जब भी मुगलों का जिक्र होता है तब उनसे बैर लेने वाले भारतीय राजाओं की वीरता की गाथा गाई जाती है। पर भारतीय इतिहास में ऐसी कई रानियां भी रही हैं जिन्होंने अपने जीवनकाल में दुश्मनों से बैर लिया है। सिर्फ झांसी की रानी ही नहीं बल्कि देश के अन्य राज्यों की रानियों ने भी अपने-अपने स्तर पर कई युद्ध लड़े हैं और वीरगति को प्राप्त हुई हैं। आज हम उन्हीं में से एक रानी दुर्गावती का जिक्र करने जा रहे हैं जिन्होंने अपनी और राज्य की रक्षा के लिए पूरी जिंदगी लगा दी।
15वीं सदी में मुगल राजा अकबर का राज पूरे भारत में तेजी से फैल रहा था। कई हिंदू राजाओं के साथ संधि कर मुगलिया सल्तनत अपना साम्राज्य बनाने में कामयाब रही थी। जिन हिंदू राज्यों ने अपना राज्य नहीं दिया था उन्हें मुगलों के साथ युद्ध करना पड़ रहा था। ऐसा ही एक राज्य था गोंडवाना जिसे जीतने के लिए मुगलों को बहुत मुश्किल हुई थी। उस समय गोंडवाना की रक्षा के लिए मुगलों की सेना के सामने खड़ी थी रानी दुर्गावती।
रानी दुर्गावती के नाम का था खास महत्व
1524 में उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में राजा कीर्तिसिंह चंदेल के घर जन्मी दुर्गावती का जन्म दुर्गा अष्टमी के दिन हुआ था। यही कारण है कि उनका नाम भी दुर्गावती रखा गया। वो अपने पिता की इकलौती संतान थीं और यही कारण था कि उन्हें बचपन से ही घुड़सवारी, तलवारबाजी, तीरंदाजी जैसी युद्ध कलाओं की शिक्षा मिली थी। अकबरनामा में भी रानी दुर्गावती का जिक्र है और ये माना जाता है कि वो तीर और बंदूक चलाने में माहिर थीं। 18 साल की उम्र में उनका ब्याह गोंड राजवंश के राजा संग्राम शाह के बड़े बेटे दलपत शाह से हो गया था।
उस वक्त गोंड वंशजों का राज्य चार जगहों पर था गढ़-मंडला, देवगढ़, चंदा और खेरला जिसे मूलत: गोंडवाना कहा जाता था। दलपत शाह का राज्य गढ़-मंडला था।
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पति की मृत्यु के बाद संभाला राज्य
रानी दुर्गावती की शादी 1542 में हुई थी ये पहली बार था जब किसी राजपूत राजकुमारी का गोंड वंश में विवाह हुआ था। 1545 में उनके बेटे वीर नारायण का जन्म हुआ था। उनकी खुशियां कुछ ही समय की रहीं और 1550 में उनके पति का निधन हो गया। 5 साल के राजकुमार को सिंहासन पर बैठाकर रानी ने कामकाज का जिम्मा अपने सिर ले लिया। काम संभालते हुए 2 ही साल हुए थे कि सुल्तान बाज बहादुर ने राज्य पर हमला बोल दिया पर रानी दुर्गावती ने अपनी फौज का नेतृत्व कर ये युद्ध जीत लिया। 1562 में अकबर ने मालवा को भी मुगल साम्राज्य में जोड़ लिया।
रानी ने अपने शासनकाल में अपने राज्य में विकास करवाया। उन्होंने अनेक मठ, बावड़ियां, कुंए और धर्मशालाएं बनवाईं। उन्होंने अपने नाम पर रानीताल, दीवान आधार सिंह के नाम पर आधारताल और अपनी दासी के नाम पर चेरीताल भी बनवाया था।
उस समय अकबर की सेना के प्रमुख असफ खान ने राज्य पर हमला बोल दिया। कुछ रिपोर्ट्स मानती हैं कि असफ खान की नजर रानी दुर्गावती पर थी। रानी को सिर्फ अपने राज्य को नहीं बल्कि खुद को भी दुश्मनों से बचाना था। 1562 में जब गोंड पर हमला हुआ तो रानी ने अपने बेटे के साथ 3 बार मुगल सेना का सामना किया।
उनकी हजारों की फौज के सामने रानी के 500 सिपाही कम पड़ गए, लेकिन फिर भी रानी ने बहुत चतुराई दिखाई। उनके सैनिक जबलपुर स्थित नराई नाला पहुंचे जो एक पहाड़ी क्षेत्र था और उसके एक तरफ गौर नदी थी और दूसरी तरफ नर्मदा। जैसे ही दुश्मन घाटी में आया तब रानी की छोटी सी सेना ने हमला बोल दिया और मुगलों को खदेड़ दिया। इस प्रथम युद्ध में रानी का सेनापति मारा गया और फिर रानी ने खुद को फौज का सेनापति घोषित कर दिया।
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अगले ही दिन मुगलों की सेना हार का बदला लेने के लिए और सैनिक लेकर पहुंची और तब तक रानी के पास सिर्फ 300 ही सैनिक शेष थे। इस युद्ध में उन्होंने कई सैनिकों को मारा और मुगलों की सेना लगभग आधी रह गई। तब तक वीर नारायण को भी बहुत सारे तीर लग चुके थे और रानी को हार नजदीक दिख रही थी। तब रानी ने अपने दीवान आधार सिंह को अपनी जान लेने को कहा। हालांकि, आधार ये ना कर पाए और रानी ने तब खुद ही अपनी जान ले ली।
उनका बेटा अब भी युद्ध लड़ रहा था और फिर वीरगति को प्राप्त हो गया। रानी दुर्गावती ने अपनी पूरी जिंदगी अपने राज्य को दे दी थी।
भारत सरकार ने साल 1988 में रानी दुर्गावती के लिए पोस्टल स्टाम्प भी जारी किया था। रानी दुर्गावती के बारे में जानकर आपको कैसा लगा ये हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
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