Chaitanya Mahaprabhu Ke Bare Mein: आप में से बहुत से लोगों ने चैतन्य महाप्रभु का नाम सुना होगा। वहीं, जो लोग गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय से दीक्षित हैं उन्हें अवश्य ही चैतन्य महाप्रभु के बारे कें बहुत सी रोचक बातों का ज्ञान होगा। लेकिन जो लोग इन्हें नहीं जानते हैं या इनसे जुड़ी परम पावन कथा से अनजान हैं आज हम उन सभी को हमारे ज्योतिष एक्सपर्ट डॉ राधाकंता वत्स द्वारा दी गई जानकारी एक आधार पर चैतन्य महाप्रभु के महान व्यक्तित्व से अवगत कराने जा रहे हैं।
चैतन्य महाप्रभु वैष्णव धर्म के प्रचारक और महान कवि थे। इसके अलावा, वह दिव्य संत और वैदिक आध्यात्मिक ज्ञान के प्रदायक भी माने जाते थे। चैतन्य महाप्रभु ने ही वैष्णवों के गौड़ीय संप्रदाय की नींव रखी थी और संकीर्तन परंपरा की शुरुआत की थी। यूं तो चैतन्य महाप्रभु भगवान श्री कृष्ण (श्री कृष्ण के आगे क्यों लगता है श्री) और राधा रानी के परम भक्त थे लेकिन जानकारों का मानना है कि वह स्वयं श्रीराधाकृष्ण के संयुक्त अवतार थे।
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चैतन्य महाप्रभु के नाम का अर्थ निकाला जाए तो चैतन्य का अर्थ होता है 'जागरुक', महा का अर्थ होता है 'महान' और प्रभु यानी 'भगवान या गुरु'। चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी ही उन्हें अवतरित आत्मा नहीं मानते थे बल्कि धर्म-ग्रंथों में भी उनके कृष्ण अवतार होने की बात कही गई है। धर्म ग्रंथों में इस बात का वर्णन मिलता है कि चैतन्य महाप्रभु का जन्म श्री कृष्ण के समान दिव्य विशेषताओं के साथ हुआ था।
हालाकि एक सत्य यह भी है कि चैतन्य महाप्रभु ने कभी खुद को कृष्ण अवतार नहीं कहा वह स्वयं को हमेशा कृष्ण भक्त ही कहते थे लेकिन पुराणों, उपनिषदों, शास्त्रों और महान आध्यात्मिक गुरुओं द्वारा चैतन्य महाप्रभु के श्रीकृष्ण अवतार होने की पुष्टि हमेशा से की जाती रही है। माना जाता है कि चैतन्य महाप्रभु का रूप, उनके गुण, उनकी विशेषताएं और उनकी लीलाएं पूर्ण तह कृष्ण से मेल खाती हैं।
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चैतन्य महाप्रभु ने श्रीगोपाल भट्ट को दीक्षित किया था। ब्रज में श्री गोपालभट्ट जूं को चैतन्य महाप्रभु के शिष्य के साथ-साथ महान भक्त के रूप में भी जाना जाता है। चैतन्य महाप्रभु ने श्री गोपालभट्ट को वैष्णव धर्म की शिक्षा के साथ शास्त्रीय प्रमाणों सहित एक स्मृति ग्रंथ की रचना का आदेश दिया था। ग्रंथ रचना के बाद उन्होंने वैष्णव (क्या होता है वैष्णव तिलक) संप्रदाय के अंतर्गत गौड़ीय संप्रदाय की स्थापना की और वृंदावन में निवास करने लगे।
श्रीगोपाल भट्ट जी ने जिस ग्रंथ की रचना की थी उसका नाम था 'हरिभक्ति विलास स्मृति'। यह ग्रंथ प्रमाणसहित 251 ग्रंथों के अध्ययन के बाद निर्मित हुआ था। चैतन्य भागवत नामक ग्रंथन में चैतन्य महाप्रभु की दिव्य लीलाओं और संपूर्ण जीवन का उल्लेख मिलता है और उन्हीं वर्णित लीलाओं के आधार पर यह माना जाता है कि वह श्री राधाकृष्ण के संयोग का अवतार थे और उन्हीं के कारण लुप्त हुए वृन्दावन में कृष्ण भक्ति के पुनः संचार हुआ था।
तो ये थीं चैतन्य महाप्रभु से जुड़ी रोचक और मनोरम बातें। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर जरूर शेयर करें और इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ। आपका इस बारे में क्या ख्याल है? हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।
Image Credit: Social Media
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