Entry 3
"दो कॉफी, एक पनीर सैंडविच और एक कार्रोट केक"
"लेकिन..." मैं बीच में बोलने ही लगी थीं कि गिरीश ने मुझे फिर रोक दिया।
"अच्छा सुनो वेटर! एक काम करो, कार्रोट केक की जगह चॉकलेट चिप मफिन कर दो"
"मैं कॉफ़ी नहीं..." मैंने फिर एक बार कोशिश की
"और प्लीज ज़रा जल्दी करना, और सब चीज़ साथ में लाना, ये नहीं की पहले कॉफ़ी आ रही है, फिर आराम से मफिन फिर सैंडविच..." गिरीश वेटर को जाने दे तब तो बेचारा आर्डर ला पाए, मैं सोच रही थीं। मैंने एक आखिरी बार कोशिश की...
"एक सेकंड सर...मेरे लिए कॉफ़ी नहीं..." इससे पहले की मैं बात पूरी कर पाती, गिरीश ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगा।
"सर? हा हा हा ! वेटर है वो आपके ऑफिस में आपका बॉस नहीं मैडम!"
गिरीश को सच में ये बात इतनी फनी लग रही थीं या वेटर को शर्मिंदा करने में उसे मज़े आ रहे थे? पता नहीं। इतना पता है कि उस वक्त मुझे गिरीश से मिलने आना का अफ़सोस हो रहा था।
कैसा लड़का है ये? और वैसा तो बिलकुल नहीं है जैसा ये सब के सामने दिखा रहा था।
गिरीश ने हाथ से वेटर को जाने का इशारा कर दिया।
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"ओह! आप क्यों एम्ब्रेस हो गई? देखिये तो, गाल एकदम लाल हो गए हैं।" गिरीश की नज़र अब मेरे चेहरे पर थी, उसकी हंसी अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी।
"नहीं ऐसा कुछ नहीं है। आप बताइये, आप क्यों मिलना चाहते थे।" मैंने टॉपिक बदल कर, दो टूक पूछ लिया।
"गुस्सा हो? कि मैंने शादी से मना कर दिया? देखो तुम... सॉरी, आप मुझे इसका ज़िम्मेदार मत समझिये। मुझे आप नापसंद नहीं हैं। लेकिन मैं अपनी ज़िन्दगी का इतना बड़ा फैसला ऐसे कैसे ले सकता हूं? चाय पर रिश्ता करने का ज़माना नहीं है ये..."
"कॉफ़ी", वेटर कॉफ़ी ले आया था।
"तो इसलिए आपने मुझे कॉफ़ी पर बुलाया है?" मैंने पूछा।
"फनी! बात ये है कि हमें एक दुसरे को जानने समझने का मौका भी तो मिलना चाहिए" गिरीश ने दोनों कॉफ़ी में चीनी मिला दी, चम्मच टनटनाते हुए उससे मिलाने के बाद मेरी तरफ एक कप बढ़ा दिया।अगर आपसे आरती की कहानी की शुरुआत मिस हो गई हैं तो इस लिंक को क्लिक करके पढ़ें। शादी के लिए रिजेक्शन का हक क्या सिर्फ लड़के को है? : Hello Diary
"देखिये में एक खुले मिजाज़, प्रोग्रेसिव सोच का आदमी हूं।"
"गुड, ये अच्छी बात है...मुझे भी..." पर गिरीश के सामने शायद ही कोई और बोल सकता हो।
"है ना? मुझे ख़ुशी है कि आप भी ऐसा सोचती हैं। नहीं तो आजकल की लड़कियां तो आदमी को नौकर बना कर रखने में ज्यादा विश्वास रखती हैं।"
"क्या?"
-"अरे हां, देखा नहीं है आपने? मॉल्स में, आगे-आगे बीवी और पीछे-पीछे पति, मैडम जी का पर्स एक हाथ में, दुसरे में शॉपिंग बैग्स। पीछे-पीछे चले तो ठीक, और ज़रा सा टेढ़ा चला तो वहीँ चाबुक पड़ी- फ़ोन पर किससे बात कर रहे थे? अपने फेसबुक का पासवर्ड बताओ, फ़ोन बाथरूम में क्यों ले जा रहे हो? वो लड़की कौन है? दोस्तों के साथ क्यों जाना है! बाप रे! कौन पड़ेगा इस जंजाल में" गिरीश ये कहते-कहते हांफ रहा था।
"आपने ज़रूर गहरी चोट खाई है। पोजेसिव गर्लफ्रेंड?" अब मज़े लेने की बारी मेरी थी।
"अरे आपको मज़ाक लग रहा है? मैंने देखा है ना, अपने बेचारे दोस्तों को। शादी से पहले सबके संगीत में नाचा था, 'एक कुंवारा, फिर गया मारा'...मुझे क्या पता था सबके श्राप लगेंगे मुझे?" ये गिरीश बोल क्या रहा था?
