श्रृंगार की चीजों से दूरी बना लेती हैं।
- मातम यानी सीना पीटते हैं
- हुसैन पर हुए ज़ुल्म को याद करके अश्क बहाते हैं।
मुहर्रम के महीने को बेहद पवित्र मानते हैं
इराक के करबला में सन 61 हिजरी में आखिरी नबी पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन को उनके 71 साथियों के साथ कर्बला के मैदान में तीन दिन का भूखा और प्यासा शहीद कर दिया गया था। इसी की याद में मुहर्रम को मनाया जाता है।
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इस्लाम धर्म के लोग मुहर्रम के महीने को बेहद पवित्र मानते हैं। मुहर्रम शब्द का मतलब है 'अनुमति नहीं होना' या 'निषिद्ध' है। मुहर्रम की 10वीं तारीख को रोज-ए-आशूरा कहा जाता है। इस दिन भारतीय उपमहाद्वीप में ताजियादारी की जाती है। सुन्नी मुसलमान इस मौके पर इमाम हुसैन के इराक के कर्बला स्थित मकबरे की आकृति की बांस की खिम्चियों और चमकीले पेपर से बनी ताजिया निकालते हैं।
मुहर्रम और आशूरा का क्या है महत्व
इस्लाम धर्म के लोगों के लिए मुहर्रम का महीना और उसका दसवां दिन आशूरा बहुत अहम होता है। इस्लामी मान्यताओं के मुताबिक, इसी दिन साल 61 हिजरी में इराक के कर्बला के मैदान में पैगंबर मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन और उनके 71 साथियों को तीन दिन तक भूखा और प्यासा रहने के बाद शहीद कर दिया गया था। इसी की याद में मुहर्रम के महीने के दसवें दिन को आशूरा के नाम से जाना जाता है और मातम के तौर पर मनाया जाता है।
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हजरत इमाम हुसैन, पैगंबर मुहम्मद की बेटी फातिमा और दामाद अली के पोते थे। हजरत अली, शियाओं के पहले इमाम और सुन्नी रशीदुन खलीफाओं में चौथे थे। हजरत इमाम हुसैन का जन्म जनवरी 626 को मदीना, अरब (जो अब सऊदी अरब के तौर पर जाना जाता है) में हुआ था और उनका निधन 10 अक्टूबर 680 को कर्बला, इराक में हुआ था। शिया इस्लाम में हजरत इमाम हुसैन एक नायक थे। मोहर्रम के महीने की 10 तारीख को रोज-ए-आशुरा (Day Of Ashura) कहा जाता है।
आशूरा शब्द अरामी भाषा का है जिसका मतलब है 'दसवां'। यह सीरियाई शब्दों असिरोया या असोरा से भी लिया गया हो सकता है। अरबी में, आशूरा का मतलब इस्लामी कैलेंडर के पहले महीने मुहर्रम के दसवें दिन से है। इस महीने में इस्लाम के आगमन से पहले से ही लड़ाई करना मना है। पैगंबर मोहम्मद ने मुहर्रम को 'अल्लाह का पवित्र महीना' कहा है और 'मुहर्रम' शब्द का मतलब ही 'निषिद्ध' है। इसका मतलब है कि इस पवित्र महीने में इसकी पवित्रता को बनाए रखने के लिए कुछ भी अनचाहे काम करने की मनाही है।
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