क्या आप जानते हैं गोवर्धन पूजा का इतिहास

हिन्दू धर्म में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है। आइए जानें गोवर्धन पूजा का इतिहास क्या है और इस दिन का क्या महत्व है। 

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गोवर्धन पूजा गोवर्धन पर्वत के इतिहास को याद करने के लिए मनाई जाती है। दिवाली के दुसरे दिन पड़ने वाला यह त्योहार हिन्दुओं के मुख्य त्योहारों में से एक है। इसकी एक पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में भगवान् श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली में उठाकर बारिश से कई लोगों की जान बचाई थी। तभी से लोग इस दिन गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर पूजने लगे और अन्नकूट को 56 भोगों का प्रसाद समर्पित करने लगे। आइए नई दिल्ली के जाने माने पंडित, एस्ट्रोलॉजी, कर्मकांड,पितृदोष और वास्तु विशेषज्ञ प्रशांत मिश्रा जी से जानें गोवर्धन पर्वत और गोवर्धन पूजा का इतिहास क्या है।

गोवर्धन पूजा की कहानी

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ऐसा माना जाता है कि गोकुल के लोग भगवान इंद्र की पूजा करते थे, जिन्हें बारिश के देवता के रूप में भी जाना जाता है। लेकिन भगवान कृष्ण इसे बदलना चाहते थे और उन्होंने कहा कि सभी को अन्नकूट पहाड़ी या गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि वही वास्तविक भगवान हैं जो भोजन और आश्रय प्रदान करके उनके जीवन को कठोर परिस्थितियों से बचाते हैं। इसलिए, उन्होंने भगवान इंद्र के स्थान पर पर्वत की पूजा करना शुरू कर दिया था। इससे इंद्र को बहुत क्रोध आया, जिसने और भी अधिक वर्षा कर दी। अंत में, भगवान कृष्ण लोगों के बचाव में आए और गोवर्धन पहाड़ी को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर उनकी जान बचाई। इस तरह पराक्रमी और अभिमानी इंद्र को भगवान कृष्ण ने पराजित किया। अब, गोवर्धन पर्वत को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए इस दिन को गोवर्धन पूजा के रूप में मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा उत्सव को अन्नकूट उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। इस त्योहार में अन्नकूट या गोवर्धन पर्वत को लोग 56 भोगों का प्रसाद अर्पित करते हैं और पूजा करके मंगल कामना करते हैं। इस त्यौहार को महाराष्ट्र में पड़वा या बाली प्रतिपदा के रूप में मनाया जाता है क्योंकि यह माना जाता है कि राक्षस राजा बाली को पराजित किया गया था और वामन के रूप में भगवान विष्णु द्वारा पाताल लोक में धकेल दिया गया था।

गोवर्धन पूजा का इतिहास

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बाली प्रतिपदा या गोवर्धन पूजा या अन्नकूट पूजा कार्तिक के महीने में दिवाली के एक दिन बाद आयोजित की जाती है। इस दिन भगवान कृष्ण को अनाज जैसे गेहूं, चावल और बेसन की सब्जी और पत्तेदार सब्जियों का प्रसाद बनाया चढ़ाया जाता है। गोवर्धन पूजा का इतिहास भगवान् श्री कृष्ण के काल से जुड़ा हुआ है। इसके इतिहास की बात की जाए तो श्री कृष्ण ने अपना अधिकांश बचपन ब्रज में बिताया, जहां से बचपन के दोस्तों के साथ कृष्ण के कई दिव्य और वीरता के कई कारनामे जुड़े हुए हैं। भागवत पुराण में वर्णित सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक में कृष्ण को ब्रज के बीच में स्थित एक नीची पहाड़ी, गोवर्धन पर्वत को उठाना शामिल है। भागवत पुराण के अनुसार, गोवर्धन के पास रहने वाले वनवासी चरवाहे वर्षा और तूफान के देवता इंद्र को सम्मान देकर पतझड़ का मौसम मनाते थे। कृष्ण को यह बात पसंद नहीं थी क्योंकि उनकी इच्छा थी कि ग्रामीण गोवर्धन पर्वत की पूजा इस कारण से करें कि गोवर्धन पर्वत वह है जो ग्रामीणों को उनकी आजीविका के लिए प्राकृतिक संसाधन प्रदान करता है। गोकुल शहर में होने वाली प्राकृतिक घटनाओं के लिए पहाड़ जिम्मेदार था। श्री कृष्ण नगर में लगभग सभी से छोटे होते हुए भी अपने ज्ञान और अपार शक्ति के कारण सभी का सम्मान करते थे। तो, गोकुल के लोग श्री कृष्ण की सलाह से सहमत हुए। ग्रामीणों की भक्ति को अपने से और कृष्ण की ओर मोड़ते देख इंद्र क्रोधित हो गए। इंद्र ने अपने अहंकारी क्रोध के प्रतिबिंब में शहर में आंधी और भारी बारिश शुरू करने का फैसला किया। प्रजा को तूफानों से बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा अंगुली पर उठाकर नगर के सभी लोगों तथा पशुओं को आश्रय प्रदान किया। 7-8 दिनों के लगातार तूफान के बाद, गोकुल के लोगों को अप्रभावित देखकर, इंद्र ने हार मान ली और तूफानों को रोक दिया। इसलिए इस दिन को एक त्योहार के रूप में मनाया जाता है और इस पूजा का अलग महत्त्व है।

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गोवर्धन में क्यों लगता है 56 भोग

भगवान को अर्पित किए जाने वाले छप्पन भोग के पीछे भी कई रोचक कथाएं प्रचलित हैं। हिन्‍दू मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीकृष्‍ण एक दिन में आठ बार भोजन करते थे। जब इंद्र के प्रकोप से सारे व्रज को बचाने के लिए भगवान श्री कृष्‍ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया था, तब लगातार सात दिन तक भगवान ने अन्न जल ग्रहण नहीं किया था। इसलिए 7 दिन और 8 बार भोजन के हिसाब से ये संख्या 56 हो गयी। तबसे कृष्ण जी को गोवर्धन के दिन 56 भोग का प्रसाद चढ़ाया जाने लगा। जिसका अलग महत्त्व है।

इस प्रकार गोवर्धन पूजा का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है और इस दिन 56 भोग का प्रसाद चढ़ाना विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।

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