'मां काली' को मानने वाले देश में रंग की वजह से पिता ने ली बेटी की जान, आखिर कब खत्म होगा काले-गोरे को लेकर समाज का पागलपन?

'काली मां' और 'सांवले कन्हैया' की पूजा करने वाले इस देश में एक पिता ने काले रंग की वजह से अपनी बेटी की जान ले ली। क्या वाकई समाज के तौर पर हम 21वीं सदी में कदम रख पाए हैं?

 
dark skin vs fair skin

आपको विवाह फिल्म याद है? इस फिल्म में अमृता राव यानी पूनम की चाची उससे सिर्फ इसलिए चिढ़ती थीं क्योंकि वह गोरी थी और उनकी बेटी का रंग गिरता हुआ था। पूरी फिल्म में वह अपनी बेटी को रंग गोरा करने के तरीके बताती हुई दिखी थीं।

अच्छा ये नहीं याद.... तो स्टार प्लस का पॉपुलर सीरियल बिदाई देखा था क्या आपने? इसमें भी हाल कुछ ऐसा ही था। दो बहने, एक काली-एक गोरी और इस काले-गोरे के जाल में उलझी उनकी जिंदगी!

खैर, यहां बात किसी सीरियल या फिर फिल्म की नहीं है बल्कि असल जिंदगी की है और ऊपर जो बातें हमने कहीं, उससे कई गुना ज्यादा गंभीर है। क्या आप मान सकते हैं कि एक पिता ने अपनी बेटी को उसके काले रंग की वजह से जहर दे दिया।

जी हां, 'काली मां' और 'सांवले कन्हैया' की पूजा करने वाले हमारे देश में यह चौंकाने वाली घटना हुई है। यह मामला आंध्र प्रदेश से सामने आया है जहां एक पिता ने अपनी 18 महीने की बेटी को जहर देकर मार दिया क्योंकि उसे अपनी बेटी के काले रंग से परेशानी थी। इस घटना ने मुझे को अंदर तक झकझोर कर रख दिया और साथ ही, मेरे मन में कई सवाल भी खड़े कर दिए हैं, जिनके जवाब मिलेंगे या नहीं, पता नहीं, लेकिन सवाल पूछने तो जरूरी हैं न!

काले रंग की वजह से पिता ने दिया बेटी को जहर

man killed his daughter

आज के वक्त में जब लोगों का रिश्तों पर से विश्वास उठता जा रहा है तब बाप और बेटी का रिश्ता उन चुनिंदा रिश्तों में से एक रह गया है, जो प्यार और विश्वास के खूबसूरत रंगों में रंगा है। पिता वह छत होता है, जिसके साये में कोई भी बेटी खुद को महफूज समझती है, लेकिन जरा सोचिए! अगर एक पिता ही अपनी बेटी के काले रंग की वजह से उसकी जान ले ले तो क्या आपके और मेरे लिए इस बात पर यकीन करना आसान होगा। बिल्कुल भी नहीं। लेकिन ऐसा एक मामला पिछले हफ्ते आंध्र प्रदेश से सामने आया है। एक शख्स ने अपनी 18 महीने की बेटी को उसके रंग की वजह से जहर दे दिया। रिपोर्ट्स की मानें तो यह व्यक्ति पहले तो बेटी होने से खफा था और जब उसने बेटी का दबा हुआ रंग देखा, तो वह और नाराज हो गया। उसने अपनी बेटी को न प्यार किया और न ही कभी सीने से लगाया। एक दिन मौका पाकर बेटी को जहर दे दिया और पत्नी से झूठ बोला कि बच्ची को हार्ट अटैक हुआ था। हालांकि, बाद में सच सामने आ गया।

आखिर कब तक काले-गोरे को लेकर जारी रहेगा समाज का यह पागलपन?

हमारे देश में कई बातों को लेकर दोहरा रवैया अपनाया जाता है और यह उन्हीं में से एक है। जिस तरह हमें कन्या पूजन के लिए देवी तो चाहिए, लेकिन घर में बेटी के जन्म पर आज भी कई लोग खुश होने के बजाय मायूस नजर आते हैं। ठीक उसी तरह, हम काली मां के आगे सिर झुकाते हैं, लेकिन घर में बहू तो गोरी ही आनी चाहिए। आखिर क्यों? बेशक, आज समाज के आज बड़े हिस्से से अपना रवैया बदला है। लेकिन आज भी कई जगहों पर सांवली लड़कियां तानों, अपमान और शर्मिन्दगी का घूंट पीती हैं। अगर आप अखबार के पन्नों को पलटेंगे या आंकड़ों पर गौर करेंगे तो 2019 से लेकर 2022 तक कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां लड़कियों ने काले रंग की वजह से मिलने वाले तानों से परेशान होकर मौत को गले लगा लिया।

2018 में भी सामने आया था ऐसा ही एक मामला

dark skinned woman problems

2018 में पश्चिम बंगाल से भी ऐसा ही एक मामला सामने आया था। यहां एक 24 साल की लड़की को उसके ससुराल वालों ने उसके दबे रंग की वजह से जलाकर मार दिया था। परिवार ने लड़की के ससुराल वालों पर आरोप लगाया था कि वे उनकी बेटी को काले रंग की वजह से ताने देते थे, दहेज की मांग करते थे।

2018 में ही भोपाल से एक मामला सामने आया था जहां एक औरत अपने बच्चे को पत्थर से घिस रही थी क्योंकि किसी ने उसे ऐसा बताया था कि इससे उसके बच्चे का रंग काले से गोरा हो जाएगा। इससे बच्चे के शरीर पर घाव भी हो गए थे।

एक्ट्रेसेस ने भी झेला है काले-गोरे रंग का भेद

suhana khan about dusky look

बॉलीवुड में कई एक्ट्रेसेस को भी उनके सांवले रंग की वजह से आलोचनाओं को शिकार होना पड़ा था। कई साल पहले सुहाना खान को सोशल मीडिया पर सांवले रंग की वजह से ट्रोलिंग का सामना करना पड़ा था। उनके अलावा, प्रियंका चोपड़ा, बिपाशा बासु, रेखा और नंदिता दास समेत कई एक्ट्रेसेस भी इस तरह के भेदभाव का शिकार हो चुकी हैं और इस पर खुलकर बात कर चुकी हैं।

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काले-गोरे रंग से नहीं, काम से मिलनी चाहिए पहचान

समाज की सोच को आज कई मायनों में बदलने की जरूरत है। इनमें से एक यह काले-गोरे रंग का पैमाना है, जिस पर खासकर लड़कियों को आंका जाता है। फेयरनेस क्रीम के विज्ञापन भी एक वक्त तक कुछ ऐसे ही होते थे जिन्हें देखकर लगता था कि जैसे ही कोई काली लड़की फेयरनेस क्रीम लगाकर गोरी हो जाती है, वैसे ही उसके सारे सपने पूरे होने लगते हैं। उसे सपनों का राजकुमार मिल जाता है, वह डरने और घबराने की जगह कॉन्फिडेंट हो जाती है और अचानक से उसकी दुनिया बदल जाती है। हालांकि, आज यह काफी हद तक कम हुआ है। लेकिन बात यहां सीरियल, फिल्म या विज्ञापन की नहीं, बल्कि असल समाज की है। एक समाज के तौ पर हमें यह समझना होगा कि किसी की काबिलियत तय करने का पैमाना रंग नहीं, बल्कि उसका हुनर है। बहू गोरी हो या काली, बिटिया गोरी हो या सांवली, सम्मान और प्यार उन्हें बराबर का मिलना चाहिए।

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