हिंदू धर्म के प्रमुख व्रत एवं त्योहारों की ही तरह जगन्नाथ रथ यात्रा भी विशेष मानी जाती है। रथ यात्रा के समय भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा जी के साथ यात्रा पर निकलते हैं और पास ही में स्थित गुंडिचा देवी मंदिर में विराजते हैं।
मान्यता है कि इस यात्रा के दौरान भगवान 12 दिनों के लिए अपनी मौसी के घर में रहते हैं और वहीं उनकी विशेष रूप से पूजा और आरती होती है। इन दिनों में भक्त ईश्वर की भक्ति में लीन रहते हैं।
जगन्नाथ मंदिर के मुख्य पंडित श्री माधव चंद्र महापात्र जी के अनुसार रथ यात्रा के समय इस रथ में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा जी के साथ सुदर्शन और माता लक्ष्मी व सरस्वती भी होते हैं। इन सभी भगवानों को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। भगवान जगन्नाथ का रथ नंदीघोष कहलाता है। आखिर ऐसा क्यों कहा जाता है कि जगन्नाथ जी अपनी मौसी के घर जाते हैं, आइए जानें इसके बारे में।
भगवान जगन्नाथ क्यों जाते हैं मौसी के घर
रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ मौसी के घर जाते हैं और ऐसा माना जाता है कि इन नौ दिनों में वो आराम करते हैं। भगवान जगन्नाथ, बलराम और बहन ये तीनों रथ में सवार होकर मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। भगवान जगन्नाथ रथ अपने रथ नंदीघोष में बैठकर सिंह दरवाजा से चलते हुए गुंडिचा मंदिर में जाते हैं। सिंह दरवाजा में भगवान 3 दिन और गुंडिचा मंदिर में 9 दिन रहते हैं। इस तरह यह पूरी रथ यात्रा 12 दिनों तक चलती है।
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कौन हैं भगवान जगन्नाथ की मौसी गुंडिचा देवी
ऐसा माना जाता है कि मुख्य मंदिर के निर्माता की रानी का नाम गुंडिचा था और उन्हीं को जगन्नाथ जी की मौसी के रूप में जाना जाने लगा। जब भगवान अपनी मौसी के घर अपने भाई बहन समेत जाते हैं तब उनका बहुत स्वागत सत्कार किया जाता है।
मौसी के घर में भगवान को मौसी का पूरा प्यार मिलता है और उन्हें कई तरह के भोग चढ़ाए जाते हैं जो उनके स्वागत का तरीका माने जाते हैं। भगवान् मौसी के घर में विभिन्न पकवान खाते हैं और इस समय का पूरा आनंद लेते हैं। इस दौरान मंदिर को कुछ समय के लिए भक्तों के लिए बंद किया जाता है और 9 दिनों के बाद जब वो बाहर आते हैं तो रथ यात्रा निकाली जाती है।
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भगवान जगन्नाथ को लेने आती हैं माता लक्ष्मी
मान्यता है कि माता लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ से भेंट करने गुंडिचा मंदिर आती हैं, लेकिन उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं दिया जाता है और वो नाराज होकर अपने मंदिर में वापस लौट जाती हैं। जगन्नाथ जी को इस बारे में पता चलता है तो वो लक्ष्मी जी को मनाने जाते हैं। कोशिश करने के बाद जगन्नाथ जी माता लक्ष्मी को मना पाते हैं। इसके बाद रथ यात्रा वापस आती है और भगवान मुख्य मंदिर में आकर विराजते हैं।
कब होती है रथ यात्रा
आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है और यह उत्सव पूरे 12 दिनों तक धूम-धाम से मनाया जाता है। इस साल यह यात्रा 20 जून को आरंभ होगी और 12 दिनों तक यह उत्सव मनाया जाएगा। जगन्नाथ रथ यात्रा का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। भगवान जगन्नाथ को श्रीकृष्ण का ही रूप माना जाता है और इन दिनों में उनकी विशेष रूप से पूजा होती है।
क्या है रथ यात्रा का महत्व
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा पूरे देश में धूमधाम से मनाई जाती है और उनकी पूजा भक्तों द्वारा पूरी श्रद्धा से की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान जो भक्त जगन्नाथ भगवान का पूजन करते हैं उनकी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
इस प्रकार जगन्नाथ रथ यात्रा को पूरे देश में मनाया जाता है और भक्त अपने इष्ट की भक्ति में लीन होते हैं। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से। अपने विचार हमें कमेंट बॉक्स में जरूर भेजें।
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