खेल-खेलना जहां बच्चों के मनोरंजन का साधन माना जाता है वहीं यह बच्चों की सेहत के लिए लाभदायक होता है। खेलने से बच्चों की शारारिक कसरत तो होती ही है, इससे वे चुस्त-दुरुस्त भी रहते हैं। सरल मायनों में खेल बच्चों के शारारिक और मानसिक विकास में अहम भूमिका निभाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं खेल के जरिये आपके बच्चों में अनेक नैतिक गुणों का विकास भी होता है और आसानी से खेल-खेल में जीवन से जुड़े ये गुण उनके भीतर विकसित हो जाते हैं।
सभी के लिए समान भाव विकसित होना
बच्चे खेल खेलते वक़्त टीम बनाकर खेलते हैं। जिसमें वह खुद से ज़्यादा टीम की जीत को अहमियत देते हैं। वे टीम में खेलते वक़्त अपनी व्यक्तिगत भावनाओं को अलग रखते हैं। इस प्रकार खेलते-खेलते बच्चा अपने निजी जीवन में भी इन्हीं बातों को अपना लेता है। और अपने आस-पास मौजूद सभी लोगों की सफलता के लिए भी प्रयासरत होता है।
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कड़ी मेंहनत और दृढ़ता
बच्चे खेल जीतने के लिए दिन रात प्रैक्टिस करते हैं जिससे वे कड़ी मेंहनत करने के आदि हो जाते हैं।वो जीत के लिए जी-तोड़ मेंहनत करते हैं और यही असल ज़िन्दगी में उनकी आदत बन जाती है। अपनी इसी आदत की वजह से निज़ी जीवन में भी वे सफलता पाने के उद्देश्य से मेंहनत कर दृढ़ता के साथ अपने कदम आगे बढ़ाते चले जाते हैं।बच्चे के लिए स्कूल चुनने में नहीं होगी कोई गलती, बस इन छोटी बातों का रखें ध्यान
अपनी हार को स्वीकारने की आदत
खेल में हार-जीत लगी रहती है जब बच्चा टीम में हारता है तो निराशा तो होती है, लेकिन हार का यह दुःख सबके बीच बंट जाता है। इस तरह खेल-खेल में बच्चा जीवन की असफलताओं को भी हंसकर स्वीकार लेता है। खेल-खेलते हुए बच्चे सहज ही जीवन के हर उतार-चढ़ाव के तैयार हो जाते हैं।इन वास्तु टिप्स से बच्चों की याद्दाश्त होगी तेज, करेंगे अच्छी पढ़ाई
आत्म जागरूकता की भावना का विकास
खेल बच्चों में आत्म जागरूकता की भावना का भी विकास करते हैं। बच्चे अपनी कमजोरियों और ताकतों को बख़ूबी पहचानने लगते हैं। उनमें बहुत अच्छे से इस बात की समझ पैदा हो जाती है कि कब जरूरत अनुसार उनको आगे बढ़ना है और कब खुद पर नियंत्रण रख रुकना है और कब दूसरों से मदद लेनी हैं। इस तरह उनमें आत्म-जागरूकता के साथ दूरदर्शिता की शक्ति पैदा होने लगती है।
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असीमित क्षमताओं का प्रदर्शन
जीवन में सफलता पाने के लिए सीमाओं को भी ढ़केलना पड़ता है। कुछ ऐसी ही समझ पैदा होने लगती है बच्चों में खेलते-खेलते। अपनी टीम को जीत हासिल कराने के लिए बच्चे अपने शारारिक क्षमताओं से अधिक मेंहनत कर जाते हैं। ठीक इसी तरह वो अपने जीवन में भी अपनी सीमाओं को लांघ सफ़लता हासिल करने की कोशिश करते हैं।
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