भारत संस्कृति और परंपरा का देश है। इस देश की खासियत यह है कि यहां पर हर राज्य में बोली और खान-पान में ही भिन्नता देखने को नहीं मिलती, बल्कि हर राज्य की अपनी कला और संस्कृति है जो उसे अन्य सभी से अलग व अद्वितीय बनाती है। यहां के विभिन्न राज्यों की हैंडीक्राफ्ट आइटम्स उस क्षेत्र के विविध इतिहास को भी दर्शाती है।
भारत में आज भी विभिन्न राज्यों में पारंपरिक तरीके से हैंडीक्राफ्ट आइटम्स तैयार किए जाते है, जो अपने आप में बेहद अनूठे होते हैं। इतना ही नहीं, यह इतने मनमोहक और आकर्षक हस्तशिल्प हैं कि इनकी ख्याति सिर्फ राज्य या देश तक ही सीमित नहीं है, बल्कि विदेशों में भी लोग इन हैंडीक्राफ्ट आइटम्स को पसंद करते हैं। तो चलिए आज इस लेख में हम आपको भारत की कुछ ऐसी ही हैंडीक्राफ्ट आइटम्स के बारे में बता रहे हैं, जो बेहद ही पसंद की जाती हैं-
तंजावुर डॉल तमिलनाडु के तंजावुर क्षेत्र का एक पारंपरिक हस्तशिल्प है। यह एक प्रकार की हस्तनिर्मित गुड़िया है जिसे पारंपरिक तरीकों का उपयोग करके तैयार किया जाता है। विशेष विशेषता जो इस डॉल को दूसरों से अलग करती है, वह है इसका गोल सिर और रोली पॉली संरचना। तंजावुर डॉल मूल रूप से टेराकोटा का उपयोग करके बनाई जाती है और कुशल कलाकारों द्वारा विशुद्ध रूप से हस्तनिर्मित होती है और इसे हाथों से ही पेंट किया जाता है।
भरतनाट्यम, कथकली और मनुपुरी आदि जैसे विभिन्न पारंपरिक नृत्य रूपों को दर्शाने के लिए इन कलाकारों द्वारा गुड़िया और खिलौनों को कई आकार, रंग और शैलियां दी जाती हैं। तंजावुर के स्थानीय लोग इसे तमिल में “तंजावुर थलैयट्टी बोम्मई“ कहते हैं, जिसका अर्थ है सिर हिलाने वाली गुड़िया। यह 19वीं सदी की सरबोजी साम्राज्य के शासन काल की एक प्राचीन कला है। दक्षिण भारत में नवरात्रि के दौरान तंजावुर डॉल की बहुत अधिक मांग होती है क्योंकि यह हिंदू भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है।
कठपुतली वास्तव में एक स्ट्रिंग कठपुतली होती है। यह राजस्थान की पारंपरिक हस्तनिर्मित रंगीन गुड़िया होती हैं। जिसमें कठपुतली के माध्यम से कई कैरेक्टर्स बनाए जाते हैं और इन्हें एक कलाकार द्वारा सिंगल स्ट्रिंग के माध्यम से नियंत्रित किया जाता है। कठपुतली शो राजस्थान में बेहद प्रसिद्ध है। इतना ही नहीं, देश के अलग-अलग राज्यों में भी कलाकार कठपुतली का शो करते हैं, जिसे लोग बेहद चाव से देखते हैं।
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यह छत्तीसगढ़ में बस्तर की प्रसिद्ध कला है। ढोकरा एक प्राचीन कला है जिसमें मोम की ढलाई तकनीक के माध्यम से शिल्प बनाए जाते हैं। इस प्रकार की धातु की ढलाई भारत में 4,000 वर्षों से अधिक समय से की जाती रही है और उसी पद्धति का अभी भी उपयोग किया जा रहा है। ढोकरा धातु की ढलाई का सबसे पुराना रूप है और अपनी सादगी के कारण लोकप्रिय है। यह छत्तीसगढ़ की विशेषता है। ढोकरा कारीगरों के उत्पाद बहुत प्रसिद्ध हैं जैसे ढोकरा घोड़े और हाथी।
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यह एक बेहद प्रसिद्ध और पारंपरिक हस्तशिल्प है जिसकी उत्पत्ति कर्नाटक के बीदर शहर में हुई थी। बिदरीवेयर धातुओं द्वारा किया जाने वाला एक कला रूप है। यह कलाकृति कर्नाटक की समृद्ध संस्कृति और विरासत को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करती है। इसमें कलाकृतियों और उत्पादों को विकसित करने के लिए बिदरीवेयर कारीगरों द्वारा जस्ता, तांबे और चांदी के मिश्रण का उपयोग किया जाता है। इस देशी कला को धन के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। यह भारत का एक महत्वपूर्ण निर्यात हस्तशिल्प है जो अपने कलात्मक धातु के काम के लिए विख्यात है। इस हस्तशिल्प का विकास 14 वीं शताब्दी में बहमनी सुल्तानों के शासनकाल के दौरान किया गया था।
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Image Credit: Wikimedia, amazon, authindia
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