"एक्सक्यूज़ मी? आप शादी को श्राप मानते है? "
"चिल यार। डॉट टेक इट पर्सनली। मैं तो बस यह कह रहा हूं, कि अच्छा हुआ तुम खुले मिजाज़ की हो क्योंकी मुझे रोक-टोक पसंद नहीं।" गिरीश ने कप केक पर धावा बोल दिया था, मुंह भरकर मुझे देखकर मुस्कुरा रहा था।
"सच में यार, बात हो गई तो रिलैक्स हो गया मैं! कॉफ़ी पियो ना...अच्छा बाई द वे, मम्मी बोल रही थी कि तुमको नाम की लिस्ट भेज देंगी, जो भी पसंद हो वो बता देना, फिर एक साथ ही सरनेम - फुल नेम बदल जाएगा। पंडित ने नवंबर की कोई डेट ..."गिरीश का पॉज बटन था भी या नहीं?
"नाम...किसका नाम?" मैंने चौंक कर पूछा
"तुम्हारा नाम, और किसका, मेरा?" गिरीश अब कुर्सी पर पसर कर कॉफ़ी की चुस्कियां भर रहा था
"मैं अपना नाम क्यों बदलूंगी?" गुस्से से मेरी आवाज़ में कम्पन आ गया था।
"अरे, सॉरी बताना भूल गया, मेरी दादी का नाम भी आरती देवी है ना, तो मम्मी कैसे तुमको नाम से बुलाएगी, वो तो उनकी सास का नाम हो गया ना? तो तुम अपना नाम बदल लो, सिंपल" गिरीश ये बात ऐसे कर रहा था जैसे मेरा नाम बदलने की बात नहीं, कपडे या तकिये का गिलाफ बदलने की बात कर रहा हो।
"नहीं ये बात ठीक नहीं है गिरीश।" मैंने सर हिलाते हुए कह ही दिया
"ओहो, क्या फर्क पड़ता है, होना तो तुमने Mrs सचदेवा ही है ना? उसके आगे का कौन ध्यान रखेगा, आरती सचदेवा हो या घंटी सचदेवा, हाहाहा!"
मेरा पारा चढ़ चुका था, नाम बदलना एक चीज़ है, लेकिन गिरीश के ये ख़यालात है, मुझे नहीं पता था। उससे शादी करने वाली लड़की की खुद की क्या कोई आइडेंटिटी नहीं रहेगी?
"मुझे लगा तुमने कहां तुम खुले विचारों वाले आदमी हो...और तुम.." मेरी आवाज़ ऊंची हो ही रही थी कि तभी गिरीश का फ़ोन बज उठा..
"हेलो! हां! अरे बोला तो था तुझे यार...उस बेहेन के ..."
"गिरीश!"
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"अरे सॉरी, मैं ये कॉल ले कर आता हूं" गिरीश फ़ोन पर बात करता हुआ कॉफ़ी शॉप के बाहर चला गया।
अब मैं और ये कॉफ़ी का कप बैठे है, सोच रहे है कि आगे क्या होगा। गिरीश तो ये माने बैठा है कि उसकी और मेरी शादी हो रही है। वैसे, मम्मी पापा कितने खुश हो जायेंगे, दादी भी नाचने ही लगेगी। पर इस आदमी से शादी करने का मतलब है, हमेशा के लिए बस Mrs सचदेवा बन कर रह जाना। मेरा नाम तक बदलना पड़ेगा। हां हां मुझे पता है कि ये नाम वैसे भी मुझे पसंद नहीं था, और इस बहाने मैं अपना पसंदीदा नाम 'सुहासी', जो मम्मी भी चाहती थी, रख सकती हूं। पर गिरीश को तो ये बात नहीं पता थी ना कि मुझे 'आरती' नाम पसंद नहीं था। तो वो इतने आराम से मुझे नाम बदलने को कैसे बोल सकता है? बड़ा अपने आप को प्रोग्रेसिव बोल रहा था, बस अपनी आज़ादी के लिए है ये खुले खयालात का ढोंग। बाहर झांक के देखूं? अभी भी फ़ोन पर ही लगा है, ये गाडी इसकी है? हां, इसी में तो घर भी आये थे ये लोग। ऑडी है ना? खानदानी रईस है ना, इसलिए इतने तेवर हैं इनके। उसपर यह इकलौता लड़का है। अगर आज मैं हां कर देती हूं तो मम्मी पापा की सारी चिंता ख़त्म। शादी करके, बड़े से घर में चली जाऊंगी- पैसे की कोई टेंशन नहीं। ससुराल भी इसी शहर में होगा, तो मम्मी पापा से मिलती भी रहूंगी। अगर आपसे आरती की कहानी की दूसरा एपिसोड मिस हो गया हैं तो इस लिंक को क्लिक करके पढ़ें। रिश्ते के लिए देखने आया था या डेटिंग के लिए? अब आप बताइये में क्या करूं? : Hello Diary
हां, या ना? गिरीश वापस आ रहा है। मुझे उसे जवाब देना है। आपको क्या लगता है मुझे क्या करना चाहिए? मैं तो काफी कन्फ्यूज्ड हूं, तो आप ही मुझे बताइये, मेरा अगला कदम क्या होना चाहिए।
आपके सुझाये रास्ते पर ही चलूंगी मैं, तो सोच समझ कर राय दीजियेगा।
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