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 maha shivratri 2025 significance and history of the panchkoshi parikrama

Maha Shivratri 2025 Panchkoshi Parikrama: महाशिवरात्रि के दिन पंचकोसी परिक्रमा से पूरी होती हैं मनोकामनाएं, जानें किसने की थी शुरुआत

हिंदू धर्म में परिक्रमा लगाने के विशेष विधान है। ऐसा कहा जाता है कि अगर आपने कोई संकल्प ले रहे हैं और आपकी कोई मनोकामना है, जिसे आप पूरी करना चाहते हैं तो महाशिवरात्रि के दिन पंचकोशी परिक्रमा लगाने के विशेष महत्व है। आइए इस लेख में विस्तार से जानते हैं।
Editorial
Updated:- 2025-02-19, 14:12 IST

महाशिवरात्रि हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है, जिसे बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार भगवान शिव को समर्पित है, जो हिंदू धर्म के तीन प्रमुख देवताओं में से एक हैं। महाशिवरात्रि हर साल फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन, भक्त उपवास रखते हैं और भगवान शिव की विशेष पूजा करते हैं। वे शिवलिंग पर दूध, दही, शहद, और गंगाजल चढ़ाते हैं। कई भक्त रात भर जागकर भगवान शिव के मंत्रों का जाप करते हैं और उनकी स्तुति करते हैं। महाशिवरात्रि के दिन कई विशेष धार्मिक परंपराओं का पालन किया जाता है। इनमें से एक प्रमुख पंचकोसी परिक्रमा परंपरा है। अब ऐसे में महाशिवरात्रि के दिन पंचकोसी परिक्रमा लगाने का महत्व क्या है और इस परिक्रमा की शुरूआत किसने की थी। इसके बारे में इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।

महाशिवरात्रि के दिन पंचकोसी परिक्रमा का महत्व

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पंचकोसी परिक्रमा, भगवान शिव के भक्तों के लिए एक अटूट आस्था की परिक्रमा है। यह परिक्रमा विशेष रूप से शिव मंदिरों में लगाई जाती है। पंचकोसी शब्द का अर्थ है पांच प्रमुख तीर्थस्थलों की यात्रा करना, और प्रत्येक स्थल का अपना धार्मिक महत्व है। यह परिक्रमा पवित्रता, तपस्या, और भक्ति का प्रतीक है। भक्त इन पांचों स्थानों की परिक्रमा करते हुए भगवान शिव की पूजा और अर्चना करते हैं। इस परिक्रमा का एकमात्र उद्देश्य आत्म-शुद्धि, मोक्ष प्राप्ति, और भगवान शिव के प्रति अपनी श्रद्धा को प्रकट करना है।

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पंचकोसी परिक्रमा ने शुरूआत प्रभु श्रीराम ने की

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पंचकोसी यात्रा की शुरूआत त्रेता युग में भगवान श्री राम ने की थी। श्री राम के पंचक्रोशी यात्रा के पीछे की वजह मानें तो इस यात्रा को मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने अपने पिता राजा दशरथ को श्रवण कुमार के पिता के श्राप से मुक्त कराने के लिए किए। अनजाने में ही राजा दशरथ के तीर वार से श्रवण कुमार की मृत्यु हो गई थी। जिससे पुत्र वियोग में श्रवण कुमार के वृध माता-पिता ने राजा दशरथ को पुत्र वियोग में तड़प-तड़प कर मरने का श्राप दे दिया था। अपने पिता को इस श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए श्री राम जी ने पंचकोसी यात्रा की थी। ऐसा कहा जाता है कि जो जातक महाशिवरात्रि के परिक्रमा लगाता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।
महाशिवरात्रि के शुभ अवसर पर भगवान शिव के भक्त पंचकोसी यात्रा करते हैं। पंचक्रोशी यात्रा धार्मिक स्थल उज्जैन और वाराणसी से की जाती है। उज्जैन और वाराणसी दोनों ही शिव भगवान की नगरी हैं। उज्जैन में पंचक्रोशी यात्रा वैशाख माह में की जाती है। इस दौरान पिंगलेश्वर, कायावरोहणेश्वर, विल्वेश्वर, दुर्धरेश्वर, नीलकंठेश्वर में स्थित शिव मंदिरों में बाबा के दर्शन किए जाते हैं।

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पंचकोसी परिक्रमा का आरंभ काशी गंगा में मणिकर्णिका घाट से ही होता है। शिवरात्रि के दिन पंचकोसी यात्रा की शुरुआत मध्य रात्रि से की जाती है। इस स्थान से श्रद्धालु कर्दमेश्वर की यात्रा करते हैं, फिर यहां से भीम चंडी, भीम चंडी रामेश्वर, शिवपुर, कपिलधारा से फिर मणिकर्णिका घाट की यात्रा की जाती है।

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