एक ताजा स्टडी में यह बात कही गई कि दो बच्चों की परवरिश के दौरान दूसरे बच्चे के लिए दुलार करने में पहले बच्चे की तुलना में थोड़ी कमी रह जाती है। इस स्टडी में कहा गया कि घर में अगर दो बच्चे हैं तो उनके बीच इस बात को लेकर अक्सर बहस होती है कि उनमें से मम्मी का फेवरेट कौन है। हालांकि मां दोनों की देखभाल में अपनी तरफ से कोई कमी नहीं छोड़ती, लेकिन दोनों की परवरिश के दौरान उनका व्यवहार अलग होता है। इस बारे में हमने बात की मानवी गुप्ता से, जो 'परवरिश' की फाउंडर टीम मेंबर और पेरेंटिंग कोच हैं। उन्होंने पेरेंट्स को इस दुविधापूर्ण स्थिति से बाहर निकालने के लिए कुछ ऐसी बातों पर प्रकाश डाला, जिस पर पेरेंट्स पर्याप्त ध्यान नहीं दे पाते-
घर में दो बच्चे हों तो वे आपस में खेलने के साथ-साथ किसी ना किसी बात पर झगड़ा कर ही लेते हैं। लेकिन अगर आप बड़े को यह अहसास दिलाएं कि उसे छोटे की हर चीज का खयाल रखना है तो उनमें बात ज्यादा नहीं बढ़ेगी। बड़ी संतान कुछ गलत होते हुए तुरंत छोटे को संभाल लेगा। इससे बच्चों के बीच इस बात के लिए झगड़ा नहीं होगा कि पेरेंट्स उनमें से किसी ज्यादा प्यार करते हैं।
अक्सर पेरेंट्स जब बच्चों की जिम्मेदारी उठाने में थकान महसूस करते हैं या फिर वे बच्चों को सिखाने के लिए बहुत एक्साइटेड होते हैं तो वे उन्हें एक्टिविटी क्लास में भेज देते हैं। स्वीमिंग, कलरिंग, क्रिएटिव राइटिंग, अबेकस, म्यूजिक, डांस, ताई क्वांडो ही नहीं आजकल बच्चों की पब्लिक स्पीकिंग के लिए भी क्लासेस चलने लगी हैं। अगर आप यह सोच रही हैं कि आपने बच्चे को एक्टिविटी में भेजकर उसे सिखाने का काम पूरा कर दिया तो आपको इससे आगे भी सोचने की जरूरत है। बच्चे को आप एक्टिविटी में क्यों डालना चाहते हैं, क्या वह उससे हेल्दी तरीके से सीख पा रहा है, कहीं उसके मन में प्रतियोगिता का भाव डालकर हीन भावना से ग्रस्त तो नहीं किया जा रहा, इन बिंदुओं पर भी आपको सोचने की जरूरत है। बच्चे को फ्री टाइम और स्पेस भी चाहिए और आपका अटेंशन भी। आपको यह सोचने की जरूरत है कि क्या आप उसे ये सब चीजें दे पा रहे हैं, जो उसकी परवरिश के लिए महत्वपूर्ण हैं।
अक्सर पेरेंट्स इस बात का रोना रोते रहते हैं कि उनके पास बच्चे के लिए समय बहुत कम होता है या फिर वे बच्चे के साथ ज्यादा क्वालिटी टाइम नहीं बिता पाते। ऐसा पेरेंट्स की सोच की वजह से होता है, दरअसल समय की कमी बिल्कुल नहीं है। बच्चे को सुबह-सुबह तैयार करने से लेकर शाम में खाने के समय तक कई तरीके से इन्वॉल्व किया जा सकता है। आपके लिए जरूरी यह है कि आप बच्चे से बात करें, वह किन चीजों में इंट्रस्ट लेता है और क्या करना चाहता है, यह सबकुछ सुनने के आपको बच्चे की बातें धैर्य से सुनना चाहिए। सुबह बच्चे को तैयार करते वक्त और शाम को खाना बनाने के वक्त से लेकर सुलाने तक उनसे ढेर सारी चीजों पर बात कर सकती हैं।
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अक्सर मम्मी-पापा खुद ही सारा काम करते रहते हैं और बच्चे को मोबाइल या लैपटॉप के सामने खेलने के लिए छोड़ देते हैं। इससे बच्चा जिम्मेदारियां संभालना सीख नहीं पाता। बेहतर होगा कि आप बच्चे से किचन में पानी की बोतलें भरने, बिस्तर ठीक करने, अपने सामान को अरेंज करने, खुद बस्ता लगाने, अपने शू पॉलिश करके रखने जैसे काम करने के लिए कहें। इसमें बच्चे को महत्वपूर्ण होने का अहसास होगा और वह खुशी-खुशी आपके काम में हाथ भी बंटाएगा। सिर्फ यही नहीं, घर के कई दूसरे कामों जैसे कि बाजार से सब्जी या घर का सामान लाना, मंथली बजट बनाना, प्रेस के कपड़ों का हिसाब रखना जैसे काम भी सौंपे। हर काम सीखने से उनमें जिम्मेदारी का भाव पैदा होता है और वे किसी तरह की नेगेटिव बात सोचने से भी बचते हैं। जाहिर सी बात है जब बच्चे कामों में इन्वॉल्व होंगे तो वे अपने भाई-बहनों के साथ किसी तरह का झगड़ा करने से ज्यादा अपने काम में रुचि लेंगे।
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