आमतौर पर, जब गोवा का जिक्र होता है, तो सबसे पहले वहां के सुंदर बीच, चर्च और नाइटलाइफ की बात जहन में आने लगती है। भारत के पश्चिमी तट पर बसे इस राज्य का ऐतिहासिक सफर भी काफी शानदार रहा है। जहां भारत के अधिकांश हिस्से कभी न कभी मुगलों और फिर ब्रिटिश राज्य के अधीन रहे, वहीं गोवा 400 साल से भी ज्यादा समय तक पुर्तगालियों के अधीन रहा। ऐसे में कई बार मन में सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्या था, जो गोवा को मुगलों और ब्रिटिश दोनों के नियंत्रण से बाहर रख पाया?
गोवा के पहले स्वदेशी शासक
यूरोपीय शक्तियों के भारत में आने से बहुत पहले गोवा पर स्थानीय शासकों का कंट्रोल था, जिनमें सबसे पहला नाम कदंब राजवंश का आता है। 10वीं शताब्दी में स्थापित इस राजवंश ने गोवा की सांस्कृतिक और व्यापारिक नींव को मजबूत किया था। कंदबों ने गोपकपट्टन को एक प्रमुख समुद्री व्यापार केंद्र के रूप में विकसित किया था। जिसे आज पुराना गोवा के नाम से जाना जाता है। उस समय इस बंदगाह से जांजीबार, बंगाल, गुजरात और श्रीलंका जैसे क्षेत्रों के साथ व्यापार होता था। यही कारण है कि जब बाद में पुर्तगाली भारत पहुंचे, तो उन्होंने गोवा को एक महत्वपूर्ण व्यापारिक और सैन्य केंद्र के रूप में निर्मित किया।
इसे भी पढ़ें- गोवा ट्रिप को और भी मजेदार बनाएंगे ये टिप्स
मुगल गोवा पर राज क्यों नहीं कर पाए?
भले ही मुगल साम्राज्य भारत के बड़े हिस्सों में फैला हुआ था, लेकिन गोवा में उनका असर बहुत कम रहा था। 17वीं शताब्दी में मुगलों में गोवा पर कब्जा करने की कोशिश की थी, लेकिन उन्हें कड़ा विरोध झेलना पड़ा था। उस समय गोवा पुर्तगालियों के नियंत्रण में था और उन्होंने अपनी मजबूत किलाबंदी और समुद्री ताकत के दम पर गोवा को बचा लिया। साथ ही, मुगलों को उत्तर भारत और अन्य इलाकों में कई तरह की राजनीतिक और सैन्य चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था, जिससे उनका ध्यान पूरी तरह गोवा की ओर नहीं जा सका। इसी वजह से गोवा मुगल शासन से लगभग अछूता रहा।
ब्रिटिश गोवा पर हुकूमत क्यों नही जमा पाए?
अंग्रेजों के पास गोवा पर कब्जा करने के कई मौके थे, लेकिन उन्होंने उसे अपनी औपनिवेशिक सीमा में शामिल करने की बजाय कूटनीतिक रास्ता अपनाया। 1878 में एंग्लो-पुर्तगाली संधि एक अच्छा उदाहरण थी। इस संधि के तहत, ब्रिटिश भारत को गोवा को भारतीय रेलवे नेटवर्क से जोड़ने की अनुमति मिली, जिससे व्यापार को बढ़ावा मिला। इसके बदले, अंग्रेजों ने गोवा पर पुर्तगाली अधिकार को मान्यता दी और पुर्तगालियों के प्रशासन को बनाए रखा। इस समझौते से दोनों पक्षों को फायदा हुआ और गोवा का पुर्तगाली शासन जारी रहा।
किस तरह गोवा पुर्तगाल से भारत में जुड़ा?
1510 में गोवा को पुर्तगालियों ने अपने कब्जे में कर लिया था और तब से यह लगभग 450 सालों तक पुर्तगाली साम्राज्य का हिस्सा बना रहा था। उस दौरान, गोवा पुर्तगाल के लिए व्यापारिक और सांस्कृतिक केंद्र माना जाता था। पुर्तगाली शासन ने गोवा की संस्कृति, धर्म और प्रशासन पर अपनी छाप छोड़ी। हालांकि, उस समय भारत के अन्य हिस्सों पर मुगलों और ब्रिटिश साम्राज्य का शासन था, गोवा पर हमेशा पुर्तगालियों का ही नियंत्रण रहा।
इसे भी पढ़ें- गोवा की इन जगहों को 3 दिन की ट्रिप पर करें एक्सप्लोर
गोवा को मुक्ति कैसे मिली?
15 अगस्त 1947 में भारत को आजादी मिली, लेकिन गोवा पर पुर्तगालियों का शासन कायम रहा। भारत की स्वतंत्रता के बाद, कई भारतीय नेताओं ने गोवा को मुक्ति दिलाने की कोशिश की, लेकिन पुर्तगाल ने इनका हमेशा विरोध किया। 1961 में भारत ने गोवा को स्वतंत्रता दिलाने के लिए ऑपरेशन विजय की शुरुआत की। इस ऑपरेशन का मकसद गोवा, दमन और दीव जैसे पुर्तगाली उपनिवेशों को भारत में शामिल करना था। उस समय भारतीय सेना ने पुर्तगाली सेना के साथ लड़ाई की और आखिरी में इंडियन सेना की जीत हुई। पुर्तगाली गवर्नर जनरल, एंथोनियो डी सालेज ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और इस प्रकार गोवा भारत में शामिल हो गया। 19 दिसंबर 1961 को गोवा की मुक्ति हुई और इसे हर साल गोवा मुक्ति दिवस के रूप में मनाया जाता है।
अगर हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो आप हमें आर्टिकल के ऊपर दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
Image Credit - freepik, jagran
HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों