Lok Sabha Election Results: पिछले 10 सालों में कैसा रहा स्मृति ईरानी का राजनीतिक सफर? ऐतिहासिक जीत से लेकर चुनावी हार तक

स्मृति ईरानी अमेठी सीट से लोकसभा चुनाव हार गई हैं। उनका राजनीतिक सफर आगे क्या मोड़ लेगा यह तो नहीं पता, लेकिन पिछले कुछ सालों में उन्होंने क्या किया यह जरूर पता है। 

Smriti irani and her political journey  to

लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे सामने आते ही स्मृति ईरानी की हार को लेकर तमाम बातें होने लगीं। लगभग तय मानी जा रही लोकसभा सीट में स्मृति ईरानी कांग्रेस प्रत्याशी किशोरी लाल से 1 लाख से भी ज्यादा वोटों से हार गईं। यह बहुत बड़ा धक्का है क्योंकि अमेठी में पिछले लोकसभा चुनावों में ईरानी ने राहुल गांधी को हरा दिया था। 2019 में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी और अब भी भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई है। हालांकि, भाजपा को अब सरकार बनाने के लिए समर्थन की जरूरत है।

इस सबसे परे भाजपा की स्टार कैम्पेनर और ए ग्रेड नेताओं में से एक स्मृति ईरानी हार गई हैं। स्मृति ईरानी ने हार के बाद एक सोशल मीडिया पोस्ट भी की जिसमें उन्होंने लिखा कि उनका जोश अभी भी हाई है और अभी भी वो अमेठी की सेवा करती रहेंगी।

स्मृति ईरानी का राजनीतिक सफर रहा है बहुत दिलचस्प

लोगों को लगता है कि स्मृति ईरानी 2009 से पॉलिटिक्स में एक्टिव हुई हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। उन्होंने 2003 से ही अपना पॉलिटिकल करियर शुरू कर दिया था।

Smriti irani political begining

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2004 में ही स्मृति ईरानी ने लोकसभा चुनाव में अपनी मौजूदगी दर्ज करवा दी थीं। चुनावों में पहले वो महाराष्ट्र यूथ विंग की वाइस प्रेसिडेंट बना दी गई थीं। चांदनी चौक सीट से कपिल सिब्बल के खिलाफ लड़ने के बाद उन्हें हार मिली थी।

2004 की हार वाजपेयी सरकार के लिए बहुत ही शॉकिंग थी, लेकिन स्मृति ईरानी पीछे नहीं हटी थीं।

नरेंद्र मोदी के खिलाफ किया था स्मृति ईरानी ने प्रदर्शन

बहुत कम लोग यह जानते हैं कि स्मृति ईरानी हमेशा से नरेंद्र मोदी के पक्ष में नहीं थीं। आज जो स्मृति नरेंद्र मोदी की तारीफ करते नहीं थकती हैं वही 2004 के चुनावों की हार के बाद भाजपा की स्थिति का कारण नरेंद्र मोदी को बताया था। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, स्मृति ईरानी ने आमरण अनशन की धमकी भी दी थी। उनकी मांग थी कि नरेंद्र मोदी को गुजरात सीएम की पोस्ट से इस्तीफा दे देना चाहिए। स्मृति को पार्टी हाईकमान से अपने बयान वापस लेने को भी कहा गया।

एक महीने बाद एल के आडवाणी के घर पर स्मृति और नरेंद्र मोदी की मुलाकात हुई थी जब मोदी ने स्मृति के सिर पर हाथ रखकर कहा था कि वो गुजरात की बेटी हैं। उसके बाद से स्मृति का पॉलिटिकल करियर ऊपर जाने लगा।

2009 से चमकी स्मृति की राजनीति

ऐसा माना जाता था कि स्मृति ईरानी को राजनीति में लाने वाले प्रमोद महाजन थे, लेकिन 2009 तक स्मृति की किस्मत ने राजनीति में कोई खास कमाल नहीं दिखाया। पहले तो उन्हें 2009 के चुनावों में टिकट ही नहीं मिला, हालांकि उस दौरान वह पार्टी की स्टार प्रचारक जरूर बन गईं।

Smiri irani and political stunt before

प्रचार के दौरान उन्होंने महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे को उठाया और रेपिस्ट के खिलाफ मौत की सजा की मांग की। उन्होंने दिल्ली में कई जगह इसे लेकर प्रदर्शन किए। इसके बाद 2010 में उन्हें भाजपा का नेशनल सेक्रेटरी बना दिया गया और 24 जून 2010 में वो भाजपा महिला मोर्चा की ऑल इंडिया प्रेसिडेंट बन गईं।

इस बीच उन्होंने भारतीय सेना में परमानेंट वुमन कमीशन की मांग की जिससे महिला सैनिकों को मदद मिल सके।

2011 में पहली बार स्मृति ईरानी बनीं संसद का हिस्सा

लोक सभा ना सही, लेकिन राज्य सभा में तो स्मृति ईरानी पहुंच ही गईं। 2011 अगस्त में उन्होंने गुजरात सांसद के तौर पर शपथ ली। हालांकि, उनका काम पार्टी में आगे आता रहा और धीरे-धीरे वो ऊपर बढ़ती चली गईं।

2014 में स्मृति ईरानी का हुआ बोलबाला

अमेठी में राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ना स्मृति ईरानी के लिए एक बड़ा कदम था। वो अमेठी में 1 लाख वोटों से हार गईं, लेकिन इसे भी स्मृति की जीत माना जा रहा था। चुनाव हारने के बाद भी स्मृति को मानव संसाधन विकास मंत्रालय दिया गया।

Smriti irani and degree issue

हालांकि, इसके बाद स्मृति का डिग्री विवाद गहरा गया। उन पर डिग्री फर्जीवाड़ा करने का आरोप लगा। आरोपों की मानें तो अलग-अलग इलेक्शन में उन्होंने अलग एफिडेविट लगाए थे। इस मामले को 2015 में कोर्ट तक पहुंचाया गया और स्मृति को अपनी डिग्री के लिए PIL फाइल करने को कहा गया। 2014 से 2015 के बीच स्मृति ईरानी ने उड़ान योजना और प्रगति स्कीम लॉन्च की थी ताकि इंजीनियरिंग कॉलेज में लड़कियों का एडमिशन ज्यादा हो सके। इसके साथ ही IMPacting Research INnovation and Technology (IMPRINT) स्कीम भी स्मृति ईरानी ने लॉन्च करवाई थी जिसमें मंत्रालय द्वारा प्रोजेक्ट्स को को-फंड किया जाना था जो भारत को तकनीकी क्षेत्र में आगे पहुंचाते। इसके लॉन्च के 1 साल के अंदर ही अलग-अलग मिनिस्ट्री ने 229 रिसर्च प्रोजेक्ट्स पेश किए थे। इसके अलावा, 2016 में ऑनलाइन कोर्स को बढावा देने के लिए भी ईरानी की तरफ से Massive Open Online Courses (MOOCS) प्लेटफॉर्म लॉन्च किया गया था।

खैर, विवाद ठंडा हुआ और स्मृति ने मंत्रालय की कमान संभालते हुए कई तरह के बदलाव लाने की कोशिश की। उन्होंने 2016 में जेएनयू मुद्दे पर जमकर बहस की। उस दौरान रोहित वेमुला की आत्महत्या और जेएनयू में अफजल गुरु के कैपिटल पनिशमेंट मामले में विरोध पर सवाल उठाए थे।

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2016 में बदला मंत्रालय और स्वरूप

2016 में कैबिनेट में थोड़े से बदलाव हुए और स्मृति ईरानी को टेक्सटाइल मिनिस्ट्री दे दी गई। इस मंत्रालय में भी उन्होंने बहुत सारे प्रोजेक्ट्स लॉन्च किए और यह पोर्टफोलियो उन्होंने 5 साल तक संभाला। 2021 तक टेक्सटाइल मिनिस्टर रहते-रहते उन्होंने 2017 से 2018 तक सूचना और जनसंचार मंत्रालय भी संभाला। यह अचंभे की बात थी कि स्मृति ईरानी के रहते हुए दूरदर्शन का रेवेन्यू टारगेट 800 करोड़ से भी पार निकल कर 827.51 करोड़ पहुंच गया।

Smriti irani after becoming minister

2019 में उन्हें महिला एवं बाल विकास मंत्रालय भी सौंपा गया। इस दौरान POCSO एक्ट में बहुत बड़ा बदलाव आया जहां रेपिस्ट के लिए कैपिटल पनिशमेंट को मान्य किया गया। इस दौरान पोक्सो में चाइल्ड पोर्नोग्राफी और जीरो टॉलरेंस जैसे शब्द भी जोड़े गए।

2022 में उन्हें टेक्सटाइल मिनिस्टर की जगह अल्पसंख्यक कार्य मंत्री बना दिया गया। यह स्मृति के पास पांचवा मंत्रालय था और 2017 से ही वो लगातार दो मंत्रालयों की कमान संभाल रही थीं। 2023 में स्मृति ने 'नया सवेरा' स्कीम लॉन्च की जिसमें माइनॉरिटी कम्युनिटी को फ्री कोचिंग की सुविधा मिली।

smriti irani work after

2024 में स्मृति ईरानी मदीना जाने वाली पहली नॉन-मुस्लिम कैंडिडेट बनीं।

2024 की हार और स्मृति का जवाब

2024 में स्मृति ईरानी कांग्रेस के प्रत्याशी किशोरी लाल से हार गई हैं। अब स्मृति ईरानी का करियर किस तरह का मोड़ लेता है यह तो देखना होगा, लेकिन एक बात तो तय है कि स्मृति ईरानी ने एक सफल राजनीतिक पारी खेली है और अभी पिक्चर बाकी है।

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