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11 साल की लड़की से मोना डार्लिंग बनने तक का सफर, जानें गुजरे जमाने की मश्हूर एक्ट्रेस बिंदू के बारे में

गुजरे जमाने की टॉप एक्ट्रेस बिंदू के बारे में कुछ खास बातें जिन्हें शायद आप न जानते हों। एक समय पर हिरोइन से ज्यादा महत्व बिंदू को दिया जाता था। 
Editorial
Updated:- 2021-03-19, 12:50 IST

गुजरे जमाने में हमने कई क्लासिक एक्टर्स को देखा जो अपनी एक्टिंग और जौहर से सभी का दिल जीत लेते थे। अलग-अलग फिल्मों में कई सारे लीड एक्टर्स होते थे, लेकिन उन फिल्मों में अक्सर वैम्प या फिर बोल्ड किरदार में बिंदू दिखती थीं। बिंदू वो नाम बन चुकी थीं जो किसी भी फिल्म में ग्लैमर लेकर आती थीं और 70 के दशक में बोल्ड और ब्यूटिफुल का टैग उन्हें मिला था। बिंदू ने फिल्म इंडस्ट्री में अपनी एक अलग पहचान बना ली थी और उन्हें लोग इतना पसंद करते थे कि उनके पर्दे पर आते ही तालियां बजने लगती थीं।

बोल्ड एंड ब्यूटीफुल बिंदू का वो दौर था जब ये माना जाता था कि अच्छे घरों की लड़कियां एक्टिंग नहीं करती हैं तब उस दौर में बिंदू ने सारी कठिनाइयों को पार करके अपना नाम कमाया। बिंदू ने अपने काम को ही अपनी जिंदगी बना लिया और उन्होंने ऐसे रोल्स चुने जिनके कारण उन्हें लोगों के ताने भी झेलने पड़े, लेकिन इसकी परवाह न करते हुए बिंदू ने खुद को आगे बढ़ाया।

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बिंदू को इस कारण एक्ट्रेस नहीं वैम्प के किरदार मिलने लगे-

बिंदू का पूरा नाम है बिंदू नानूभाई देसाई जो फिल्म प्रोड्यूसर नानूभाई देसाई की बेटी हैं। वो थिएटर में हमेशा से ही दिलचस्पी लेती थीं और हमेशा से ही एक्ट्रेस बनना चाहती थीं। बिंदू एक्ट्रेस वैजयंती माला की बहुत बड़ी फैन थीं। 1962 में फिल्म 'अनपढ़' से अपना करियर शुरू करने के बाद बिंदू ने पीछे पलट कर नहीं देखा। इसके बाद ही उन्हें 'इत्तेफाक' और 'दो रास्ते' दोनों फिल्में मिलीं जो बॉक्स ऑफिस पर हिट भी हुईं और उन्हें फिल्म फेयर नॉमिनेशन और अवॉर्ड भी मिले। वैसे तो बिंदू हमेशा से ही एक्ट्रेस बनना चाहती थीं, लेकिन डायरेक्टर्स को लगता था कि वो बहुत पतली हैं और फिल्म 'दो रास्ते' से ही बिंदू ने निगेटिव रोल करने शुरू कर दिए।

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बिंदू के पिता को नहीं था बेटी का एक्टिंग करना-

वैसे तो बिंदू के पिता खुद एक प्रोड्यूसर थे और वो जाना-माना नाम हुआ करते थे, लेकिन बिंदू के पिता को उनका एक्टिंग करना बिलकुल भी पसंद नहीं था। वो चाहते थे कि बिंदू डॉक्टर बनें। बिंदू ने अपने स्कूल में कई नाटकों में हिस्सा लिया और उनके दोस्तों ने उन्हें एक्टिंग करने की सलाह दी। पर ये सब कुछ बिंदू के घर वालों को कतई पसंद नहीं था।

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कम उम्र में ही बिंदू पर आ गई थी कमाने की जिम्मेदारी-

बिंदू के पिता को जल्द ही बीमारियों मे घेर लिया और बिंदू के ऊपर पूरे परिवार की जिम्मेदारी आ गई। 8 बच्चों में सबसे बड़ी बिंदू ने अपने परिवार का बीड़ा उठाया और पिता की मौत के बाद काम करना शुरू किया। एक इंटरव्यू में बिंदू ने बताया था कि उनके पिता ने काफी कर्ज छोड़ा था जिसे चुकाने के लिए बिंदू ने काम किया और 11 साल की उम्र में ही मॉडलिंग शुरू कर दिया और जल्दी ही फिल्मों में एंट्री ले ली।

