हिंदू धर्म के अनुसार एकादशी तिथि का विशेष महत्त्व है। पूरे साल में 24 एकादशी तिथियां होती हैं और एक महीने में दो एकादशी तिथियां होती हैं। इन सभी तिथियों का और इनमें पूजन का विशेष प्रावधान और महत्त्व होता है। इन्ही तिथियों में से माघ मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जया एकादशी के नाम से जाना जाता है और इस दिन व्रत रखकर भगवान श्री विष्णु की विधि विधान से पूजा की जाती है। इस साल माघ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी 23 फरवरी को पड़ रही है। आइए जानें इसके महत्त्व, पूजा के मुहूर्त और सम्पूर्ण कथा के बारे में।
जया एकादशी का महत्त्व
पुराणों के अनुसार माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी को "जया एकादशी" के रूप में मनाया जाता है। यह एकादशी बहुत ही पुण्यदायी है, इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति नीच योनि जैसे भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्त हो जाता है। इस दिन श्रद्धा भाव से विष्णु भगवान का पूजन करने से सभी पापों से मुक्ति तो मिलती ही है, पुण्य की प्राप्ति भी होती है। कहा जाता है कि इस दिन व्रत करने से व्यक्ति के सभी दोष दूर हो जाते हैं और परिवार में सुख शांति आती है। मान्यतानुसार व्रत रखना फलदायी है यदि व्रत नहीं भी रखते हैं तो सात्विक भोजन ग्रहण करते है विष्णु पूजन करें।
जया एकादशी का शुभ मुहूर्त
पंडित राधे शरण शास्त्री जी के अनुसार इस साल यानी साल 2021 में जया एकादशी 23 फरवरी, मंगलवार को मनाई जाएगी।
- एकादशी तिथि आरंभ- 22 फरवरी 2021, सोमवार को शाम 05 बजकर 16 मिनट से
- एकादशी तिथि समाप्त- 23 फरवरी 2021, मंगलवार शाम 06 बजकर 05 मिनट तक।
- व्रत के पारण का शुभ मुहूर्त-24 फरवरी, प्रातः 06 बजकर 51 मिनट से प्रातः 09 बजकर 09 मिनट तक
- व्रत पारण अवधि- 2 घंटे 17 मिनट
जया एकादशी कथा
जया एकादशी की कथा के अनुसार एक बार नंदन वन में उत्सव चल रहा था। इस उत्सव में सभी देवता और दिव्य पुरूष वर्तमान थे। उस समय गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं। सभा में माल्यवान नामक एक गंधर्व और पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या का नृत्य चल रहा था। इसी बीच पुष्यवती की नज़र जैसे ही माल्यवान पर पड़ी वह उस पर मोहित हो गयी। पुष्यवती सभा की मर्यादा को भूलकर ऐसा नृत्य करने लगी कि माल्यवान उसकी ओर आकर्षित हो। माल्यवान गंधर्व कन्या की भंगिमा को देखकर सुध बुध खो बैठा और गायन की मर्यादा से भटक गया जिससे सुर ताल उसका साथ छोड़ गये।
इन्द्र को पुष्पवती और माल्यवान के इस अमर्यादित कृत्य पर क्रोध आया और उन्होंने दोनों को श्राप दे दिया कि आप स्वर्ग से वंचित हो जाएं और पृथ्वी पर निवास करें। मृत्यु लोक में अति नीच पिशाच योनि आप दोनों को प्राप्त हों। इस श्राप से तत्काल दोनों पिशाच बन गये और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर दोनों का निवास बन गया। एक बार माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन दोनो अत्यंत दु:खी थे और उस दिन दोनों ने फलाहार ही ग्रहण किया। रात्रि के समय दोनों को बहुत ठंढ़ लगी और ठंढ़ के कारण दोनों की मृत्यु हो गयी और अनजाने में जया एकादशी का व्रत रखने की वजह से उन्हें पिशाच योनि से मुक्ति भी मिल गयी। अब माल्यवान और पुष्पवती पहले से भी सुन्दर हो गयी और स्वर्ग लो में उन्हें स्थान मिल गया। इन्द्र इससे अति प्रसन्न हुए और कहा कि आप जगदीश्वर के भक्त हैं इसलिए आप अब से मेरे लिए आदरणीय है आप स्वर्ग में आनन्द पूर्वक विहार करें। श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को ये कथा सुनाई और बताया कि जया एकादशी के दिन जगपति जगदीश्वर भगवान विष्णु ही सर्वथा पूजनीय हैं। जो श्रद्धालु भक्त इस एकादशी का व्रत रखते हैं उन्हें दशमी तिथि से ही एक समय आहार करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि आहार सात्विक हो। ऐसा करने से निश्चय ही पुण्य की प्राप्ति होती है और समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।
पूजा की विधि
- इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें जहां तक संभव हो ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान करके विष्णु भगवान का पूरे श्रद्धा भाव से पूजन करें।
- यदि आप व्रत कर रहे हैं तो व्रत का संकल्प करके चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर विष्णु जी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
- विष्णु जी को रोली से टीका लगाकर पुष्प एवं भोग अर्पित करें एवं श्रद्धा भाव से पूजन करते हुए व्रत करें।
- ध्यान रखें व्रत के दौरान किसी से लड़ाई, झगड़ा न करें और सात्विक धर्म का पालन करें।
- भोजन में एक समय ही अन्न ग्रहण करें और नमक के सेवन से बचें यदि नमक का सेवन कर भी रहे हैं तो सेंधा नमक लें।
- इस दिन व्रत नहीं करते हैं तब भी चावल खाने से बचना चाहिए।
- पूजा के दौरान विष्णु सहस्रनाम का पाठ करते हुए आरती करें एवं सभी परिजनों को प्रसाद वितरित करें।
- पूरे दिन व्रत करने के बाद अगले दिन व्रत का पारण करें।
श्रद्धा भाव से विष्णु जी का पूजन करना विशेष रूप से फलदायी होता है और सभी पापों से मुक्ति भी मिलती है।
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