हिंदी के ऐसे कई मुहावरे और वाक्य होते हैं जिन्हें हम रोजाना इस्तेमाल करते हैं, लेकिन इनका मतलब नहीं जानते। नहीं-नहीं मैं ये नहीं कह रही कि आपको हिंदी नहीं आती है मैं तो बस बता रही हूं कि अधिकतर लोगों के साथ ऐसा होता है। मुहावरों का मतलब जानने के बाद भी उनके पीछे की कहानी जानने की कोशिश नहीं करते। ऐसा ही एक मुहावरा है 'बहती गंगा में हाथ धोना'।
अब आप सोच रहे होंगे कि ये कहावत तो हम बचपन से ही कहते आ रहे हैं और आखिर क्यों हिंदी की कक्षा को लेकर यहां ज्ञान दिया जा रहा है, लेकिन हम आज ये समझने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर इस मुहावरे में गंगा नदी का नाम ही क्यों लिया गया?
देखिए मुहावरों की कोई तय डेटलाइन तो होती नहीं है कि ये पता लगाया जा सके कि इन्हें सबसे पहले किसने बोला है। पर हां इस बारे में चर्चा जरूर की जा सकती है कि आखिर इसे क्यों बोला जाता है।
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क्या है इसका मतलब?
अब इसका मतलब तो आपको पता ही होगा, लेकिन फिर भी एक बार हिंदी रिवीजन के लिए हम फिर से बता देते हैं कि इसका मतलब क्या है। 'बहती गंगा में हाथ धोना' मुहावरे का मतलब है कि किसी अवसर का लाभ उठा लेना। ये ठीक वैसा ही है जैसे किसी अंजानी शादी में आप जाकर खाना खा लिया जाए यानी किसी के खर्च पर आपका फायदा हो जाए।
चलिए मतलब तो बता दिया, लेकिन अब अहम मुद्दा कि आखिर गंगा ही क्यों? गंगा नदी दुनिया की सबसे बड़ी नदी नहीं है, ये तो भारत की सबसे बड़ी नदी भी नहीं है, लेकिन फिर गंगा का ही इस्तेमाल इस मुहावरे में क्यों?
बहती गंगा में हाथ धोना मुहावरे से जुड़ी कहानी
इस मुहावरे के उद्गम को लेकर एक कहानी प्रचलित है जिसके बारे में शायद ज्यादा लोग ना जानते हों। प्राचीन समय में किसी नगर में रामलाल नामक एक व्यक्ति रहता था और उस दौरान अस्थियां विसर्जित कर गंगा नदी के किनारे पिंडदान करने की प्रथा का महत्व बहुत ही ज्यादा था। पर उस समय कोई वाहन आदि प्रचलन में नहीं थे तो या तो लोग घोड़ा गाड़ी या बैलगाड़ी से सफर करते थे या फिर पैदल ही निकल जाते थे।
जब रामलाल की पत्नी मरी तो उसका पिंडदान किसी वजह से नहीं हो पाया, इसके बाद जब रामलाल खुद मरा तब उसका पिंडदान उसकी पत्नी के साथ करवाने के लिए उसके बेटे गांव से निकल पड़े। तब गांव वालों ने अपने-अपने घरों के मृत लोगों का पिंडदान करवाने के लिए भी उन्हें कहा और कुछ लोग साथ हो लिए तो कुछ ने आर्थिक सहायता की। ऐसा करते-करते एक पंडित भी गांव से उनके साथ ही चल दिया ताकि कोई उन्हें गंगा नदी के किनारे चूना ना लगा सके।
इसके बाद पूरा कुनबा दो दिन की यात्रा कर गंगा घाट पहुंचा और वहां पर सभी का पिंडदान हुआ। आत्माओं की शांति के साथ-साथ पंडित ने लोगों के पापों के निवारण के लिए गंगा स्नान की विधि भी करवा दी और उसके बाद आखिर में पूछा कि अब मेरे हाथ धोने का रास्ता भी बता दें। पंडित का मतलब था कि पैसों से जुड़ी बात साफ कर दीजिए और इसी बीच किसी ने कहा कि पंडित जी आप भी बहती गंगा में हाथ धो लीजिए। पंडित को एक साथ कई सारे लोगों की पूजा विधि का पैसा भी मिला और पूरे गांव के मृत व्यक्तियों का पिंडदान भी हो गया। उसके बाद से ये मुहावरा प्रचलित हो गया।
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गंगा नदी का ही क्यों इस्तेमाल किया जाता है मुहावरे में?
ये तो थी बच्चों को सिखाई जाने वाली दादी-नानी की कहानी। पर मेरा सवाल तो अभी भी यही है कि आखिर गंगा नदी का ही नाम क्यों लिया गया?
गंगा नदी भारत की सबसे बड़ी नदी ना होते हुए भी दुनिया की सबसे फेमस नदियों में से एक है। इस बात पर तो आप यकीन करेंगे ही कि गंगा स्नान का महत्व पूरे विश्व में माना जाता है। संक्रांति हो या फिर एकादशी, किसी का श्राद्ध हो या फिर कार्तिक का महीना हर हिंदू त्यौहार या विशेष दिन पर गंगा नदी को ही महत्व दिया जाता है। इस तरह से देखें तो गंगा का स्नान ही सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। गंगा नदी भले ही पवित्र मानी जाती है, लेकिन इस नदी के साथ हम क्या-क्या करते हैं ये तो पता ही है।
बहती गंगा में कचरा फेंका जाता है, बहती गंगा में स्नान किसी खास दिन ही नहीं बल्कि रोजाना किया जाता है, बहती हुई गंगा में ही कपड़े भी धो दिए जाते हैं, बहती हुई गंगा में लोगों के घरों का गंदा पानी भी फेंक दिया जाता है, बहती गंगा में अस्थियां ही नहीं बल्कि डेड बॉडी भी फेंक दी जाती है और बहती हुई गंगा में कई लोग अपने घरों के बर्तन भी धो देते हैं। ये बात उन लोगों को बहुत अच्छे से पता होगी जिनका घर गंगा किनारे है।
गंगोत्री से निकली पावन गंगा कोलकता जाते-जाते इतनी मैली हो जाती है कि उसमें कचरा भी फेंक दिया जाता है। तो फिर बहती गंगा में हाथ धोना ही कहा जाएगा ना? ईमानदारी से हमें इस मुहावरे का इस्तेमाल जितना करना हो करें, लेकिन गंगा नदी के पानी को थोड़ा पवित्र कर दें। उसमें कचरा फेंकना बंद कर दें।
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