यह कहना गलत नहीं होगा कि भारतीय शादी की रस्में सबसे अनूठी होती हैं। भारतीय शादी की शुरुआत कई समारोहों और रस्मों से होती है। जहां एक तरफ परिवार और दोस्त नए जोड़े की खुशी में शामिल होते हैं और उनके खुशहाली भरे नए जीवन की कामना करते हैं। वहीं शादी का दिन कई भावनाओं से जुड़ा होता है, जहां एक तरफ खुशियों की बहार होती है वहीं दूसरी ओर दुल्हन के लिए अपने माता-पिता को छोड़ने का गम होता है।
लेकिन, सबसे कठिन और भावनात्मक रूप से तोड़ने वाली रस्म होती है, जिसे विदाई कहा जाता है। जैसे कि इसके नाम से ही पता चलता है कि इसमें किसी को कहीं भेजा जा रहा है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हिंदू शादी में विदाई का महत्व क्या है। विदाई रस्म की शुरुआत कब हुई थी। शायद नहीं तो आज हम आपको विदाई रस्म का महत्व बताएंगे। चलिए जानते हैं इस बारे में।
महाराजाओं और शाही युग के दौरान, बेटियों और राजकुमारियों को अन्य देशों के राजकुमारों या राजाओं को 'पुरस्कार' के रूप में दिया जाता था। शांति संधि या आत्मसमर्पण के मामले में बेटियों को उपहार के रूप में 'प्रस्तावित' किया जाता था। भले ही आज यह सुनकर अजीब लग रहा होगा लेकिन यह सच है।? ऐसा लगता है कि जैसे शुरुआत में महिलाएं किसी तरह की संपत्ति थीं! लेकिन सच कहा जाए तो यहीं से विदाई रस्म की शुरुआत हुई थी।
समय के साथ-साथ विदाई समारोह विकसित हुआ इस रस्म में "सहमति" और "प्रेम विवाह" जैसे शब्द अस्तित्व में आए। लेकिन मूल रस्म अभी भी बनी हुई है, जहां पिता अपनी बेटी को उसके पति को सौंप देता है। लेकिन, आपको यह बता दें कि मेघालय में खासी और गारो जनजातियों, कर्नाटक में बंडट और बिलवा समूहों और केरल की शादी में नायर और एझावा जैसे कुछ जातियों में यह रस्म नहीं होती है।
हम सभी के दिमाग में यह सवाल जरूर आया होगा कि आखिर हम सैकड़ों साल पुरानी इस परंपरा को आज तक क्यों निभा रहे हैं? आज भी यह परपंरा हमारे लिए इतनी जरूरी क्यों है? आइए आपको इस परंपरा के महत्व से परिचित कराने के लिए थोड़ा और गहराई में ले चलते हैं। बता दें कि शादी की हर रस्में एक अनुष्ठानिक मार्ग का अनुसरण करती हैं जो वर्षों पहले से ही निर्धारित की जा चुकी हैं। विदाई की रस्म में पिता अपने बेटी को अलविदा कहकर एक नए जीवन की शुरुआत के लिए प्रोत्साहित करता है।
विदाई परंपरा में जहां एक तरफ माता-पिता अपनी बेटी को नए जीवन की शुरुआत करने के लिए नए घर भेजते हैं , वहीं वह बदले में अपनी बेटी द्वारा इतने सालों तक उसकी देखभाल करने के लिए धन्यवाद कहते हैं।
हालांकि, विदाई शादी (दुल्हन पक्ष के लिए) का अंतिम समारोह होता है लेकिन इस रस्म से जुड़े कई अर्थ और महत्व है। जिनके बारे में आज हम आपको विस्तार से बताएंगे।
जैसे ही दुल्हन अपने पति के परिवार का हिस्सा बनने के लिए अपने माता-पिता के घर से बाहर निकलती है, वह तीन बार अपने सिर पर मुट्ठी भर सिक्के और चावल फेंकने के लिए दरवाजे पर रुकती है। चावल और सिक्के फेंकने का कारण देवी लक्ष्मी (समृद्धि और धन की देवी) को प्रसन्न करना है और दुल्हन चाहती है कि उसका घर हमेशा समृद्ध रहे। बता दें कि सिक्के धन का प्रतीक है, जबकि चावल को स्वास्थ्य का प्रतीक माना जाता है।
इस रस्म का एक और मतलब यह है कि दुल्हन अपने माता-पिता द्वारा पालन पोषण के लिए उनका कर्ज चुकाया है। इसके साथ ही विदाई से पहले दूल्हा और दुल्हन को उनके रिश्तेदार देखते हैं और उन्हें गिफ्ट , पैसे और अपना आर्शीवाद देते हैं। इसके बाद दुल्हन के माता-पिता अपनी बेटी का हाथ पति को सौंपते हैं। माता-पिता अपने दामाद से उनकी बेटी की देखभाल और हर वक्त उसका साथ देने का वादा मांगते हैं।
विदाई रस्म में दूसरा और अंतिम अनुष्ठान जोड़े को दूल्हे के घर की ओर जाने के लिए कार की ओर बढ़ते हुए देखता है। दुल्हन के भाई और चचेरे भाई गाड़ी को पीछे से धक्का देते हैं (या डोली उठाते हैं)। भाई अपने बहन की खुशियों की कामना करता है और नवविवाहित जोड़े को एक खुशहाल जीवन की ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता है। बता दें कि पहले के समय में भाई लोग दुल्हन को डोली में बैठाकर ससुराल छोड़ते थे। हालांकि, अब जमाना बदल गया है और अब डोली का चलन भी खत्म हो गया है।
आखिर में जैसे ही दूल्हे की गाड़ी आगे बढ़ती है, लड़की के परिवार वाले सड़क पर कुछ सिक्के फेंक कर विदाई की रस्म को पूरा करते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से दूल्हा-दुल्हन के नए जीवन की राह से सभी बुराइयां दूर हो जाती हैं।
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रिवाज के अनुसार, शादी संपन्न होने के बाद और दुल्हन लहंगे और फेरा दुप्पटा के साथ पवित्र मंगलसूत्र और सिंदूर लगाती है। लेकिन, हर धर्म के अनुसार विदाई का आउटफिट अलग-अलग होता है। हालांकि, मंगलसूत्र और सिंदूर बेहद अहम होता है क्योंकि यह दुल्हन के सोलहश्रृंगार का हिस्सा होता है।
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हिंदू विवाह में शादी की रस्मों की शुरुआत मेंहदी की रस्म से होती है। इसके अलावा हिंदू विवाह में हल्दी की रस्म, महिला संगीत, जूता चुराई, सेहरा बांधने की रस्म,चावल फेंकना आदि शामिल है। इन सभी रस्मों का अलग-अलग महत्व है। हर रस्म शादी के लिए बेहद जरूरी होती है और इनके बिना कोई भी शादी अधूरी मानी जाती है। क्योंकि भारत विविधताओं का देश है इसलिए अलग-अलग धर्म के लोगों के रीति-रिवाज भी अलग-अलग होते हैं।
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