क्यों कुमाऊनी महिलाओं के लिए खास होती है नथ और पिछौड़,जानें इसका महत्व

 उत्तराखंड का परिधान बेहद अलग है। इसमें  नथ और पिछौड़ शामिल है, जिसे पहन हर महिला बेहद खूबसूरत लगती है। 

  • Hema Pant
  • Editorial
  • Updated - 2022-05-05, 14:37 IST
uttarakhand culture and traditional dress

उत्तराखंड केवल प्राकृतिक सुंदरता के लिए ही नहीं बल्कि अपनी अनूठी संस्कृति के लिए भी जाना जाता है। यहां के रीति-रिवाज से लेकर मान्यताओं तक हर एक चीज बेहद अलग है। खासतौर पर उत्तराखंड का पहनावा पूरी दुनिया में मशहूर है। यहां की बड़ी-बड़ी नथ, महिलाओं द्वारा नाक तक सिंदूर लगाना और पिछौड़ देखने में बेहद खूबसूरत लगते हैं। आपने भी उत्तराखंड की महिलाओं को पीले केसरिया रंग की लाल बिंदीदार दुपट्टा पहने हुए देखा होगा। इसी दुपट्टे को पिछौड़ कहा जाता है।

नथ और पिछौड़ को देख पता चल जाता है कि ये तो पहाड़ की महिलाएं हैं। यह कुमाऊं की महिलाओं की शान है। पिछौड़ और नथ पहने हर महिला बेहद खूबसूरत लगती है। उनके चेहरे पर नूर देखने लायक होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह कुमाऊनी महिलाओं के लिए खास क्यों हैं?आज इस आर्टिकल में हम आपको पिछौड़ और नथ के महत्व के बारे में बताएंगे।

पिछौड़ को माना जाता है शुभ

pichor uttarakhand traditional dress

जिस तरह यह माना जाता है कि किसी खास मौके पर काले कपड़े नहीं पहनने चाहिए, उसी तरह कुमाऊं की महिलाएं हर मांगलिक अवसर या खास मौके पर पिछौड़ पहनती हैं। उत्तराखंड में पिछौड़ को शुभ माना जाता है। खासतौर पर शादी के दौरान पिछौड़ पहनना अनिवार्य होता है। क्योंकि शादी बेहद शुभ काम होता है, इसलिए इस दिन को पवित्र बनाने के लिए कुमाऊनी महिलाएं यह परिधान पहनती है।

शादीशुदा महिलाएं ही पहनती हैं पिछौड़

उत्तराखंड के कुमाऊ क्षेत्र की शादीशुदा महिलाएं ही पिछौड़ पहनती हैं। पहली बार हर लड़की अपनी शादी के दिन ही पिछौड़ पहनती है। फेरे होने से पहले लड़की के लहंगे के दुपट्टे की जगह पिछौड़ पहनाया जाता है। इसके बाद हर त्योहार में पिछौड़ पहनना अनिवार्य हो जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो कुमाऊं में यह एक रिवाज है। ऐसा भी कहा जा सकता है कि इसके बिना पहाड़ी शादियां अधूरी है।

डिजाइन और रंग के कारण है मशहूर

uttarakhand tradition list

पिछौड़ का रंग पीला होता है, जिस पर लाल रंग से डिजाइन बनाए जाते हैं। साथ ही चौड़े बॉर्डर होते हैं। पिछौड़ के बीच मेंस्वास्तिक बना होता है। वहीं किनारों परसूर्य, चंद्रमा, शंख, घंटी आदि के डिजाइन बने होते हैं। पहले के समय में पिछौड़ को पीले रंग से रंगने के लिए कीलमोड़ा की जड़ को पीसकर रंग तैयार किया जाता था। कीलमोड़ा उत्तराखंड में पाए जाने वाला स्थानीय फल है। वहीं लाल रंग बनाने के लिए कच्ची हल्दी में नींबू निचोड़कर उस पर सुहागा डाला जाता था। हालांकि, अब चीजों में बदलाव आ गया है। अब इसे बनाने से लेकर रंगने तक हर प्रक्रिया बदल चुकी है।

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गढ़वाली दुल्हनों में चला पिछौड़ का ट्रेंड

पहले के समय में पिछौड़ केवल कुमाऊनी महिलाएं ही पहनती थीं। लेकिन समय के साथ-साथ अब गढ़वाल की शादियों में पिछौड़ पहनने की परंपरा शुरू हो गई है। पुराने जमाने में पिछौड़ को देखकर ही यह पता लगाया जाता था कि यह शादी किसकी है? यानी कि यह कुमाऊनी शादी है या गढ़वाली। पिछौड़ के डिजाइन और रंग के कारण नई दुल्हनों ने अब अपनी शादी में इसे पहनना शुरू कर दिया है। (जानें शादी से जुड़े अजीब रिवाज)

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नथ

kumauni nath

कुमाऊं की नथ की प्रसिद्धि इस बात से लगाई जा सकती है कि 21वीं सदी में भी ज्यादातर लड़कियां कुमाऊनी नथ पहनना पसंद करती हैं। यह नथ सबसे अलग इसलिए है क्योंकि इसके डिजाइन बेहद खूबसूरत होते हैं । हालांकि, कुमाऊनी के साथ-साथ गढ़वाली नथ भी होती है। दोनों में काफी अंतर होता है। कुमाऊं की महिलाओं के बीच नथ का महत्व इतना ज्यादा है कि वह शादी से लेकर बच्चे के मुंडन तक हर खास अवसर पर इसे पहनती हैं। साथ ही केवल शादीशुदा महिलाएं ही नथ पहनती हैं। शादी में दुल्हन का मामा सोने की नथ उपहार के रूप में देता है।(महिलाएं पैर की उंगली में बिछिया क्यों पहनती हैं)

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