आपने अक्सर यह सुना होगा कि फिल्में समाज का आईना होती है। यानी फिल्में हमें वह सब कुछ दिखाती है, जो चीजें हमारे समाज में चल रही होती हैं। बॉलीवुड में आज भी बड़े पैमाने पर मसाला फिल्में बनती हैं, लेकिन वहीं कुछ ऐसे डायरेक्टर और प्रोड्यूसर हैं, जो सामाजिक मुद्दों को दर्शकों के सामने लाते हैं। यह वह फिल्में होती हैं, जिस पर हमारा समाज बात करने से संकोच करता है। जैसे एलजीबीटीक्यू समुदाय, लेकिन एलजीबीटीक्यू समुदाय को फिल्मों में किस तरह दर्शाया जाता है इसके बारे में इंस्टाग्राम इन्फ्यूलेंसर ऋषभ नंदा ने हरजिंदगी के सामने अपने विचारों को रखा है।
LGBTQ+ समुदाय को ऐसे किया जाता है पोर्ट्रे
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ऋषभ नंदा ने बताया कि हमारे समाज में LGBTQ+ समुदाय पर लोग अलग-अलग टिप्पणी करते हैं। सिर्फ यही नहीं, उन्हें न जाने कितने नामों से पुकारता है। लोग उनके सेक्सुअलिटी पर सवाल उठाते हैं। बॉलीवुड फिल्मों में भी LGBTQ+ समुदाय के लोगों को गलत तरह से दर्शाया जाता है और उन्हें मजाक के रूप में दिखाया जाता है। आपको बता दें कि ऋषभ नंदा गे हैं और वह फेमस इंस्टाग्राम इन्फ्यूलेंसर भी हैं। ऋषभ ने हरजिंदगी में अपने विचारों को व्यक्त करते हुए यह बताया कि बॉलीवुड फिल्मों में जब LGBTQ+ समुदाय के लोगों को दिखाया जाता है तो उन्हें दूसरों से भिन्न और अजीब दिखाने का प्रयास किया जाता है। इससे हमारे समाज के लोगों की सोच पर भी असर पड़ता है।
रूढ़िवादिता को मिलता है बढ़ावा
ऋषभ नंदा ने हरजिंदगी से अपने विचारों को व्यक्त करते हुए बताया कि सिनेमा में LGBTQ समुदाय के लोगों को मूवीज में दिखाने की जर्नी बहुत अलग रही है। आपने ऐसे कई कैरेक्टर देखें होंगे जो हमारे समाज में LGBTQ+ समुदाय को गलत तरह से दिखाते हैं। फिल्म 'दोस्ताना', 'कल हो ना हो', 'प्यार किया तो डरना क्या' जैसी फिल्मों में LGBTQ समुदाय के प्रति सोच को बदलने का प्रयास किया गया पर LGBTQ समुदाय के लोगों को इन फिल्मों में गलत तरह से भी दिखाया गया था। LGBTQ समुदाय के लोगों के हैंड मूवमेंट से लेकर बॉडी लैंग्वेज को भी गलत तरह से दिखाया गया था। इससे लोगों के दिमाग में LGBTQ समुदाय के प्रति सोच बदलने की जगह और अधिक रूढ़िवादी हो गई थी।(एलजीबीटी पर बनी बॉलीवुड फिल्म)
इन फिल्मों ने सामाजिक रूप से जागरूक किया
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ऋषभ नंदा ने यह भी बताया कि ऐसा नहीं है कि सारी ही फिल्मों में LGBTQ+ समुदाय को गलत पोर्ट्रे किया गया है बल्कि ऐसी भी कई फिल्में हैं जिनमें बॉलीवुड फिल्म निर्माताओं ने LGBTQ+ समुदाय के प्रति लोगों को जागरूक करने का निर्णय लिया। बॉलीवुड फिल्में जैसे अलीगढ़, शुभ मंगल ज्यादा सावधान, कपूर एंड संस और मजमा आदि में LGBTQ+ समुदाय के प्रति संवेदनशीलता, सहानुभूति और स्वीकृति को बढ़ावा दिया गया था। साथ ही इन फिल्मों में LGBTQ समुदाय से जुड़े विषयों पर निडरता से कहानी को दर्शाया गया है।
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ऋषभ नंदा ने कई फिल्मों के कैरेक्टर का उदाहरण देते हुए बताया कि लोगों को यह समझना बहुत जरूरी है कि जेंडर आइडेंटिटी और जेंडर एक्सप्रेशन के बीच का फर्क क्या होता है। जब सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 में सेक्शन 377 को डिक्रिमिनलाइज किया तब फिल्मों में बदलाव देखने को मिला जिससे लोगों के बीच LGBTQ समुदाय पर कई फिल्मों को बॉक्स ऑफिस पर लाया गया। इन फिल्मों ने सामाजिक रूप से जागरूक करके यह साबित किया कि प्यार आखिर प्यार होता है फिर चाहे वह किसी को किसी भी व्यक्ति से कियों न हो। ऋषभ नंदा ने इस बात को भी सभी के सामने रखा कि यह सबसे जरूरी है कि हम LGBTQ+ समुदाय के लोगों को एक्सेप्ट करना सीखें।
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