बच्चे किसी मां के लिए उसकी पूरी दुनिया होते हैं और अपनी इस दुनिया को सहेजकर रखने में वह कोई कोर-कसर नहीं रखना चाहती। अपने बच्चे को दुनिया की बुराईयों से बचाने के लिए मां हर संभव प्रयास करती है। आपको ऐसा लगता है कि आप बच्चे को प्रोटेक्ट कर रही हैं। बच्चे की प्रोटेक्शन और ओवर प्रोटेक्शन के बीच एक महीन रेखा होती है और अगर आप उसे लेकर ओवरप्रोटेक्टिव हो जाती हैं तो इससे बच्चे के विकास पर विपरीत असर पड़ता है। अक्सर देखने में आता है कि जो मम्मी ओवरप्रोटेक्टिव होती हैं, उनके बच्चों का स्वभाव या तो दब्बू होता है या फिर चिड़चिड़ा। इतना ही नहीं, ऐसे बच्चे कभी भी खुद को सही तरह से एक्सप्रेस नहीं पाते और फिर उन्हें अपनी लाइफ में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अगर आप भी बेहद ओवरप्रोटेक्टिव मदर हैं तो आपको यह लेख जरूर पढ़ना चाहिए। इससे आप समझ पाएंगी कि जिसमें आप बच्चे की भलाई समझ रही हैं, वह आपके बच्चे को किस तरह नुकसान पहुंचा रहा है-
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पहचानें लक्षण
कोई भी कदम उठाने से पहले आपको यह जानना होगा कि क्या आप सच में एक ओवरप्रोटेक्टिव पैरेंट है। इसे आप कुछ आसान तरीकों से पहचान सकती हैं। ओवरप्रोटेक्टिव पैरेंट बच्चों के लिए कई तरह की सीमाएं निर्धारित करते हैं। वह बच्चे को खुद ही एक्सप्लोर करने नहीं देते क्योंकि उन्हें हमेशा लगता है कि उनका बच्चा इसके लिए अभी तैयार नहीं है। इतना ही नहीं, वह बच्चे के दोस्तों से लेकर उसकी हर गतिविधि पर अपनी नजर रखते हैं। ओवरप्रोटेक्टिव पैरेंट बच्चे के खानपान से लेकर उसकी दोस्ती आदि सभी को लेकर प्रोटेक्टिव होते हैं और इसलिए वह बच्चे की हर चीज में टोका-टाकी करते हैं। हालांकि उनके मन में एक अच्छी ही भावना होती है और वे हमेशा अपने बच्चों को किसी बुरे अनुभव, कष्ट और असफलताओं से बचाना चाहते हैं।
मुश्किलों का सामना
ओवरप्रोटेक्टिड बच्चों में एक समस्या जो हमेशा देखने में मिलती है, वह है कि वे कभी भी जीवन की कठिनाईयों का सामना करने के लिए खुद को तैयार नहीं कर पाते। दरअसल, उन्हें बचपन से ही एक अपने पैरेंट्स की सुरक्षा शील्ड मिलती है और इसलिए जब उन्हें सच में बाहरी दुनिया का सामना करना पड़ता है तो वह कई चैलेंजेस में हार जाते हैं। इतना ही नहीं, ऐसे बच्चे बड़े होने के बाद भी अपने पैरेंट्स पर इस हद तक निर्भर होते हैं कि कभी भी वह अपने फैसले खुद से नहीं ले पाते।
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हमेशा दूसरों पर निर्भर
ओवरप्रोटेक्टिड बच्चों की परवरिश कुछ इस कद होती है कि वह हमेशा ही दूसरों पर निर्भर रहने के आदी हो जाते हैं। जहां घर में वह आप पर निर्भर होते हैं, वहीं स्कूल में टीचर्स पर उनकी निर्भरता बढ़ती है। ऐसे में इमोशनली भी काफी कमजोर होते हैं। कई बार उनकी दूसरों पर निर्भर रहने की आदत इस हद तक बढ़ जाती है कि अगर उनका कोई अपना उन्हें छोड़कर चला जाता है तो वह तनाव या अवसाद का भी शिकार हो जाते हैं।
एक्सप्रेस न कर पाना
जब आप बच्चे को जरूरत से ज्यादा प्रोटेक्ट करती हैं तो बच्चा खुद को कभी भी एक्सप्रेस या एक्सप्लोर कर ही नहीं पाता। उसे खुद ही पता नहीं चलता कि उसमें क्या गुण हैं। वो कहते हैं ना कि जब तक बच्चे गिरेंगे नहीं, तो वह कभी भी उठना नहीं सीख पाएंगे और अगर आप उन्हें गिरने ही नहीं देंगी तो फिर उन्हें उठना कैसे सिखाएंगी। इसलिए अगर आप चाहती हैं कि सच में आपका बच्चा लाइफ में सफल हो तो आप उन्हें गिरने दें। हो सकता है कि वह एक, दो या तीन बार फेल हों, लेकिन इससे उन्हें हार को एक्सेप्ट करना और जीत के लिए कड़ी मेहनत करना आ जाएगा।
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