तुलसी का पौधा हिंदू धर्म में बहुत पवित्र और पूजनीय माना जाता है। इसे देवी तुलसी का रूप माना जाता है और लगभग हर हिंदू घर में तुलसी का पौधा पाया जाता है। तुलसी की पूजा रोज की जाती है और मान्यता है कि इसकी पत्ती भगवान को अर्पित करने से विशेष पुण्य और शुभ फल मिलते हैं।
अधिकतर लोग भगवान को प्रसन्न करने के लिए हर देवी-देवता को तुलसी की पत्ती चढ़ा देते हैं। लेकिन यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि कुछ देवताओं को तुलसी की पत्ती अर्पित नहीं करनी चाहिए। खासकर भगवान गणेश और उनके पूरे परिवार को तुलसी नहीं चढ़ाई जाती है। इसमें भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान कार्तिकेय भी शामिल हैं।
अब सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों? उज्जैन के प्रसिद्ध पंडित और ज्योतिषाचार्य मनीष शर्मा जी के अनुसार, तुलसी की पत्ती भगवान गणेश और उनके परिवार को अर्पित करना शास्त्रों में वर्जित माना गया है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा भी है।
कथा के अनुसार, तुलसी देवी ने एक बार भगवान गणेश से विवाह का प्रस्ताव रखा था, जिसे गणेश जी ने विनम्रता से अस्वीकार कर दिया। इससे नाराज होकर तुलसी ने उन्हें श्राप दे दिया कि उनका विवाह नहीं होगा। इसके जवाब में गणेश जी ने भी तुलसी को श्राप दिया कि वह किसी देवता को प्रिय नहीं होंगी। हालांकि बाद में भगवान विष्णु ने तुलसी को आशीर्वाद दिया और तब से तुलसी उन्हें प्रिय मानी जाती हैं।
ऐसा क्यों है, इसके पीछे की कथा भी पंडित जी ने हमें सुनाई, जो आप भी जान लीजिए-
यह देवी तुलसी के पूर्व जन्म की कथा है, जब उनका जन्म वृंदा के रूप में हुआ था। वृंदा की शादी जालंधर नाम के एक राक्षस से हुई थी। हालांकि, वृंदा स्वभाव से बहुत ही अच्छी थी और पतिव्रता भी थी। वृंदा के धार्मिक होने की वजह से सभी देवी-देवता उसे पसंद करते थे। पंडित जी आगे की कथा बताते हैं और कहते हैं, 'वृंदा को यह वरदान मिला था कि जब तक वह पतिव्रता रहेगी उसके राक्षस पति को कोई भी हानि नहीं पहुंचा पाएगा। इस बात का फायदा उठा कर जालंधर तीनों लोक में त्राहि-त्राहि मचा रहा था। कोई भी देवी या देवता उसका वध नहीं कर पा रहा था क्योंकि वृंदा अपने पति से बहुत अधिक प्रेम करती थी और पति के अलावा किसी और के बारे में नहीं सोचती थी।'
जब जालंधर के पाप और शक्तियां इतनी बढ़ गई कि उसके जीवित रहने पर देवी-देवताओं को खतरा महसूस होने लगा, तब मानव जाति की रक्षा के लिए भगवान शिव और जगतपिता नारायण ने एक षड्यंत्र रचा। पंडित जी बताते हैं, 'एक दिन भगवान विष्णु जालंधर का रूप धारण कर वृंदा के पास पहुंच गए। वृंदा भगवान विष्णु को ही अपना पति समझ बैठी, जिससे उसका पतिव्रता धर्म भंग हो गया। ऐसा होते ही भगवान शिव ने जालंधर का वध कर दिया।'
इसे जरूर पढ़ें: Expert Tips: तुलसी के पत्तों को तोड़ने से पहले इन 6 बातों का रखें ख्याल
जब यह बात वृंदा को पता चली तो उसने आत्मदाह कर लिया। वृंदा की राख से एक पौधे का जन्म हुआ, जिसे तुलसी कहा गया। जाते-जाते वृंदा ने भगवान विष्णु को पाषाण (पत्थर) बनने का श्राप दिया। मगर देवी लक्ष्मी (मां लक्ष्मी को ऐसे करें प्रसन्न) के आग्रह पर वृंदा ने अपना श्राप वापिस ले लिया। इस पर भगवान विष्णु ने पत्थर के रूप (शालिग्राम) में तुलसी से विवाह किया और यह प्रण लिया कि तुलसी के बिना वह अन्न-जल नहीं ग्रहण करेंगे तब से तुलसी सभी देवी-देवताओं की प्रिय हो गई और इसे शुभ माना जाने लगा। लेकिन एक श्राप वृंदा ने पूरे शिव परिवार को भी दिया कि तुलसी का उसे कभी कोई संबंध नहीं होगा।
यही कारण है कि पूरे शिव परिवार पर तुलसी की पत्ती को अर्पित नहीं किया जाता है।
इसे भी पढ़ें- गणेश चतुर्थी पर इन विशेज के साथ दें अपनों को शुभकामनाएं
इसे जरूर पढ़ें: Expert Tips: देवी लक्ष्मी की कृपा चाहती हैं तो सही दिशा में रखें तुलसी का पौधा
भगवान गणेश से जुड़ी यह जानकारी आपको अच्छी लगी हो, तो इस आर्टिकल को शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह धर्म से जुड़े और भी आर्टिकल्स पढ़ने के लिए देखती रहें हरजिंदगी।
यह विडियो भी देखें
Herzindagi video
हमारा उद्देश्य अपने आर्टिकल्स और सोशल मीडिया हैंडल्स के माध्यम से सही, सुरक्षित और विशेषज्ञ द्वारा वेरिफाइड जानकारी प्रदान करना है। यहां बताए गए उपाय, सलाह और बातें केवल सामान्य जानकारी के लिए हैं। किसी भी तरह के हेल्थ, ब्यूटी, लाइफ हैक्स या ज्योतिष से जुड़े सुझावों को आजमाने से पहले कृपया अपने विशेषज्ञ से परामर्श लें। किसी प्रतिक्रिया या शिकायत के लिए, [email protected] पर हमसे संपर्क करें।