भारत में शादियां किसी भव्य उत्सव से कम नहीं होती हैं। ये बड़े आयोजन पारंपरिक रीति-रिवाजों, सांस्कृतिक गतिविधियों और रंग-बिरंगे समारोहों से भरे होते हैं।
हालांकि, इन रीति-रिवाजों और परंपराओं में क्षेत्र के अनुसार कई भिन्नताएं भी होती हैं, लेकिन इनका मूल उद्देश्य देश की विविधता और समृद्ध संस्कृति को प्रदर्शित करना होता है। अगर हम शादियों की बात करें तो हर एक क्षेत्र की शादी में अलग तरह की रस्में देखने को मिलती हैं।
इन भौगोलिक भिन्नताओं में, उत्तर और दक्षिण भारत की शादियां सबसे ज्यादा अलग दिखती हैं। आप इन शादियों में अंतर् इसमें पहने जाने वाले कपड़ों अंतर कपड़ों, खाने, रस्मों को निभाने के तरीके और समय जैसे पहलुओं में स्पष्ट होता है। आमतौर पर लोग दक्षिण और उत्तर भारत की शादियों के अंतर को देखना चाहते हैं और हर एक रस्म का मतलब समझना चाहते हैं। आइए हम आपको बताते हैं इन शादियों के बीच के अंतर के बारे में।
शादी के रीति-रिवाज और संस्कृति
भारतीय शादियां अपनी समृद्ध संस्कृति और विविध रीति-रिवाजों के लिए सदियों से प्रसिद्ध हैं, जो क्षेत्र के अनुसार भिन्न होती हैं। दक्षिण भारतीय शादियां धार्मिक और पारंपरिक प्रथाओं से गहराई से जुड़ी होती हैं। शुभ मुहूर्त का चयन, पवित्र मंत्रोच्चारण, और मंगलसूत्र बांधने जैसी रस्में यहां के समारोहों का मुख्य हिस्सा हैं। हर विधि का आध्यात्मिक महत्व होता है, जो इन शादियों को अद्वितीय बनाता है।
दूसरी ओर, उत्तर भारतीय शादियां अपनी जीवंत और रंग-बिरंगी परंपराओं के लिए जानी जाती हैं। हल्दी की रस्म, संगीत समारोह, जूता चुराई और जयमाल जैसे अनूठे रीति-रिवाज इन शादियों को खास बनाते हैं। इन उत्सवों में न केवल वर-वधू, बल्कि उनके परिवार और मित्र भी पूरे मनोभाव से शामिल होते हैं।
चाहे दक्षिण हो या उत्तर, हर भारतीय शादी प्रेम, परंपरा और संस्कृति का उत्सव है। ये रीति-रिवाज न केवल दो लोगों को बल्कि दो परिवारों और संस्कृतियों को भी जोड़ते हैं, जो भारतीय विवाहों को इतना विशेष बनाते हैं।
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शादी का मुहूर्त और समय
उत्तर और दक्षिण भारतीय शादियों में सबसे बड़ा अंतर उनके समय और मुहूर्त में देखने को मिलता है। एक तरफ जहां दक्षिण भारतीय शादियां पारंपरिक रूप से सुबह जल्दी शुरू होती हैं और 10 बजे तक इसकी सभी रस्में समाप्त हो जाती हैं। इस समय अवधि को शास्त्रों और परंपराओं के आधार पर अत्यधिक शुभ माना जाता है क्योंकि इस दौरान रस्मों का आरंभ ब्रह्म मुहूर्त से होता है जो इन शादियों में आध्यात्मिकता का महत्व दर्शाता है।
इसके विपरीत, उत्तर भारतीय शादियां आमतौर पर शाम को आरंभ होती हैं और रातभर उत्सव का माहौल बना रहता है। कई बार ये समारोह अगले दिन तक चलते हैं। इस दौरान बारात, जयमाला और अन्य पारंपरिक रस्मों के साथ नाच-गाने और खाने-पीने का आनंद लिया जाता है।
दोनों क्षेत्रों की शादियों का समय उनके सांस्कृतिक दृष्टिकोण और परंपराओं का प्रतीक है। जहां दक्षिण भारतीय शादियां आध्यात्मिकता और सादगी को प्राथमिकता देती हैं, वहीं उत्तर भारतीय शादियां भव्यता का प्रतीक हैं। दोनों ही शैलियों में शादी का समय और मुहूर्त उनके क्षेत्रीय और धार्मिक मान्यताओं को गहराई से प्रतिबिंबित करता है।
कैसे अलग है शादी का परिधान और आभूषण
