किसी भी मंदिर के प्रसाद की अपनी अलग विशेषताएं होती हैं। आमतौर पर मंदिर में जो भगवान के आशीर्वाद स्वरुप भोग भक्तों को दिया जाता है उसे प्रसाद ही कहा जाता है, लेकिन जगन्नाथ पुरी के मंदिर में मिलने वाले भोग को महाप्रसाद का नाम दिया गया है। ऐसी मान्यता है कि जो भक्त इस प्रसाद को ग्रहण करता है उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उसे भगवान जगन्नाथ का आशीष मिलता है।
यह प्रसाद किसी भी अन्य मंदिर से भिन्न होता है और विशेष महत्व रखता है। वास्तव में यह कुछ अलग तरह से तैयार किया जाता है इसे लाखों की संख्या में लोग ग्रहण करने पहुंचते हैं। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी जी से जानें जगन्नाथ जी के महाप्रसाद से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में।
उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर को अत्यंत लोकप्रिय तीर्थस्थल के रूप में जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यहां की रसोई कुछ ख़ास है और दुनिया की सबसे बड़ी रसोई है। इसी रसोई में महाप्रसाद तैयार किया जाता है और इसे सैकड़ों की संख्या में लोग मिलकर तैयार करते हैं।
ऐसी मान्यता है कि इस रसोई में महाप्रसाद का निर्माण स्वयं माता लक्ष्मी करवाती हैं। यही नहीं जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान भी इसका भोग अर्पित किया जाता है और सभी भक्तों में वितरित किया जाता है। इस रसोई में नियमित 56 भोग तैयार किए जाते हैं।
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जगन्नाथ मंदिर की रसोई में तैयार किया जाने वाला महाप्रसाद बहुत शुद्ध तरीके से बनाया जाता है और इसमें लहसुन व प्याज का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। यह भोजन पूर्ण रूप से सात्विक होता है और इसे धर्म ग्रंथों में बताए गए नियमों के अनुसार ही बनाया जाता है। इस महाप्रसाद की ख़ास बात यह है कि इसे
मिट्टी के बर्तनों में ही तैयार किया जाता है। इसके साथ ही मिट्टी के बर्तनों का रंग लाल होता है। इसके साथ ही मान्यता यह भी है कि रोज महाप्रसाद तैयार करने के लिए नए बर्तनों का इस्तेमाल किया जाता है।
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मान्यता है कि इस रसोई में कितने भी लोग भोजन ग्रहण कर लें और महाप्रसाद क्यों न ले लें लेकिन इसकी मात्रा कभी कम नहीं हो सकती है। यही नहीं महाप्रसाद में मिलने वाली सामग्री कभी भी बेकार नहीं जाती है। इस रसोई की खासियत ही यह है कि इसमें हजारों से लेकर लाखों की संख्या में लोग रोज महाप्रसाद ग्रहण करते हैं और ये सभी की भूख कम करने का काम करता है। यहां नियमित रूप से महाप्रसाद में तैयार होने वाली सामग्री मानो पूरे साल के लिए भी पर्याप्त होती है।
भगवान जगन्नाथ के महाप्रसाद को मंदिर के पास स्थित दो कुओं के पानी से तैयार किया जाता है। इन कुओं को गंगा -जमुना नाम से जाना जाता है। चूंकि इसका नाम दो पवित्र नदियों के नाम पर रखा गया है इसलिए इनके पानी से तैयार महाप्रसाद बहुत ही शुद्ध और पवित्र होता है। जगन्नाथ भगवान को नियमित रूप से 6 वक्त भोग लगाया जाता है जिसमें 56 तरह के व्यंजन शामिल होते हैं।
जगन्नाथ जी के भोग में रोज 56 तरह के ऐसे भोग तैयार किए जाते हैं जो भगवान जगन्नाथ को प्रिय हैं। इस महाप्रसाद की खासियत यह है कि मंदिर की रसोई में प्रसाद तैयार करने के लिए लिए 7 मिट्टी के बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं और यह महाप्रसाद लकड़ी पर ही तैयार किया जाता है।
इन बर्तनों में सबसे ऊपर रखी सामग्री सबसे पहले पक जाती है और उसके बाद एक के बाद एक चीजें तैयार होती हैं। वास्तव में यह भी किसी चमत्कार से कम नहीं है कि यहां सबसे ऊपर रखा भोजन सबसे पहले तैयार हो जाता है।
वास्तव में इस महाप्रसाद की खासियत पूरे देश में मशहूर है और लाखों लोगों की भूख को कम करने का एक जरिया है।
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