दुनिया भर के देशों में समाज और देश की सीमाओं की सुरक्षा के लिए पुलिस और सेना की तैनाती की जाती है। जहां, पुलिस का काम समाज में हो रहे अपराधों की जांच करना है और भविष्य के लिए उन्हें रोकने की दिशा में काम करना है। वहीं, सेना का काम देश के हर हिस्से को जल, थल और नभ के जरिए सुरक्षा प्रदान करना है। लेकिन, कई बार हमें ऐसी खबरें सुनने को मिलती हैं, जिसमें सिविल पुलिस और सेना के जवान आपस में ही भिड़ जाते हैं। पिछले साल, राजस्थान के जयपुर से ही एक ऐसी खबर सामने आई थी, जिसमें जयपुर पुलिस ने थाने में सेना के जवान को निर्वस्त्र करके पीटा था। ऐसे में, हमारे मन में सवाल आता है कि क्या पुलिस के पास सेना के जवान को गिरफ्तार करने का अधिकार होता है?
आज हम इस आर्टिकल में आपको बताने वाले हैं कि किन परिस्थितियों में पुलिस, सैन्यकर्मियों को गिरफ्तार कर सकती है और उन्हें किन प्रोटोकॉल को फॉलो करना होता है।
सेना अधिनियम, 1950 की धारा 70, वायु सेना अधिनियम, 1950 की धारा 72 और तटरक्षक अधिनियम, 1978 की धारा 50 के तहत, सेना का जवान ड्यूटी के दौरान या भारत के बाहर किसी मिलिट्री, एयर फोर्स या नेवी में काम करने वाले व्यक्तियों को छोड़कर कहीं और रेप, मर्डर या किडनैपिंग करता है, तो उस पर कोर्ट मार्शल द्वारा मुकदमा नहीं चलाया जाता है।
ऐसे में, सिविल पुलिस सैन्य कर्मी को बिना अनुमति के गिफ्तार कर सकती है, जब वे रेप, हत्या और अपहरण जैसे अपराधों में शामिल हो, जो उसके काम से संबंधित नहीं हो।
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आपको बता दें कि भारतीय संविधान में Code of Criminal Procedure, 1973 के तहत, सेना के कर्मियों को सुरक्षा के लिए विशेषाधिकार दिए गए हैं।
सेक्शन 45 के तहत, आर्म्ड फोर्स के किसी भी मेंबर को उसकी ऑफिशियल ड्यूटी के दौरान या ड्यूटी से जुड़ी किसी कार्रवाई के दौरान, सिविल पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकती है। जब तक केंद्र सरकार अनुमति नहीं देती है।
इसके अलावा, किसी दूसरे मामले में अगर सिविल पुलिस अरेस्ट करती है, तो सेना अधिनियम की धारा 104, वायु सेना अधिनियम की धारा 105 और तटरक्षक अधिनियम की धारा 61 के तहत, सिविल पुलिस को तुरंत कमांडिंग ऑफिसर को सूचना देना आवश्यक है।
सेक्शन 197(2) के तहत, किसी भी सैन्यकर्मी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं चलाई जा सकती है, जो उनके द्वारा अपनी ऑफिशियल ड्यूटी या ड्यूटी से जुड़ी किसी कार्रवाई के दौरान की गई हो। हालांकि, केंद्र सरकार की अनुमति मिलने के बाद सैन्यकर्मी पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।
इस सेक्शन के तहत, यदि कोई सेना का जवान सिविल कोर्ट में किसी मामले में आरोपी होता है, तो कोर्ट मार्शल में सुनवाई के लिए उसके कमांडिंग ऑफिसर को सौंपा जा सकता है। मजिस्ट्रेट को इस धारा के तहत, सैन्यकर्मी को कमांडिंग ऑफिसर के पास भेजना होता है।
जब किसी सेना के जवान पर किसी मामले को लेकर आरोप लगता है, तो मामला सिविल कोर्ट और कोर्ट मार्शल के पास आता है। कोर्ट मार्शल का फैसला आखिरी होता है, क्योंकि यहां पर सेना के नियमों के अनुसार फैसला किया जाता है। वहीं, सिविल कोर्ट, कोर्ट मार्शल के फैसले को ध्यान में रखते हुए फैसला सुनाती है।
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सेक्शन 41(1)(f) के तहत, सिविल पुलिस को किसी डिफेंस पर्सनल को गिरफ्तार करने की अनुमति तब मिलती है, जब उन्हें संदेह होता है कि यह शख्स आर्म्ड फोर्स से भगोड़ा है।
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