आजकल अपनी फाइनेंशियल जरूरतों को पूरा करने के लिए लोग बैंक से लोन लेना सही समझते हैं और बैंक भी आसानी से लोन दे देते हैं। हाल ही में RBI ने रेपो रेट में बड़ी कटौती करते हुए 50 बेसिस पॉइंट्स घटाया, जिससे ब्याज दर 6% से कम होकर 5.5% हो गई है। हम सभी जानते हैं कि रेपो रेट कम होने पर आपके लोन की EMI भी सस्ती हो जाती है। लेकिन इसके लिए आपको सही लोन टाइप का चुनाव करना जरूरी होता है। भारत की सभी बैंक दो तरह के फ्लोटिंग रेट लोन ऑफर करते हैं। पहला MCLR (Marginal Cost of Funds-based Lending Rate) और दूसरा EBLR (External Benchmark Lending Rate), जहां ब्याज दर समय-समयपर बदलती रहती है। अगर आपको समझना है कि आपके लोन की EMI कब कम होगी और लोन कब सस्ते होंगे, तो इसके लिए आपको सबसे पहले EBLR और MCLR लोन के प्रकार को समझना होगा।
MCLR क्या है?
इसका पूरा मतलब होता है Marginal Cost of Funds Based Lending Rate। यह भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा लागू की गई एक प्रणाली है, जिसके जरिए बैंक तय करता है कि वह लोन कितने ब्याज पर वसूलेगा। भारत में इस प्रणाली की शुरुआत 1 अप्रैल 2016 से हुई थी और इसका उद्देश्य लोन की ब्याज दर तय करने में ट्रांसपैरेंसी लाना, कस्टमर्स को सस्ते और सुविधाजनक लोन देना और RBI की नीतियों का असर सीधा लोगों तक पहुंचाना।
MCLR वह न्यूनतम ब्याज दर होती है जिससे नीचे जाकर कोई भी बैंक लोन नहीं दे सकता। 2016 से पहले बैंक Base Rate नाम की प्रणाली से लोन देते हैं लेकिन अब बैंक MCLR का इस्तेमाल करके लोन देते हैं।
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MCLR का कैलुकेशन कैसे किया जाता है?
MCLR को तय करने के लिए बैंक कई बातों का ध्यान रखता है।
- बैंक की फंडिंग की लागत
- ऑपरेटिंग खर्च
- लोन की अवधि के हिसाब से प्रीमियम
- भारतीय रिजर्व बैंक में जमा रकम रखने की लागत
लोन दर कैसे तय होती है?
आमतौर पर बैंक MCLR को बेस बनाकर उस पर एक स्प्रेड जोड़ता है और फिर आपका लोन रेट तय होता है। उदाहरण के तौर पर अगर 1 साल का MCLR 8.5 फीसदी है और स्प्रेड 0.5 फीसदी है, तो आपका लोन रेट 9 फीसदी होगा।
बदलाव कितनी जल्दी होता है?
आपको बता दें कि अगर भारतीय रिजर्व बैंक रेपो रेट कम करता है, तो तुरंत MCLR पर आधारित लोन में दरें तुरंत नहीं बदलती हैं। आमतौर पर लोन को 6 महीने या 1 साल के MCLR से जोड़ा जाता है यानी ब्याज दरों में बदलाव तभी होता है, जब आपकी लोन की रीसेट डेट आती है। इस वजह से कस्टमर को अपनी EMI कम होने का इंतजार करना पड़ता है और इसका फायदा उसे तुरंत नहीं मिल पाता है।
फिर EBLR क्यों लाया गया?
भारत सरकार ने अक्तूबर 2019 में एक नई प्रणाली की शुरुआत की जिसे EBLR (External Benchmark Lending Rate) कहा जाता है। इसमें ब्याज दरें सीधे RBI की रेपो रेट से जुड़ी होती है और रेपो रेट कम होने पर EMI में बदलाव तेजी से दिखता है।
EBLR क्या होता है?
EBLR का मतलब है External Benchmark Lending Rate, जिसमें आपको लोन सीधा बाहरी ब्याज दरों से जुड़ा होता है।
EBLR का क्या फायदा होता है?
जब भारतीय रिजर्व बैंक रेपो रेट घटाता है, तो EBLR से जुड़े लोन भी सस्ते हो जाते हैं और EMI भी जल्दी घट जाती है। इसमें बैंक की अपनी लागत का कोई सीधा रोल नहीं होता है, इसलिए यह सिस्टम MCLR से ज्यादा तेज और पारदर्शी होता है।
मेरा लोन EBLR से जुड़ा है या MCLR से कैसे पता करें?
आपको लोन स्टेटमेंट को ध्यान से पढ़ना होगा, जिसमें लिखा होगा कि आपकी ब्याज दर किसी टाइप से जुड़ी हुई है यानी MCLR या EBLR। आप बैंक को कॉल करके या ब्रांच में जाकर पूछ सकते हैं।
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क्या मैं MCLR से EBLR पर स्विच कर सकती हूं?
जी हां, आप MCLR आधारित होम लोन को EBLR में बदलवा सकती है और सभी बैंक यह सुविधा देते हैं। आपको बस एक हाथ से लिखी हुई रिक्वेस्ट देनी होगी।बैंक एक छोटा सा प्रोसेसिंग चार्ज ले सकता है। फिर आपका लोन नई प्रणाली के तहत EBLR में शिफ्ट कर दिया जाएगा।
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