9 अप्रैल 2025 को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अपनी मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक में रेपो रेट को 25 बेसिस प्वाइंट (0.25%) घटाकर 6.00% कर दिया है। यह लगातार दूसरी बार है जब RBI ने रेपो रेट में कटौती की है। इससे पहले फरवरी 2025 में भी 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती की गई थी। इस कटौती का उद्देश्य ट्रंप टैरिफ नीति के बीच भारत में आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना है। ऐसा करने से महंगाई को नियंत्रित रखते हुए आर्थिक वृद्धि को समर्थन दिया जाना है।
इस बीच चलिए जानते हैं कि भारत में रेपो रेट की शुरुआत कब हुई थी और किस साल ब्याज दर सबसे ज्यादा बढ़ाई गई और किस साल सबसे ज्यादा घटाई गई?
रेपो रेट की शुरुआत कब हुई थी?(Repo Rate History In India)
रेपो रेट से पहले RBI बैंक रेट का इस्तेमाल करता था, यानी वह दर जिस पर RBI बैंकों को लॉन्ग-टर्म लोन देता था। लेकिन समय के साथ RBI ने रेपो रेट और रिवर्स रेपो को इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। रेपो रेट को पहली बार भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने 1992 में पेश किया था। उस दौरान, डॉ. मनमोहन सिंह देश के वित्त मंत्री थे। उस समय भारत की अर्थव्यवस्था को सुधारने की कोशिश की जा रही थी। इसलिए पैसों से जुड़े नियमों को आसान और बाजार के हिसाब से बनाया जा रहा था। इसी कारण रेपो रेट जैसे नए तरीकों को अपनाया गया।
इसे भी पढ़ें- RBI ने रेपो रेट में की कटौती, जानिए क्या होता है यह और इसका क्या पड़ेगा मिडिल क्लास की जेब पर असर
भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो रेट को पहली बार कब पेश किया था?(When Did Repo Rate Start In India)
- 1992 में इसकी नींव रखी गई थी, लेकिन RBI ने अपनी मौद्रिक नीति में 2000 से रेपो रेट का नियमित रूप से इस्तेमाल शुरू किया। उस समय इसे 6% पर तय किया गया था। फिर, 2004 में रेपो रेट को घटाकर 4.5% कर दिया गया और यह ब्याज दर करीब 2006 तक स्थिर रही।
- ई-फाइल टैक्स (e-Filing Tax) की रिपोर्ट के अनुसार, 2006 में बढ़ती महंगाई के चलते RBI ने रेपो रेट को बढ़ाकर 7.75% कर दिया, जो कि 2008 तक स्थिर रही। इसके बाद इसे कम करके 6.5% किया गया।
- 2008 में जब Global Financial Crisis का असर पूरी दुनिया पर पड़ा, तो RBI ने घरेलू अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए रेपो रेट में कटौती शुरू कर दी। फिर, 2013 में RBI ने रेपो रेट को बढ़ाकर 8% कर दिया और यह दर 2015 तक बनी रही।
- 2015 में, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने देश की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए रेपो रेट को 7.25% तक घटा दिया। इसके बाद अगले कुछ वर्षों में धीरे-धीरे इस दर में और भी कटौती की गई।
- 2016 में रेपो रेट को घटाकर 6.5% किया गया और फिर 2017 में इसे और कम करके 6% कर दिया गया। यह कटौती आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और कर्ज को सस्ता बनाने के मकसद से की गई थी।
- हालांकि, 2018 में स्थिति थोड़ी बदली। उस साल महंगाई के बढ़ते संकेतों को देखते हुए RBI ने रेपो रेट में मामूली बढ़ोतरी की और इसे 6.25% कर दिया, जो कि 2019 तक स्थिर बनी रही।