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बिंदू को इसलिए मिली थी 11 साल में मॉडलिंग-

11 साल की बिंदू को मॉडलिंग मिली थी और इसलिए क्योंकि उनकी कद काठी 16 साल की लड़की की तरह थी। फिल्म 'अनपढ़' में उन्होंने माला सिन्हा की बेटी का किरदार निभाया था और एक्टिंग के साथ-साथ वो अपनी स्कूलिंग भी करती थीं। इसी दौरान उनकी मुलाकात उनके होने वाले पति से हुई। बिंदू की शादी बिजनेसमैन चंपकलाल झवेरी से हुई। एक इंटरव्यू के दौरान बिंदू ने बताया था कि चंपकलाल उनके पड़ोसी हुआ करते थे और बिंदू और उनकी उम्र में 5 साल का अंतर था। बिंदू हमेशा मिलने का वादा करके नहीं जाती थीं और चंपकलाल ने कभी इसके बारे में कुछ नहीं कहा।

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इस तरह कुछ ही फिल्मों में बन गईं स्टार और कहलाने लगीं 'मोना डार्लिंग'-

1969 में 'इत्तेफाक' में रेणु का किरदार निभाने के बाद फिल्म 'दो रास्ते' में वो नीला का किरदार निभा चुकी थीं। दोनों फिल्में बॉक्स ऑफिस पर हिट थीं और उन्हें फिल्म फेयर नॉमिनेशन भी मिले। 1972 में बिंदू ने 'दास्तां' में माला का किरदार निभाया और फिर से उन्हें फिल्म फेयर नॉमिनेशन मिला। 1973 में बिंदू को 'अभिमान' फिल्म में काम करने का मौका मिला। उनकी परफॉर्मेंस की तारीफ हुई और उन्हें चौथा फिल्म फेयर नॉमिनेशन मिला। अब तक बिंदू स्टार बन चुकी थीं। 1973 में आई फिल्म 'जंजीर' जिसमें विलेन के साथ काम करने वाली लड़की के किरदार में उनका नाम मोना रखा गया था और उस फिल्म में उन्हें मोना डार्लिंग बुलाया जाता था। यही कारण है कि अपने स्टारडम के चरम पर बिंदू ने मोना डार्लिंग बन सबको चौंका दिया था।

इसके बाद 1974 में 'हवस' और 1976 में 'अर्जुन पंडित' में एक्टिंग करने के बाद बिंदू ने अपना स्टारडम स्थापित कर लिया था।

डांसिंग स्टार को लगा था झटका और करियर होने लगा था खत्म-

फिल्म 'कटी पतंग' में बिंदू का डांस नंबर 'मेरा नाम शबनम' तो शायद आपने देखा हो। उन्हें उनके शब्बो वाले रोल के लिए जाना जाता था। शादी के बाद ही उन्होंने फिल्मों में काम करना शुरू किया और उन्हें कभी हिरोइन का रोल नहीं मिला, लेकिन कभी उन्हें किसी हिरोइन से कम भी नहीं समझा गया। 1977-1980 के दौर में बिंदू को मिसकैरेज और हेल्थ से जुड़ी समस्याओं से गुजरना पड़ा।

उनके डॉक्टर्स ने उन्हें डांसिंग करने से मना कर दिया और पर्दे की ये ग्लैमसर वैम्प वहीं रुक गई और फिर से वो ग्लैमर वर्ल्ड में वापसी नहीं कर पाईं।

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बिंदू ने दोबारा शुरू किया अपना करियर और बनाया मुकाम-

बिंदू ने 1980 के दशक में रुपहले पर्दे पर वापसी की और मैच्योर रोल निभाए। उन्होंने फिल्में जैसे 'हीरो, अलग-अलग, बीवी हो तो ऐसी, किशन कन्हैया' में खुद को स्थापित किया और खड़ूस मां, सास और आंटी का किरदार निभाया है।

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बिंदू ने अपने करियर की कुछ सबसे अच्छी परफॉर्मेंस ऐसे ही दीं। वो अपने खोए हुए बच्चे को याद जरूर करती हैं, लेकिन अपने पति को ही अपना सबसे बड़ा भावनात्मक साथ मानती हैं और अपने पति को ही वो अपना बेस्ट फ्रेंड मानती हैं।

बिंदू आज भी उतनी ही जिंदादिल हैं जितनी वो पहले थीं।

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