कुछ दिनों पहले हॉलीवुड एक्ट्रेस एलिसा मिलानो ने हॉलीवुड डायरेक्टर Harvey Weinstein और यौन उत्पीड़नों के खिलाफ सोशल मीडिया पर बोलने के बाद #Metoo नाम से एक कैंपेन पर चलाया जिसे पूरी दुनिया में सपोर्ट किया जा रहा है। इस कैंपेन का मकसद है कि दुनिया में जितनी भी महिलाएं यौन शोषण का शिकार हुईं हैं वो खुल कर यहां अपने बारे में बता सकें। आपको शायद हैरानी हो लेकिन एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर पांच मिनट में एक महिला छेड़छाड़ का शिकार होती है। अब तो भारतीय महिलाएं भी अपने साथ हुए सेक्सुअल हैरेसमेंट के बारे में खुल के सामने आ रही हैं। इस कैंपेन में अपनी बात रखते हुए महिलाओं ने बताया कि कैसे उन्हें मंदिरों में भी नहीं बख्शा गया और कैसे आते-जातें हमेशा छेड़छाड़ का शिकार होना आए दिन की बात है।
चंदना भौमिक लिखती हैं, "मैं दस कजिन्स के साथ बड़ी हुई हूं जिनमें लड़के भी थे। हमलोगों के साथ हमेशा एक जैसा बर्ताव किया जाता था। लेकिन इसका अहसास मुझे तब हुआ जब पांच साल की उम्र में मेरे एक रिश्तेदार ने गलत तरीके से मेरे सीने पर हाथ फेरा था। उसके बाद एक बार जब मैं टीनेज में थी तब तिरुपति मंदिर में किसी ने मेरे पीछे के अंग को टटोला था जबकि मैंने पूरे कपड़े पहने थे। इसके बाद एक बार इंटर्नशिप में मेरे मार्केटिंग हेड ने मुझसे बॉडी शेयर करने के लिए कहा था जिससे वो अपनी क्रिएटीविटी दिखा सकें। मेरे एक्स हज़बैंड ने मेरा रेप किया था। ऑफिस के कलीग्स मुझे गंदे-गंदे मैसेजेस भेजते थे। और जब इसके खिलाफ मैंने आवाज उठाई तो मुझे फेमिनिस्ट और ना जाने क्या-क्या कहा गया।"
केरल की निम्मी एलिजाबेथ लिखती हैं कि "मैं छह साल तक भारत में रही हूं। उस समय मैं चौथी क्लास में थी। मेरे क्लास का मॉनिटर सबसे आखिर में निकलता था। इसका एहसास मुझे बाद में हुआ कि वह ऐसा क्यों करता था। इंटरवल के समय हमारे स्कूल का मलयाली चपरासी गंदे तरीके से छात्रों ते कपड़ों में हाथ टटोलता था। यह घटना बहुत पुरानी है और इसे सामने लाकर मैं स्कूल का नाम खराब नहीं करना चाहती। केवल ये बताना चाहती हूं कि जगह सुनसान हो या खास, गलत हरकतें हर जगह होती हैं।"
पूर्वी दिल्ली की रहने वाली वैशाली खुलबे बताती हैं कि "वे जब 4-5 साल की थीं, तब वे यौन उत्पीड़न का शिकार हुई थीं। बस, मेट्रो, क्लब, रोड या चाहे घर हो, महिलाओं का शोषण हर जगह किया जाता है। पुरुष पब्लिक प्लेसेस में मास्टरबेट करते हैं। भीड़ का फायदा उठाते हुए कपड़ों में हाथ डालने की कोशिश करते हैं या किसी बहाने छूने की कोशिश करते हैं। कई बार तो पीछा भी करते हैं।"
रेवती गणेश लिखती हैं, "यह मेरी 13 साल की उम्र में शुरु हुआ था औऱ इसका एहसास मुझे तब हुआ जब मैंने देखा की एक व्यक्ति मुझे घुटने से छू रहा है और इसके बाद मैं इस बारे में घर पहुंचकर सोची। पिछले दो साल से तो मुझे ऐसी कोई घटना का सामना नहीं करना पड़ा क्योंकि मैं दो सालों से भारत में नहीं रह रही हूं। यह दुखी करने वाला है लेकिन सच है।"
अभी तो ये शुरुआत... इससे भी कड़वे अनुभव आने बाकी हैं।
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