अंबानी, अडानी से कहीं ज्यादा अमीर था ये भारतीय बिजनेसमैन, जिससे मुगल-अंग्रेज लेते थे कर्ज

ब्रिटिश शासनकाल में भी भारत में एक ऐसा अमीर बिजनेसमैन और बैंकर था, जिससे अंग्रेज और मुगल कर्ज लिया करते थे। 
jagat seth was india richest banker and businessman who lent money to the mughals and british

एक समय ऐसा था जब भारत को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। यह उपाधि भारत को तब मिली थी, जब यह दुनिया का सबसे समृद्ध देश था और यहां पर अपार समृद्धि, सांस्कृतिक विरासत और आर्थिक संपन्नता का राज हुआ करता था। उस समय दुनियाभर के व्यापारी भारत के प्रति अकर्षित हुआ करते थे। हालांकि, समय के साथ मुगलों और अंग्रेजों ने हमारे देश पर आक्रमण किया और हमारे देश को लूटकर चले गए। हालांकि, ब्रिटिश हुकूमत के दौरान भी भारत में कुछ ऐसे व्यक्ति रहे, जिन्होंने अपने धन-दौलत के बल पर राज किया। उन्हीं में से एक थे मुर्शिदाबाद के जगत सेठ, जिन्हें सेठ फतेहचंद के नाम से जाना जाता था।

उस समय बंगाल का मुर्शिदाबाद व्यापारियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा करता था और हर कोई इस जगह और जगत सेठ को जानता था। 18वीं सदी में एक व्यापारी और बैंकर के रूप में सेठ फतेहचंद का नाम मशहूर था और उस समय उनके पास 8.3 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति हुआ करती थी। उन्होंने अंग्रेजों और मुगलों को कर्ज दिया था, तो आइए विस्तार से जानते हैं जगत सेठ बारे में और उनके कारनामों के बारे में भी-

कौन थे जगत सेठ?

jagat seth family today

आपको बता दें कि जगत सेठ एक उपाधि थी, जिसे मुगल सम्राट मोहम्मद शाह ने 1723 को सेठ फतेहचंद को दी थी। इसके बाद से पूरे परिवार को जगत सेठ के नाम से जाना जाने लगा था। कहा जाता है कि 1652 में जगत सेठ परिवार के हीरानंद साहू मारवाड़, राजस्थान छोड़कर पटना आ गए थे। उन दिनों पटना व्यापारिक केंद्र हुआ करता था। पटना में हीरानंद शाहू ने शोरा का बिजनेस शुरू किया था और उन दिनों यूरोपियन व्यापारी शोरा की खरीदारी करने आया करते थे।

हीरानंद शाहू शोरा के बिजनेस के साथ-साथ कर्ज भी दिया करते थे और जल्दी ही वह धनवान साहूकारों में गिने जाने लगे थे। हीरानंद शाहू के 7 बेटे थे, जो बिजनेस करने के लिए इधर-उधर चले गए थे। उन्हीं के बेटे थे माणिक चंद, जो ढाका जाकर व्यापार करने लगे थे। 1700 के दशक में माणिक चंद ने राजकुमार फर्रुखसियार को मुगल सम्राट बनने में आर्थिक मदद की थी और पुरस्कार के तौर पर मुगल सम्राट ने उन्हें जगत सेठ की उपाधि से सम्मानित किया था।

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माणिकचंद ने 50 साल तक राज किया

व्यापारिक रणनीति और राजनीतिक शक्ति के दम पर माणिक चंद ने करीब 50 साल तक राज किया था। उस समय, बंगाल का सबसे बड़ा बैंकर और बिजनेसमैन माणिक चंद को कहा जाता था और उन्हें सिक्के ढालने का भी अधिकार दिया गया था। जगत सेठ की कंपनी की तुलना बैंक ऑफ इंग्लैंड से की जाती थी। जगत सेठ की कंपनी टैक्स कलेक्शन, फाइनेंशियल मैनेजमेंट और फॉरेन कंरेसी का भी काम करती थी। कई रिपोर्ट्स के अनुसार, जगत सेठ के परिवार की संपत्ति ब्रिटिश साम्राज्य से कहीं ज्यादा थी। कहा जाता है कि 1718 से 1757 तक ईस्ट इंडिया कंपनी जगत सेठ की कंपनी से सालाना 4 लाख रुपये कर्ज लेती थी। इसके अलावा, डच, फ्रेंच कंपनियां और भारत के राजा-महाराज भी कंपनी से कर्ज लिया करते थे।

