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प्रसिद्ध भारतीय नृत्य कुचिपुड़ी के बारे में कितना जानते हैं आप?

चलिए इस लेख में प्रसिद्ध भारतीय नृत्य कुचिपुड़ी के इतिहास के बारे में करीब से जानते हैं।
Editorial
Updated:- 2022-01-04, 16:30 IST

नृत्य भारत में एक प्राचीन और प्रसिद्ध सांस्कृतिक परंपरा है जो प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। आज के समय में लगभग हर शादी, पार्टी और प्रोग्राम में नृत्य यानि डांस होता ही है। खासकर, फिल्मों और टीवी शो में इंडियन क्लासिक डांस जैसे-भरतनाट्यम, कथक, कथकली, मणिपुरी आदि देखने को मिलते रहते हैं। इन्हीं शास्त्रीय नृत्यों में से एक है कुचिपुड़ीनृत्य जिसे उत्तर भारत में कम लेकिन, दक्षिण भारत में बेहद ही पसंद किया जाता है। आज इस लेख में हम आपको शास्त्रीय नृत्य यानि क्लासिकल डांस कुचिपुड़ी के बारे में करीब से बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में आप भी ज़रूर जानना चाहेंगे, तो आइए जानते हैं।

कुचिपुड़ी का इतिहास

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कुचिपुड़ी नृत्य भारत के सबसे प्राचीन शास्त्रीय नृत्यों में से एक है। इस नृत्य की उत्पत्ति कब हुई इसका कोई प्रमाण नहीं है लेकिन, कहा जाता है कि यह हज़ार साल से भी अधिक प्राचीन और दक्षिण भारत में इसे खासा प्रसंद किया जाता था। लोगों का मानना है कि प्राचीन काल में इस नृत्य को रात के समय मंदिरों में प्रस्तुत किया जाता था और इसके अलावा केवल ब्राह्मण परिवार के लोग ही इसे प्रस्तुत करते थे। कोई लोगों का यह भी मानना है कि विजयवाड़ा और गोलकुंडा के शासकों के द्वारा इस नृत्य को संरक्षित किया गया था।

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क्या है पौराणिक मान्यता?

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जैसा की इससे पहले बताया गया था कि इस नृत्य को सिर्फ ब्राह्मणों द्वारा ही प्रस्तुत किया जाता था। कई ब्राह्मणों का कहना है कि इस नृत्य को परिभाषित करने के लिए योगी नमक एक कृष्ण भक्त को किया गया था। कई लोगों का यह भी मानना है कि स्वर्ग में इस नृत्य को भगवान लोग भी देखा और सुना करते करते थे। (भारतीय नृत्य भरतनाट्यम) आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इसका कई जगह उल्लेख है कि प्राचीन काल में कुचिपुड़ी नृत्य को सिर्फ पुरुष ही प्रस्तुत करते थे।

दक्षिण भारत में कुचिपुड़ी नृत्य का महत्व

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कुचिपुड़ी नृत्य भारत के प्रमुख शास्त्रीय नृत्य में से एक है जो दक्षिण भारत में बेहद ही प्रसिद्ध है। यह आंध्र प्रदेश की प्रसिद्ध नृत्य शैली है, जो पूरे भारत में फेमस है। आंध्र प्रदेश के लोगों द्वारा कहा जाता है कि इस नृत्य का नाम कृष्णा जिले के दिवि तालुक में स्थित कूचिपूड़ी गांव से लिया गया है, जहां के रहने वाले ब्राह्मण पारंपरिक नृत्य करते थे। आंध्र प्रदेश के लगभग हर पारंपरिक समारोह में इस नृत्य को ज़रूर प्रस्तुत किया जाता है। कहा जाता है कि वेदांतम लक्ष्‍मी नारायण और चिंता कृष्‍णा मूर्ति जैसे गुरुओं ने महिलाओं को इसमें शामिल कर नृत्‍य को और समृद्ध बनाया है।

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कुचिपुड़ी नृत्य के प्रसिद्ध नर्तक

कुचिपुड़ी नृत्य के प्रसिद्ध नर्तक के बारे में जिक्र करने से पहले आपको यह बता दें कि कुचिपुड़ी में कलाकार द्वारा गायन और नृत्य दोनों शामिल है। भगवान को समर्पित इस नृत्य को शुरू करने से पहले पवित्र जल छिड़कने, अगरबत्ती जलाने और भगवान से प्रार्थना करने जैसे कुछ अनुष्ठान शामिल हैं। अगर बात करें कुचिपुड़ी नृत्य के प्रसिद्ध नर्तकों के बारे में तो लक्ष्‍मी नारायण, राजारेड्डी, राधा रेड्डी, यामिनी रेड्डी और कौशल्या रेड्डी जैसे लोगों का जिक्र मिलता है।

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Image Credit:(@wiki,stock)

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