पीरियड्स एक नेचुरल प्रक्रिया है। पीरियड्स में शरीर में हार्मोन में बदलाव आते हैं। इस दौरान शरीर में होने वाली प्रक्रियाओं से स्ट्रेस भी हो जाता है। और बात जब पहले पीरियड्स की हो, तो इसे लेकर बेटियों के मन में थोड़ी घबराहट भी होती है। हर मां को अपनी बेटी को इसके बारे में पहले से बताना चाहिए, बावजूद इसके हम आज भी सार्वजनिक तौर पर इसके बारे में बात करने से परहेज करते हैं। पीरियड्स को लेकर कई तरह के मिथ भी प्रचलित हैं, जिनमें कोई लॉजिक नहीं, लेकिन इसके बावजूद बहुत चर्चा नहीं होने की वजह से टीनेज बेटियों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अगर बेटियों को इस बारे में पहले से ही तैयार किया जाए तो वे इसे लेकर ना सिर्फ कंफर्टेबल रहेंगी, बल्कि उनका कॉन्फिडेंस लेवल भी ऊंचा रहेगा। तो आइए जानते हैं कि किस तरह से अपनी बेटी को उसके पहले पीरियड्स के बारे में बताया जाए-
टीवी पर आजकल सेनिटरी नैपकिन के ढेरों विज्ञापन आते हैं। कई बार बेटियां खुद भी इसके बारे में पूछती हैं। अगर आपकी बेटी उस अवस्था में है, जब उसे पीरियड्स कभी भी शुरू हो सकते हैं, तो बिना किसी संकोच के बहुत कंफर्टेबल तरीके से उसे पीरियड्स के बारे में बताना शुरू करें। ऐड को दिखाते हुए आप बेटी को बताएं कि महीने के कुछ खास दिनों में ब्लीडिंग होती है और यह एक नॉर्मल प्रक्रिया है, इससे घबराने की कतई जरूरत नहीं है। अगर आपकी बेटी इससे जुड़ा कोई सवाल पूछे, तो उसे सही तरीके से समझाएं। इसी तरह पेपर में भी ऐड दिखाई देते हैं, जिन्हें दिखाकर आप बेटी को पीरियड्स के बारे में बता सकती हैं। पहली बार पीरियड्स के बारे में बात करते हुए नॉर्मल तरीके से बात करें और हल्के-फुल्के तरीके से ही समझाएं।
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मुमकिन है कि बेटी अपने क्लासमेट्स या दोस्तों के जरिए पीरियड्स के बारे में पहले से थोड़ा बहुत जानती हो। ऐसे में बेटी के चीजें छिपाने के बजाय उसकी दोस्त बनकर उसे सहज तरीके से बात करें। इससे बेटी पीरियड्स को लेकर अपनी दुविधा या किसी तरह की परेशानी नेचुरल तरीके से बता पाएगी। अगर आप बेटी को सही समय पर थोड़ी-थोड़ी जानकारी देती रहेंगी, तो किसी तरह की भ्रांति और उससे होने वाले स्ट्रेस से बचेगी। साथ ही पहले पीरियड्स होने पर वह अपनी सिचुएशन बेहतर तरीके से हैंडल कर पाएगी।
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घरों में आमतौर पर पीरियड्स के बारे में खुलकर बात नहीं होती। अगर आपको खुद भी इस तरह की झिझक महसूस होती है तो आपकी बेटी को पीरियड्स से जुड़ी सही जानकारी नहीं पहुंच पाएगी। ऐसे में अपना संकोच दूर करके अपनी बेटी को पीरियड्स से जुड़ी सारी जानकारियां धीरे-धीरे देना शुरू करें। अगर बेटी को कोई भी गलत चीज बताई जाएगी, तो वह अपने शरीर में होने वाले बदलाव और उससे जुड़ी बातों को लेकर उलझन में फंस सकती है। जब आप बेटी को समझाएंगी कि यह एक नेचुरल प्रक्रिया है, जिससे हर महिला गुजरती है तो वह इससे परेशान नहीं होगी। सबसे बड़ी बात ये कि बेटी को हकीकत बताने से वह पीरियड्स के दौरान हाईजीन मेंटेन करेगी, जिससे उसकी मेंस्ट्रुअल हेल्थ प्रभावित नहीं होगी। बेटी को नैपकीन इस्तेमाल करने, डिस्पोज करने और साफ-सफाई से जुड़ी चीजें बताना उसके लिए काफी अहम हैं।
पेरेंटिंग से जुड़ी चुनौतियों के मुद्दों पर सलाह देने वाली सर्टीफाइड लाइफ कोच डॉ. सलोनी सिंह कहती हैं,
'आजकल प्यूबर्टी की एज कम हो गई है। 9-10 साल में ही बेटियों को पीरियड्स शुरू हो जाते हैं। इस बारे में मां को शुरुआत में बेटियों को सहज तरीके से बताना चाहिए। बेटी को बताया जाना चाहिए कि यह उनकी ग्रोथ का सामान्य हिस्सा है, जिसमें शरीर में कुछ चेंज आते हैं। जिस तरह बेबी को डायपर लगाया जाता है, उसी तरह पीरियड्स में पैड यूज करने की जरूरत होती है। आजकल स्कूल में बेटियों को पीरियड्स के बारे में बताया जाता है, लेकिन इस बारे में मां की तरफ से जानकारी दिया जाना बेहतर रहता है, क्योंकि बेटी मां के साथ कंफर्टेबल होती है। इसमें किसी तरह का टैबू ना रखें। जमाना बदल रहा है और ऐसे में बच्चे को यह प्रक्रिया नॉर्मल लगनी चाहिए, इसके लिए उसे कंफर्टेबल बनाना जरूरी है। बेटी को बताएं कि पीरियड्स के कारण डेली के काम में, खेलकूद में किसी तरह की परेशानी नहीं होती। पहले पीरियड्स में ज्यादातर बेटियां, जिन्हें इस बारे में पता नहीं होता, घबरा जाती हैं कि क्या हो गया। बेटी से बात करें तो उसके बिल्कुल नॉर्मल लगना चाहिए, उसे अपना या बड़ी बहन का उदाहरण देकर बताएं। बेटी को बताएं कि अगर पीरियड्स स्कूल में आए तो वे टीचर को बता सकती है, उन्हें बैग में पैड रखना चाहिए ताकि स्कूल में दिक्कत ना आए। पीरियड्स के बारे में चर्चा करते हुए बेटी के लिए सपोर्टिव रहें।'
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