उत्तर और दक्षिण भारतीय शादियों में दुल्हन और दूल्हे के परिधान और आभूषणों में स्पष्ट भिन्नता देखने को मिलती है। दक्षिण भारतीय दुल्हनें पारंपरिक रूप से रेशमी साड़ी पहनती हैं, जो उनके सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों को दर्शाती है। इन साड़ियों के चमकीले रंग और जटिल डिज़ाइन उनकी परंपरा का प्रतीक होते हैं।
दूल्हे धोती या मुंडु पहनते हैं, जो सादगी और परंपरा का मेल होता है। आभूषणों की बात करें तो, दक्षिण भारतीय दुल्हनें सोने के गहनों से सजी होती हैं, जिनमें मंदिर आभूषण शैली खास होती है। ये गहने न केवल उनकी सुंदरता बढ़ाते हैं, बल्कि आध्यात्मिकता का भी प्रतीक हैं। वहीं, उत्तर भारतीय दुल्हनें रंगीन और भव्य परिधान पहनती हैं जैसे लहंगे या साड़ियां।
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दक्षिण और उत्तर भारतीय शादी का नृत्य और संगीत
भारतीय शादियां अपनी ऊर्जा और खुशियों के माहौल के लिए जानी जाती हैं और नृत्य व संगीत इनमें जान डालने का काम करते हैं। दक्षिण भारतीय शादियां अपनी पारंपरिक शैली के लिए प्रसिद्ध हैं, जहां नादस्वरम और मृदंग जैसे वाद्य यंत्र समारोह में खास महत्व रखते हैं।
इसके अलावा, भरतनाट्यम जैसे शास्त्रीय नृत्य और कर्नाटिक संगीत का भी प्रमुख योगदान होता है। ये तत्व न केवल शादियों को सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाते हैं, बल्कि उनमें आध्यात्मिकता का भी संचार करते हैं।
इसके विपरीत, उत्तर भारतीय शादियां नृत्य और संगीत के रंगीन और जोशीले प्रदर्शन के लिए जानी जाती हैं। यहां गिद्दा और भांगड़ा जैसे पारंपरिक लोक नृत्य शादी के उत्सव में उमंग भर देते हैं। वहीं शहनाई और ढोल की गूंज माहौल को और भी जीवंत बना देती है। इसके साथ ही इन शादियों में बॉलीवुड के लोकप्रिय गानों पर होने वाले नृत्य और संगीत प्रदर्शन समारोह की शोभा बढ़ाते हैं।
दक्षिण और उत्तर भारत की शादी का समयकाल
दक्षिण और उत्तर भारतीय शादियों के आयोजन की अवधि में अंतर देखने को मिलता है। दक्षिण भारतीय शादियां आमतौर पर तीन से पांच दिनों तक चलती हैं, जिनमें परिवार और रिश्तेदारों का धार्मिक और पारंपरिक अनुष्ठानों में सक्रिय रूप से भाग लेना शामिल होता है।
इन शादियों में हर दिन का एक विशेष महत्व होता है, जहां सभी रस्में विधि-विधान के साथ पूरी की जाती हैं। यह विस्तारित समयकाल परिवारों को आपस में जुड़ने और परंपराओं का सम्मान करने का अवसर प्रदान करता है।
इसके विपरीत, उत्तर भारतीय शादियां अपेक्षाकृत छोटी होती हैं और तीन दिनों के भीतर पूरी हो जाती हैं। हालांकि इन शादियों में भी सभी मुख्य रस्में जैसे हल्दी, मेहंदी और विवाह विधि शामिल होती हैं, लेकिन इन्हें कम समय में संपन्न किया जाता है। उत्तर भारतीय शादियां अधिक जीवंत और भव्य माहौल के लिए जानी जाती हैं, जहां उत्सव और मनोरंजन का मुख्य आकर्षण होता है।
दोनों शादियों की समयावधि उनकी सांस्कृतिक और पारंपरिक प्राथमिकताओं को दर्शाती है। जहां दक्षिण भारतीय शादियां विस्तार और आध्यात्मिकता पर जोर देती हैं, वहीं उत्तर भारतीय शादियां उत्सव और आनंद का प्रतीक हैं।
कई रूपों में दक्षिण और उत्तर भारतीय शादियां एक दूसरे से अलग होती हैं और इनकी परंपरा भी ख़ास होती है।
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