अधिकतर घरों में पैरेंट्स की यह शिकायत होती है कि बच्चे उनकी बात ही नहीं सुनते। वह कभी आराम से तो कभी गुस्से में भी बच्चे को अपनी बात समझाने की कोशिश करते हैं, लेकिन कभी-कभी तो बच्चों का ध्यान ही उनकी बातों में नहीं होता। तो कभी वह बात को सुनकर भी अनसुना कर देते हैं। ऐसे में पैरेंट्स का निराश होना स्वाभाविक है।
हालांकि, इसमें बच्चों की गलती नहीं होती है। दरअसल, बच्चे स्वभाव से चंचल होते हैं और इसलिए उनका यह स्वभाव होता है कि वह बातों पर बहुत अधिक ध्यान नहीं देते हैं और केवल मस्ती में ही लगे रहते हैं। ऐसे में बात ना सुनने पर बच्चों पर चिल्लाना सही नहीं है। बल्कि जरूरी यह है कि आप अपने बातचीत के तरीकों में कुछ बदलाव करें। बड़ों से बातचीत व बच्चों से बातचीत में अंतर होता है। उनके साथ बात करते हुए आपको कुछ अलग तरीके अपनाने की जरूरत होती है। जिसके बारे में आज हम आपको इस लेख में बता रहे हैं-
जब आप बच्चों से बात कर रहे हैं तो ऐसे में सबसे पहले आपको बच्चों के माइंडसेट को समझना जरूरी होता है। कई बार हम अपने माइंडसेट से बच्चे से बात करते हैं। जिसके कारण हम जरूरत से ज्यादा इनफार्मेशन उन्हें देते हैं या फिर ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, जिसके बारे में उन्हें पता ही नहीं होता। जब बच्चों को बड़ों की बातें समझ ही नहीं आतीं तो वह अपनी मस्ती में लग जाते हैं। इसलिए उनसे बात करते समय ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करें, जो सिंपल हों और उन्हें आसानी से समझ में आएं।
यह एक बेहद जरूरी टिप है, जिसका ध्यान आपको बच्चों से बात करते हुए विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए। कई बार गुस्से में तो कभी मूड अपसेट होने पर जब हम बच्चों से बात करते हैं, तो उस समय हमारी टोन अलग होती है। यह बच्चों के मन में एक नकारात्मक भावना पैदा करती है। इस स्थिति में अक्सर बच्चे या तो चुप हो जाते हैं या फिर वह आपकी बातों को जवाब देने लग जाते हैं और आपको लगता है कि वह उल्टा बोल रहे हैं। दोनों ही स्थितियों में बच्चे आपकी बातों का अर्थ व मैसेज नहीं समझ पाते हैं। इसलिए, जब भी आप बच्चों से बात करें तो इस बात का ख्याल रखें कि उस समय आप शांत दिमाग से ही बात करें, ताकि बच्चा आपकी बातों को सुनने व समझने का प्रयास करे।(आपके नटखट बच्चे झटपट मान लेंगे आपका कहना)
यह गलती अक्सर पैरेंट्स कर बैठते हैं। जब पैरेंट्स बच्चों से बात करते हैं तो उनकी यही इच्छा होती है कि वह उनकी बात सुनें। अगर बच्चे उस समय मस्ती करते हैं तो पैरेंट्स उन पर गुस्सा करते हैं। जबकि वास्तव में अधिकतर पैरेंट्स भी ऐसा ही करते हैं। जब बच्चे अपने पैरेंट्स से बात करते हैं, तो वह फोन या लैपटॉप में लगे रहते हैं। यह तरीका सही नहीं है। पहले आप अपनी आदत बदलें और फिर बच्चों से बदलाव ही उम्मीद करें।(बच्चे के बेहतर विकास के टिप्स)
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जब आप बच्चे से बात कर रहे हैं तो कोशिश करें कि एक बार में एक ही टॉपिक पर चर्चा करें या फिर उन्हें एक बार में केवल एक ही इंस्ट्रक्शन दें। कई बार पैरेंट्स बच्चों के साथ कई टॉपिक पर एक साथ चर्चा करने लग जाते हैं। जिससे बच्चे कंफ्यूज हो जाते हैं और फिर इससे वह बातों में इंटरस्ट लेना ही छोड़ देते हैं।(बच्चों को सही करियर चुनने में करें मदद)
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यह भी एक तरीका है, जिससे आप यह सुनिश्चित कर सकती हैं कि बच्चा आपकी बात सुने। अधिकतर घरों में ऐसा होता है कि टीवी ऑन होते हुए बच्चे और पैरेंट्स आपस में बात करते हैं। लेकिन इससे बच्चों का अधिकतर ध्यान टीवी में ही होता है और वह आपकी बातों पर ध्यान नहीं देते। इसलिए अगर आप बच्चों से बात कर रही हैं तो नो डिस्टर्ब पॉलिसी अपनाएं। मसलन, अपने फोन को कुछ देर के लिए साइलेंट कर दें और टीवी भी ऑन ना रखें। जब आसपास कोई डिस्टर्बेंस नहीं होगी, तो बच्चे का ध्यान आपकी बातों पर ही होगा।
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