सुशांत दिवगीकर एक एलजीबीटीक्यू कार्यकर्ता, सिंगर, ट्रांसवुमन और ड्रैग परफॉर्मर हैं। हमारे समाज में लोग LGBTQ+ कम्युनिटी के लोगों को लेकर अलग-अलग भ्रांतियां हैं। एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के लोगों को समाज में आज भी गलत नजरिए से देखा जाता है। ड्रैग परफॉर्मरसुशांत दिवगीकर ने एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी से जुड़ी कुछ बातें हर जिंदगी के साथ शेयर की हैं। सुशांत एक प्रेरणा बनकर उन सभी बाधाओं और रूढ़िवादी सोच को खत्म कर रही हैं जो एलजीबीटीक्यू समुदाय से जुड़ी हुई हैं।
ड्रैग परफॉर्मर का मतलब क्या होता है?
सुशांत दिवगिकर के अनुसार, "ड्रैग परफॉर्मर एक तरह की कला है जो मल्टीडिसीप्लिनरी होती है। इसमें कई सारी चीजें शामिल होती हैं जैसे डांस, कॉमेडी, गाना, आदि। सुशांत दिवगिकर के अनुसार, ड्रैग अपने आप में एक सेल्फ एक्सप्रेशन होता है और यह हमारी प्रतिभा को भी दर्शाता है। जब मैं गाना गाती हूं तो कोई यह नहीं देखता है कि क्या यह गाना कोई ट्रांसजेंडर गा रहा है या कोई अन्य व्यक्ति गा रहा है। मेरा मानना है कि कला को किसी भी जेंडर तक सीमित नहीं रखना चाहिए। मैं यह जानती हूं कि जब मैं स्टेज पर आती हूं तो लोग मुझे अलग नजरिए से देखते हैं पर मैं मानती हूं कि मैं लोगों से और लोग मुझसे इसलिए कनेक्ट कर पाते हैं वह सिर्फ इसलिए हमारे बीच में कला है। जब पहली बार मैंने ड्रैग परफार्मेंस दिया था तब मुझे जान से मारने की धमकी तक दी गई थी लेकिन आज अलग-अलग भारतीय मंत्रालय भी इसे प्रोत्साहित करते हैं।"(क्या होता है किन्नरों का 'चेला' रिवाज?)
'आपकी तालियों से हमें डर नहीं लगता'
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सुशांत दिवगिकर ने हरजिंदगी से बात करके यह भी शेयर किया, "अगर आप आदमी होकर ट्रांसजेंडर को देखकर घबराते हैं तो इससे यह समझ भी आता है कि आप हमारा कितना सम्मान करते हैं और यह इस बात को भी दर्शाता है कि आपकी मर्दानगी बहुत नाजुक है। मेरा मानना है कि लोगों को हमसे डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि जब मैं लोगों से डरती थी तब समाज के इन्हीं लोगों ने मुझे दबाने का प्रयास किया और नीचे धकेलने की कोशिश भी की लेकिन आज अगर मुझे कोई पीछे करने का प्रयास करते है तो उसे यह देखने की जरूरत है कि मैंने अपनी जिंदगी में किस मुकाम को हासिल किया है और देश-विदेश में अपनी पहचान कैसे बनाई है। अगर आपको हमारी तालियों से डर लगता है तो उसमें हमारी कोई गलती नहीं है लेकिन हमें आपकी तालियों से डर नहीं लगता है।
सिर्फ यही नहीं, कई लोगों का यह सवाल भी होता है कि हेट से कैसे डील करते हैं। इसका जवाब मैं सिर्फ यही देती हूं कि हेट करने के लिए मेरे पास कोई समय नहीं है और मैं हमेशा प्यार और शांति में विश्वास रखती हूं।"इसे भी पढ़ें- ऋषभ नंदा से जानिए किस प्रकार बॉलीवुड फिल्मों में LGBTQ+ समुदाय को किया गया है पोर्ट्रे
रानी से लेकर सुशांत दिवगिकर तक का सफर कैसा था?
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सुशांत दिवगिकर भारतीय मॉडल हैं और मिस्टर गे वर्ल्ड 2014 में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया है। बिग बॉस 8 में भाग लेने के दौरान उन्हें लोगों के बीच पहचान मिली है और वह एलजीबीटीक्यू समुदाय की सबसे मजबूत आवाज़ों में से एक हैं। सुशांत ने यह भी बताया, "भारत में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था जब कोई ड्रैग परफार्मेंस के साथ-साथ गाना और रैंप वॉक कर रहा हो। टाइम्स स्क्वायर से लेकर लॉस एंजिल्स से लेकर न्यूयॉर्क के कई हिस्सों में मैंने अपनी परफॉर्मेंस दी है। मेरे लिए यह बहुत खात बात कि थी कि मैंने emmy award nomination का सफर भी देखा है। मुझे आइकॉन बनने का मौका मिला जो शायद ही किसी भारतीय सिंगर को बनने का अवसर मिलता है। बाधाओं को तोड़ कर और समाज में एलजीबीटीक्यू समुदाय के बारे में रूढ़िवादी सोच को खत्म करके मैंने समाज में अपनी पहचान बनाई भले ही मुझे कई परेशानियों का सामना करना पड़ा था।"यह भी पढ़ें: Living With Pride: रेनबो कम्युनिटी के लिए खास डेटिंग ऐप्स जो आ सकते हैं काम
आपके लिए प्राइड सेलिब्रेट करने का क्या अर्थ है?
सुशांत ने बताया कि "मेरा मानना है कि हमारी पूर्व जो मां रही थी या वो सभी लोग जो एलजीबीटीक्यू समुदाय से जुड़े हुए थे उन्होंने कई संघर्ष किए थे। तो उन सभी का सम्मान करना बहुत जरूरी है। लोग मुझसे यह भी कहते हैं कि हमारे कल्चर में ये सभी चीजें नहीं होती है। मैं उन सभी लोगों को यह बताना चाहती हूं कि भगवान राम की रामायण से लेकर शिखंडी तक, ऐसे कई उदाहरण हैं जो हमारे समाज से बहुत पहले से ही जुड़े हुए हैं। अगर आप हमारा सम्मान नहीं करते हैं तो इससे यह भी नजर आता है कि आप भगवान का सम्मान नहीं करते हैं क्योंकि मेरा मानना है कि हम सभी में भगवान होते हैं। इसलिए जो लोग मुझे ऐसी बातें कहते हैं वह बिल्कुल गलत और आपके किन्नर या फिर कुछ और शब्द बोलने से हम नहीं डरते हैं। मैं बस यह जानती हूं कि अगर मुझे कोई किन्नर बोलता है तो वह सुनकर मुझे बस यह समझ आता है कि आपकी सोच कैसी है क्योंकि हम किसी मर्द को या महिला को देखकर यह नहीं कहते हैं कि वह मर्द है या महिला है।"
"सभी चीजों को एक्सेप्ट करना है जरूरी"
"मैं बस यह कहना चाहूंगी कि किसी भी किताब को उसके कवर से जज नहीं करना चाहिए। इस बात से आपको कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए कि कोई व्यक्ति खुद को किस रूप में देखना पसंद करता है फिर चाहे वह कोई महिला हो, पुरुष हो या फिर ट्रांस हो।"
सुशांत का सफर बहुत संघर्षों से भरा हुआ था, लेकिन उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी और खुद को मजबूत और आत्मनिर्भर बनाकर वह ट्रांसवुमन के रूप में सभी के सामने उदाहरण की तरह पेश हुई।
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