शिव जी को प्रसन्न करने और सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने हेतु प्रदोष व्रत रखा जाता है। यह व्रत हर माह की शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। नए साल यानी कि साल 2021 का पहला प्रदोष व्रत 10 जनवरी, रविवार को रखा जाएगा। जब यह व्रत रविवार के दिन पड़ता है यह रवि प्रदोष कहलाता है और इसका विशेष महत्त्व होता है। कहा जाता है कि इस दिन विधि विधान से शिव जी की आराधना करने से भक्तों को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है और उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
10 जनवरी, रविवार को पौष मास कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि है और रवि प्रदोष होने की वजह से इसका विशेष महत्त्व है। आइए जानें क्या है साल के पहले प्रदोष व्रत की पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं इसका महत्त्व।
क्या है मान्यता
हिन्दू धर्म की मान्यतानुसार प्रदोष व्रत को सबसे पहले चंद्रदेव ने किया था, जिसके शुभ प्रभाव से चंद्रमा का क्षय रोग खत्म हो गया था। त्रयोदशी तिथि के दिन किया जाने वाला प्रदोष व्रत सौ गायों के दान के बराबर पुण्य प्रदान करता है। प्रदोष-व्रत को किसी भी मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से प्रारंभ किया जा सकता है लेकिन यदि कोई विशेष कामना रखती हैं तो इसे किसी विशेष दिन ही प्रारम्भ किया जाता है। इसके लिए पंडित की सलाह भी ली जा सकती है।
क्या है महत्त्व
पौराणिक मान्यता के अनुसार प्रदोष व्रत करने वाले व्यक्ति पर सदैव भगवान शिव की कृपा बनी रहती है और उसके सभी कष्टों का निवारण होता है। प्रदोष व्रत में शिव संग शक्ति यानी माता पार्वती की पूजा की जाती है, जिसके परिणाम स्वरुप सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। सुख सौभाग्य की कामना रखने वाले व्यक्तियों के लिए यह व्रत अत्यंत लाभकारी होता है। संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाली स्त्रियों को यह व्रत अवश्य रखना चाहिए। इस व्रत को करने से जल्द ही संतान प्राप्ति की इच्छा पूर्ण होती है।
क्या है पूजन विधि
प्रदोष काल में स्नान-ध्यान करके भगवान शिव की बेल पत्र, पुष्पों, धतूरे के फल, आदि से पूजा करनी चाहिए। शिव जी संग माता पार्वती की पूजा करने से पूजा का दोगुना फल मिलता है। प्रदोष व्रत में शिव चालीसा का पाठ करें, माता पार्वती को सिन्दूर लगाएं व शिव जी को चन्दन से सुसज्जित करें। दीप प्रज्ज्वलित करके शिव जी की आरती करें व पूजन करें। शिव पार्वती की श्रद्धा पूर्वक पूजा अर्चना करके प्रदोष व्रत कथा का पाठ करें और कथा सुनाएं। जहां तक संभव हो सफ़ेद वस्त्र धारण करके शिव जी की आराधना करें एवं भोग लगाएं। उसी भोग को प्रसाद स्वरुप ग्रहण करें और सभी को खिलाएं।
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रवि प्रदोष कथा
एक नगर था जिसमें तीन दोस्त रहते थे। इन तीनों में राजकुमार, ब्राह्मण कुमार और धनिक पुत्र था। राजकुमार और ब्राह्मण कुमार विवाहित थे। वहीं, धनिक पुत्र का विवाह भी हाल ही में हुआ था। लेकिन धनिक पुत्र की पत्नी का गौना नहीं हुआ था। एक दिन तीनों मित्र बैठकर अपनी-अपनी स्त्रियों की चर्चा कर रहे थे। जहां ब्राह्मण कुमार ने अपनी स्त्री की प्रशंसा करते हुए कहा कि बिना नारी के घर भूतों का डेरा होता है।
धनिक पुत्र ने जब यह बात सुनी तो उसे तुरंत अपनी पत्नी का गौना कराने का निश्चय किया। वह उसे घर लाना चाहता था। इस पर धनिक पुत्र के अपने माता-पिता से कहा लेकिन उसके माता-पिता ने धनिक पुत्र को समझाया कि अभी शुक्र देवता डूबे हुए हैं, ऐसे में बहू-बेटियों को उनके घर से विदा करवाना शुभ नहीं माना जाता है । लेकिन वो अपनी जिद्द पर अड़ा रहा। वह अपनी पत्नी को लेने के लिए ससुराल पहुंच गया।
ससुराल में भी धनिक पुत्र को मनाने की कोशिश की गई लेकिन वो नहीं माना। उसकी जिद्द के आगे झुककर लड़की के माता-पिता को गौना करना पड़ा। विदाई के बाद दोनों पति-पत्नी शहर से निकल गए। कुछ ही दूर पहुंचकर उनकी बैलगाड़ी का पहिया निकल गया। फिर बैल की टांग टूट गई। दोनों को काफी चोट भी लगी।
फिर कुछ दूर जाने के बाद उसे डाकुओं ने पकड़ लिया। वे सभी कुछ लूटकर ले गए। वहां धनिक पुत्र को सांप ने डस लिया। वैद्य ने बताया कि वो तीन दिन में मर जाएगा। यह सुन सभी परेशान हो गए। जब यह खबर ब्राह्मण कुमार को मिली तो धनिक पुत्र के घर पहुंचा और उसके माता-पिता को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। साथ ही उसकी पत्नी को ससुराल भेजने की सलाह भी दी। धनिक ने ब्राह्मण कुमार की बात मानी और अपनी पत्नी के साथ ससुराल पहुंच गया। यहां उसकी हालत ठीक होती गई। यानि प्रदोष व्रत के माहात्म्य से सभी घोर कष्ट दूर हो गए।
क्या है पंडित जी की राय
प्रदोष व्रत के बारे में हमने अयोध्या के जाने माने पंडित श्री राधे शरण शास्त्री जी से बात की। उन्होंने हमें बताया कि प्रदोष व्रत मुख्य रूप से मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए किया जाता है। पुत्र प्राप्ति की कामना ,धन प्राप्ति की इच्छा ,किसी रुके हुए कार्य को पूरा करने की चाह और नौकरी में सफलता प्राप्त करने की इच्छा रखने वालों के लिए यह व्रत अत्यंत लाभकारी होता है। इस व्रत में शिव जी का पूजन, प्रदोष काल में यानी कि संध्या काल और रात्रि से पूर्व के समय में करने से हर इच्छा पूर्ण होती है। यदि ये व्रत किसी महीने में रविवार के दिन होता है तब इसे रवि प्रदोष कहा जाता है और इसका अलग महत्त्व होता है। यदि किसी कारण से आप सभी प्रदोष व्रत नहीं रखती हैं तब भी रवि प्रदोष व्रत करके सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।
रवि प्रदोष व्रत का मुहूर्त
त्रयोदशी तिथि प्रारंभ - 10 जनवरी दिन रविवार को शाम 04 बजकर 52 मिनट से
त्रयोदशी तिथि समाप्त - 11 जनवरी दिन सोमवार को दोपहर 02 बजकर 32 मिनट तक
चूंकि प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में की जाती है और 11 जनवरी को प्रदोष काल प्राप्त नहीं हो रहा है इसलिए 10 जनवरी रविवार को शाम 05 बजकर 42 मिनट से रात 08 बजकर 25 मिनट के मध्य भगवान शिव की पूजा करना अत्यंत लाभकारी होगा । यह प्रदोष व्रत की पूजा के लिए उत्तम समय है।
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