- 2020 में, जब पूरी दुनिया महामारी की चपेट में आ गई, तो भारत की अर्थव्यवस्था भी गंभीर संकट में आ गई। ऐसे में RBI ने जल्दी-जल्दी कई बड़े फैसले लिए ताकि आर्थिक गतिविधियों को सहारा दिया जा सके। मार्च 2020 में रेपो रेट को घटाकर 4.4% किया गया और मई 2020 में इसे और घटाकर 4% कर दिया गया। अक्टूबर 2020 में RBI ने रेपो रेट में कटौती करते हुए इसे 3.35% के ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंचा दिया था।
जब RBI रेपो रेट घटाता है, तो क्या होता है?(What Is The Benefit Of Repo Rate Cut)
जब भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) रेपो रेट (Repo Rate) को कम करता है, तो इसका असर सीधा आपकी जेब और देश की अर्थव्यवस्था दोनों पर पड़ता है। दरअसल, रेपो रेट वह ब्याज दर होती है, जिस पर RBI देश के बैंकों को शॉर्ट टर्म लोन देता है। जब बैंकों को सस्ता कर्ज मिलता है, तो वे भी अपने ग्राहकों को सस्ते में लोन देने लगते हैं।
जब RBI द्वारा रेपो रेट घटता है, तो बैंक होम लोन, पर्सनल लोन, एजुकेशन लोन आदि पर ब्याज दरें कम कर देते हैं। इससे आपकी EMI कम हो जाती है। जब लोन पर इंटरेस्ट रेट क हो जाता है, तो लोग घर, कार और बिजनेस के लिए लोन लेने लगते हैं। इससे मार्केट में डिमांड बढ़ती है। रेपो रेट घटने से इंडस्ट्री और बिजनेस को भी सस्ता लोन मिलता है जिससे वे इन्वेस्टमेंट बढ़ाते हैं, नई फैक्टरी लगाते हैं और लोगों को रोजगार मिलता है। इसके अलावा, बैंक सेविंग्स अकाउंट और FD पर मिलने वाला इंटरेस्ट भी घट जाता है। रेपो रेट घटने से खर्च और इन्वेस्टमेंट बढ़ता है और GDP ग्रोथ को बढ़ावा मिलता है। आमतौर पर, RBI द्वारा यह कदम तब उठाया जाता है, जब मंदी से जूझ रही इकोनॉमी को सहारा देकर उठाना होता है।
इसे भी पढ़ें- आपको पता है RBI के Governor और डिप्टी गवर्नर को कितनी मिलती है सैलरी? जानें सुविधाएं और जिम्मेदारियां
जब RBI रेपो रेट बढ़ाता है, तो क्या होता है?(What Happens When Repo Rate Increases)
जब भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) रेपो रेट बढ़ाता है, तो इसका सीधा असर लोन और महंगाई पर पड़ता है। जब रेपो रेट बढ़ता है, तो बैंकों को RBI से कर्ज लेने पर ज्यादा ब्याज देना पड़ता है। जब ज्यादा ब्याज बैंक देती है, तो इसका असर कस्टमर्स पर भी पड़ता है। होम लोन, कार लोन, पर्सनल लोन जैसे सभी लोन की ब्याज दरें बढ़ जाती हैं।
रेपो रेट बढ़ने से खर्च कम हो जाता है और डिमांड घटने लगती है, जिसकी वजह से बाजार में खर्च घटता है। कम डिमांड की वजह से सामान और सर्विस महंगी हो जाती हैं। आमतौर पर RBI रेपो रेट तब बढ़ाता है, जब उसे लगता है कि महंगाई काबू से बाहर हो रही है। हालांकि रेपो रेट बढ़ने से FD और सेविंग्स अकाउंट पर मिलने वाला ब्याज बढ़ जाता है। रेपो रेट बढ़ने का असर शेयर बाजार पर भी पड़ता है और उसमें गिरावट देखी जा सकती है।
हालांकि RBI द्वारा रेपो रेट बढ़ाने से विदेशी इन्वेस्टर्स को भारत में इन्वेस्ट करने में रुचि होने लगती है, क्योंकि उन्हें रिटर्न अच्छा मिलता है। इसकी वजह से रुपया मजबूत हो जाता है।
अगर हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो आप हमें आर्टिकल के ऊपर दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों