होली का त्योहार भारत में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है और इसमें कोई शक नहीं कि लगभग हर प्रांत में इसके मायने और रिवाज बदल जाते हैं। उत्तर प्रदेश में जिस तरह से होली मनाई जाती है उस तरह से मध्य प्रदेश में नहीं होती। दक्षिण भारत में तो इस दौरान कोई और ही त्योहार मनाया जाता है। ऐसे ही होली का त्योहार पंजाब में एक अलग रूप में देखा जा सकता है। यहां होली को सिर्फ रंगों का खेल नहीं माना जाता बल्कि यहां तो होली शौर्य का प्रतीक होती है। होली के दौरान बहुत सारे खेल भी होते हैं।
सिखों के इस जलसे को कहा जाता है होला मोहल्ला। यह मार्च में ही होता है, लेकिन इसकी तारीख बदलती रहती है। हालांकि, या तो यह होली वाले दिन ही होता है या फिर यह होली के एक दिन बाद होता है।
क्या है होला मोहल्ला?
होला यानी हल्ला, यह त्योहार असल में लड़ाकों के शौर्य का प्रदर्शन करने का त्योहार है। आनंदपुर साहिब में यह तीन दिन का मेला होता है जहां लड़ाके अलग-अलग विधाओं में प्रदर्शन करते हैं। दूर-दराज से लोग आते हैं और यहां रुकते हैं। सिर्फ खेल-कूद और लड़ाकों द्वारा शौर्य का प्रदर्शन ही नहीं यहां पर कीर्तन, गीत संगीत और कविता आदि भी होता है।
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खाने के लिए लंगर सेवा हमेशा तत्पर रहती है। इस त्योहार के खत्म होने पर सैन्य शक्ति दिखाते हुए तख्त केशगढ़ साहिब के करीब जुलूस निकाला जाता है। आपकी जानकारी के लिए बताते चलें कि सिख धर्म में पंज तख्त हैं जो समुदाय के लिए सर्वोपरि माने जाते हैं। उनमें से एक है तख्त केसरगढ़ साहिब।
क्या है होला मोहल्ला का महत्व?
सिखों के धार्मिक ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में एक जगह लिखा गया है कि होली मनाने का मतलब ईश्वर के करीब जाना है। होला मोहल्ला निहंग सिखों के लिए बहुत ही खास त्योहार है जहां उनके द्वारा कई तरह के रिवाज किए जाते हैं। इसे भाईचारे और सिख समुदाय की एकता का प्रतीक भी माना जाता है।
मान्यता के अनुसार, सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने इसे 1701 के बसंत में शुरू किया था। गुरु गोबिंद सिंह ने अपने अनुयायियों को होली के दौरान आनंदपुर साहिब में आने को कहा था और वहां से एक नई प्रथा की शुरुआत हो गई थी। पंजाब डिजिटल लाइब्रेरी में भी 20वीं सदी की कई तस्वीरें मौजूद हैं जिसमें होला मोहल्ला मनाया जा रहा है।
कैसे होती है इस त्योहार की शुरुआत?
होला मोहल्ला के कई दिन पहले से ही यहां भीड़ इकट्ठा होनी शुरू हो जाती है। इस दौरान कैंप लगाए जाते हैं जहां श्रद्धालु रुकते हैं। यह एक रिवाज सा बन गया है कि लोग अपने साथ अनाज और अन्य सामान लेकर आते हैं जिसे लंगर सेवा के लिए दिया जा सके।
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कितने दिन तक चलता है यह जलसा?
त्योहार तो तीन दिनों का होता है, लेकिन इसका जलसा और तैयारिंगा कई दिनों तक होती हैं। लोग कम से कम एक हफ्ते तक आनंदपुर साहिब में ही रहते हैं। इस दौरान कई नकली युद्ध भी लड़े जाते हैं जो सिखों के शौर्य को दर्शाते हैं।
इस दौरान तलवार बाजी सबसे ज्यादा देखी जाती है और रैली के वक्त लगभग हर किसी के हाथ में तलवार मौजूद होती है। युद्ध की समाप्ती पर लड़ाकों पर गुलाब जल, इत्र, केसरिया पानी और रंग भी डाला जाता है।
निहंग सिख कई ग्रुप या दस्तों में आते हैं। यहां आने के लिए निहंग सिखों के दल अलग-अलग तरह की गाड़ियों का प्रयोग करते हैं। कुछ सिर्फ मोटरबाइक से आते हैं, कुछ ट्रैक्टरों से आना पसंद करते हैं, कुछ बैलगाड़ियों में आना पसंद करते हैं।
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Image Credit: Shutterstock
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