भगवान गणेश जी को बुद्धि और समृद्धि का देवता माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि गणेश जी की पूजा करने से सारी मन की उलझनें दूर हो जाती है। गणेश जी की पूजा करते वक्त 'गणपति बप्पा मोरया अगले बरस तू जल्दी आ' का जयकारा लगाया जाता है जिसका मतलब होता है हे गणपति हे सुखकरता बप्पा (पिता) अगली बार तुम फिर जल्दी से वापस आना। लेकिन ऐसा क्यों कहा जाता है यह बहुत कम लोगों को ही पता है।
आपको बता दें कि इसके पीछे दो कारण हैं और अगर आप इन दोनों कारणों के बारे में जानना चाहते हैं तो यह लेख जरूर पढ़ें।
गणेश जी ने किया था दैत्य का वध
- सबसे पहले आपको यह बता दें कि गणपति बप्पा शब्द से जुड़े हुए मोरया शब्द के पीछे भगवान गणेश जी का मयूरेश्वर स्वरूप माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार एक सिंधु नामक दानव के अत्याचार से सभी लोग बहुत परेशान हो चुके थे। वह शरीर से बहुत बलशाली था और अति क्रोधि स्भाव का था।
- जिसकी वजह से सभी देवी देवता उसके इस स्वरूप से परेशान होकर बचने का उपाय ढूंढ रहे थे। सभी देवी देवताओं ने उस दानव से बचने के लिए भगवान गणपति जी से मदद मांगी और इस समस्या का हल करने को कहा था।
- सिंधु दानव का वध करने के लिए भगवान गणेश जी ने मोर को यानी एक मयूर को अपना वाहन चुना था। गणेश जी ने सिंधु दानव का वध करने के लिए छह भुजाओं वाला अवतार धारण किया था। जिसमें हर भुजा में उन्होंने शस्त्र धारण किए थे।
- इस अवतार की वजह से और साथ ही साथ मयूर वाहन को उपयोग करने की वजह से सभी देवताओं ने गणपति बप्पा मोरया का जयकारा लगाया था। इस कारण से आज भी गणेश जी की पूजा करते वक्त सभी भक्त 'गणपति बप्पा मोरया' के जयकारे लगाते हैं।
- आपने यह भी देखा होगा कि जब भी गणेश चतुर्थी के बाद गणेश जी को विसर्जित करते 'गणपति बप्पा मोरया' का जयकारा लगाया जाता है।
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मोरया गोसावी की भक्ति
- आपको बता दें कि इसके पीछे एक और लोक कथा भी है जिसके अनुसार करीब 600 साल पहले महाराष्ट्र के चिंचवाड़ गांव में एक गणेश भक्त था जिसका नाम था मोरया गोसावी।
- ऐसी मान्यता है कि मोरया गोसावी भगवान गणेश के अंश थे। इनके पिता का नाम वामन भट्ट था और इनकी माता का नाम पार्वती बाई था। मोरया गोसावी के माता-पिता गणेश जी के भक्त थे।
- उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर गणेश जी ने उन्हें वरदान दिया था। जिसका संबंध महाराष्ट्र के मयूरेश्वर मंदिर और मोरया गोसावी नामक एक गणेश भक्त से था।
- आपको बता दें कि बचपन से ही मोरया गोसावी मयूरेश्वर के गणेश जी की भक्ति में लीन रहते थे और वह हर गणेश चतुर्थी के दिन चिंचवाड़ से 95 किलोमीटर दूर पैदल चलकर मयूरेश्वर मंदिर में गणेश जी के दर्शन के लिए जाते थे।
- बचपन से लेकर करीब 117 साल तक वह जीवित रहे और उन्होंने हर गणेश चतुर्थी पर यही किया था। लेकिन जब उनकी वृद्धावस्था हुई थी तब उनके लिए इतनी लंबी दूरी तय करके मयूरेश्वर मंदिर पहुंचना कठिन हो जाता था।
- ऐसा माना जाता है कि गणेश जी इनके सपने में आए थे और कहा था कि 'अब तुम्हें मयूरेश्वर मंदिर तक आने की जरूरत नहीं है और कल सुबह जब तुम स्नान करके कुंड से निकलोगे तो तुम मुझे(यानी गणपति जी को) अपने पास पाओगे'।
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- आपको जानकर आश्चर्य होगा कि उनका सपना सच हुआ था। जब मोरया स्वामी स्नान करके निकलने लगे थे तो उनके पास गणेश जी की वैसी ही छोटी सी एक प्रतिमा मिली जैसा उन्होंने सपने में देखा था। फिर इन्होंने चिंचवाड़ में उस मूर्ति की स्थापना की और कुछ समय बाद भक्त और भगवान दोनों की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैलने लगी।
- लोग गणेशजी के साथ उनके भक्त का नाम लेकर जयकारे लगाने लगे। इस वजह से भक्तों ने गणपति जी को गणपति बप्पा मोरया के नाम से पुकारना शुरू कर दिया था ओर आज भी यही पुकारते हैं।
तो यह थी गणेश जी से जुड़ी हुई जानकारी।
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Image credit- unsplash
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