समाज का आईना बन सब कुछ मुमकिन करने वाली नारी के नारीत्व को नमन

'वो स्त्री है कुछ भी कर कर सकती है' स्त्री फिल्म का यह डायलॉग अक्सर सच बनकर हमारे सामने नजर आता है। घर से लेकर बाहर स्त्री हर किरदार में सफल नजर आती है।

hindi kavita on women's day

महिलाओं पर एक नहीं अनगिनत कविताएं लिखी गईं हैं। कवियों और लेखकों ने महिलाओं के अलग-अलग रूप और किरदार को बड़ी खूबसूरती से पन्नों पर उतारा है। मां, बहन, पत्नी, बेटी, प्रेमिका जैसे हर किरदार को महिलाएं बड़ी खूबसूरती से निभाती हैं।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के इस मौके पर आज मैं प्रगति पांडे आप सभी के लिए महिलाओं को समर्पित एक कविता लेकर आई हूं, जिसे आप अपनी करीबी महिलाओं के साथ शेयर कर सकती हैं।

कविता-

hindi inspirational poetry on women's day

मां, बहन,पत्नी,प्रेमिका

हर किरदार बखूबी से निभाती हो।

हे नारी,

तुम सब कुछ मुमकिन कर जाती हो।

लोग कहते हैं,

कि तुमसे बाहर के काम कहां होंगे।

घरों में ही रहो

घर जैसे आराम कहां होंगे।

तुम हंसती हो जमाने की इस बात पर तब,

और समाज को आईना बदलकर दिखाती हो।

हे नारी,

तुम सब कुछ मुमकिन कर जाती हो।

जो कहते हैं कि लड़कियां उलझ जाती हैं गणित के सवालों में,

तुम तब शकुंतला देवी बन जाती हो।

जो कहते हैं कि तुमसे कि नहीं लड़ सकती है ये दुश्मनों से,

तुम तब झांसी की रानी बन नजर आती हो।

जो कहते हैं तुमसे कि बैट और बल्ला,

कहां तुम्हारे के खेल हैं।

उनके सामने तुम मिताली राज नजर आती हो।

जो कहते हैं कि जमीन पर रहो, ज्यादा उड़ने के ख्वाब मत देखो,

तुम उनके सामने गुंजन सक्सेना बन जाती हो।

हे नारी,

तुम हर किरदार में सफल नजर आती हो।

कभी यमराज से लड़ जाती हो,

अपने प्रिय के प्राण बचाने को।

कभी जमाने से लड़ जाती हो,

खुद को साबित कर जाने को।

तुम उस दौर में ही नहीं,

आज भी अग्नि परीक्षा दे जाती हो।

हे नारी,

तुम सब कुछ मुमकिन कर जाती हो।

तुम्हें जंजीरों में बांधा गया है,

तुम्हें कोख में मारा गया है।

तुम्हारे सपने भी तोड़े गए हैं,

मगर तुम तब भी बेहद मजबूत नजर आती हो।

हे नारी तुम सब कुछ मुमकिन कर जाती हो।

तुम आजाद होती हो,

तो उड़ती हुई पक्षी नजर आती हो।

तुम खुद लिए लड़ती हो और आवाज उठाती हो,

तो लगता है कि क्रांति तुमसे ही जन्मी होगी।

तुम कितनी खास हो तुम्हें यह अहसास नहीं है।

हे नारी ,

तुमसे ही यह दुनिया है, यह जमीन है।

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सुनो तुम तूफान से तेज गाड़ियां चलाती हो।

और उतनी ही बखूबी से तुम घर भी चलाती हो

हे नारी,

तुम सब कुछ मुमकिन कर जाती हो।

मेरी यह कविता हर उस महिला के लिए है, जो समाज में बदलाव लाना चाहती है। आपको यह कविता अगर अच्छी लगी हो तो इसे लाइक और शेयर करें।

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image credit - freepik

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