सेठ फतेह चंद के समय जगत सेठ परिवार फला-फूला

माणिक चंद के बाद, जगत सेठ परिवार की बागडोर फतेह चंद के पास आ गई और इस दौरान जगत सेठ परिवार के सितारे बुलंदियों को छूने लगे। कहा जाता है कि सेठ फतेह चंद के समय जगत सेठ परिवार की कुल संपत्ति 10,000,000 पाउंड की थी। ब्रिटिश सरकार के डॉक्यूमेंट्स के हिसाब से, इंग्लैंड के सभी बैंकों की तुलना में जगत सेठ परिवार के पास बहुत ज्यादा पैसा था।

इस संपत्ति की देखरेख करने के लिए जगत सेठ परिवार के पास 2000 से 3000 सैनिक हुआ करते थे, जो संपत्ति की रखवाली किया करते थे। कहा जाता है कि जगत सेठ के पास इतना पैसा था कि उन्होंने अलीवर्दी ख़ां को बंगाल की गद्दी पर बिठाने के लिए सैन्य तख्तापलट की योजना बनाई थी और उसे आर्थिक मदद भी दी थी। उस समय बंगाल में जगत सेठ परिवार का ही शासन हुआ करता था और वह जिसे चाहे उसे बंगाल की गद्दी पर बिठा सकते थे और उतार सकते थे।

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जगत सेठ परिवार का पतन कैसे हुआ?

house of jagat seth

सेठ फतेह चंद के बाद, उनका पौत्र महताब चंद जगत सेठ बना था। हालांकि, उनके रिश्तेदार महाराज स्वरूप चंद ने गद्दी संभाली थी। अलीवर्दी ख़ां के शासनकाल में जगत सेठ परिवार के पास बहुत शक्ति थी। हालांकि, जब बंगाल की गद्दी पर सिराजुद्दौला का कब्जा हुआ, तो सबकुछ बदल गया। बंगाल के नए नवाब सिराजुद्दौला ने जगत सेठ परिवार से 30 मिलियन रकम की मांग की थी, जिसे परिवार ने अस्वीकार कर दिया था। इसकी वजह से सिराजुद्दौला ने जगत सेठ परिवार पर आक्रमण कर दिया था।

फिर, सिराजुद्दौला को हराने के लिए जगत सेठ परिवार ने ईस्ट इंडिया कंपनी के रॉबर्ट क्लाइव के साथ मिलकर साजिश रची थी और अंग्रेजों को फंड भी दिया था। प्लासी युद्ध के बाद, सिराजुद्दौला की हार हुई थी और बंगाल का नया नवाब मीर कासिम बना था। 1763 में, मीर कासिम ने महताब चंद और स्वरूप चंद की हत्या की साजिश रची थी और उन्हें मरवा दिया था। महताब चंद की मृत्यु के बाद, उनके बेटे कुशाल चंद ने जगत सेठ की उपाधि ली थी। हालांकि, कुशाल उस समय 18 साल के थे और उन्हें किसी भी तरह का ज्ञान नहीं था।

1860 के दशक तक, जगत सेठ परिवार अर्श से फर्श पर आ चुका था। उन्होंने अपनी जमीनों को गिरवी रखना शुरू कर दिया था और ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी उनसे जो पैसा लिया था उसे वापस करने से इनकार कर दिया था। 1900 के दशक तक, जगत सेठ परिवार का नामोनिशान मिट गया था।

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Image Credit - social media,wikipedia

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