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if father transfers property to his sons can his daughter claim share know legal property rights

अगर वसीयत में पिता बेटों के नाम कर दे प्रॉपर्टी, तो बेटियां कर सकती हैं दावा? जानिए क्या कहता है कानून

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 के तहत, पिता की पैतृक संपत्ति पर अब बेटियों को समान अधिकार होता है। ऐसे में कई बार पिता वसीयत में प्रॉपर्टी बेटों के नाम कर देते हैं, क्या तब बेटियां इस पर दावा कर सकती हैं?
Editorial
Updated:- 2025-02-22, 16:20 IST

साल 2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में संशोधन किया गया, जो पैतृक संपत्ति पर महिलाओं को समान अधिकार देता है। कानून के बावजूद भी, कई बार पिता अपनी वसीयत में बेटों के नाम प्रॉपर्टी कर देते हैं और बेटियों का उसमें जिक्र तक नहीं किया जाता है। ऐसे में, एक बेटी को प्रॉपर्टी विल में अपने अधिकारों के बारे में पता होना जरूरी है। कई बार प्रॉपर्टी को लेकर भाई-बहनों के बीच काफी विवाद होता है, इसलिए महिलाओं को अपने कानूनी हक पता होने जरूरी हैं।

आज हम इस आर्टिकल में आपको बताने वाले हैं कि कहां बेटियां प्रॉपर्टी विल में कानूनी तौर पर दावा कर सकती हैं और कहां पर नहीं कर सकती हैं?

प्रॉपर्टी विल क्या है?

यह एक कानूनी डॉक्यूमेंट होता है, जो यह सुनिश्चित करता है कि किसी व्यक्ति के प्रॉपर्टी राइट्स उसके निधन के बाद उस इंसान को दिए जाएंगे, जिसका वसीयत में नाम लिखा होगा। भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 के तहत, प्रॉपर्टी विल हैंडरिटेन या टाइप की हुई हो सकती है। संपत्ति वसीयत लिखने के लिए किसी भी व्यक्ति की उम्र 18 साल से ऊपर होनी चाहिए और वह मानसिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए। 

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बेटी किन सिचुएशन्स में पैतृक संपत्ति पर दावा कर सकती है?

property will daughter rights

हिंदू कानून के तहत, प्रॉपर्टी दो तरह की होती है पैतृक और स्व-अर्जित। पैतृक संपत्ति का मतलब है कि चार पीढ़ियों तक विरासत में मिली संपत्ति होता है। वंशजों द्वारा मिली संपत्ति पर बेटी और बेटे दोनों का समान अधिकार होता है। साल 2005 से पहले, पैतृक संपत्ति पर केवल बेटों का अधिकार माना जाता था। वहीं, 2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन किया गया और कानूनी तौर पर कोई पिता अपनी मर्जी से किसी भी पैतृक संपत्ति की वसीयत नहीं लिख सकता है या अपनी बेटी को उससे वंचित नहीं कर सकता है। जन्म से ही बेटी का पैतृक संपत्ति पर अधिकार माना जाता है। 

कब बेटी प्रॉपर्टी पर दावा नहीं कर सकती है? 

स्व-अर्जित का मतलब है कि अगर पिता ने अपने पैसों से जमीन खरीदता है या मकान बनवाता है, तो वह अपनी मर्जी से किसी के नाम भी अपनी संपत्ति कर सकता है। स्व-अर्जित संपत्ति पर पिता का कानूनी अधिकार होता है। ऐसी स्थिति में बेटी का पक्ष कमजोर हो जाता है और वह पिता की स्व-अर्जित प्रॉपर्टी पर दावा नहीं कर सकती है। 

अगर पिता की मृत्यु हो जाती है, तो बिना वसीयत के

अगर पिता की बिना वसीयत बनाए ही मृत्यु हो जाती है, तो उस प्रॉपर्टी पर पत्नी, बेटी और बेटे और मां का समान अधिकार होता है। हर उत्तराधिकारी को प्रॉपर्टी का एक हिस्सा मिलता है। 

पिता अगर अपनी स्व-अर्जित संपत्ति को पोते के नाम कर दे

अगर पिता जिंदा रहते हुए अपनी स्व-अर्जित संपत्ति को अपने पोतों के नाम ट्रांसफर कर देता है, तब बेटियां उस पर दावा नहीं कर सकती हैं। हालांकि, पिता का निधन बिना वसीयत लिखे होता है, तो बेटियों का प्रॉपर्टी पर समान अधिकार होता है। 

निर्वसीयत क्या है? 

daughter right in father property

यह स्थिति तब होती है, जब पिता बिना वसीयत लिखे मर जाता है या वसीयत केवल प्रॉपर्टी के एक हिस्से के लिए बनाई जाती है और बाकी हिस्सा Intestate प्रॉपर्टी ही रह जाता है। तब बेटियों के लिए प्रॉपर्टी अधिकार काफी अलग हो जाते हैं। 

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के तहत, बेटियों को केवल हिंदू अविभाजित परिवार का सदस्य माना जाता था, लेकिन उनका पैतृक संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं था। पैतृक संपत्ति पर केवल बेटों का अधिकार था। वहीं, शादी के बाद बेटी को अपने पिता की प्रॉपर्टी पर किसी भी तरह का हक नहीं मिलता था। लेकिन, 2005 में संशोधन के बाद बेटी को शादी के बाद भी पिता की संपत्ति पर समान अधिकार मिलता है। हालांकि, पिता का 9 सितंबर 2005 को जीवित रहना जरूरी है। अगर पिता की मृत्यु 2005 से पहले हो चुकी है, तो बेटी को किसी भी तरह का अधिकार नहीं मिलता है। वहीं, पिता का स्व-अर्जित प्रॉपर्टी उनकी वसीयत के अनुसार बांटी जाती है। 

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प्रॉपर्टी में नॉमिनी होने पर

आमधारणा है कि अगर किसी इंसान के पास घर या संपत्ति के लिए कोई नॉमिनी है, तो उसे प्रॉपर्टी वसीयत की जरूरत नहीं होती है। लेकिन यह गलत सोच हैं, क्योंकि नॉमिनी प्रॉपर्टी की देखभाल करने वाला होता है, उसका प्रॉपर्टी पर कानूनी उत्तराधिकार नहीं होता है। 

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Image Credit- freepik 


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