Dev Uthani Ekadashi 2022 Vrat Katha: 4 नवंबर, दिन शुक्रवार यानी कि आज देवउठनी एकादशी पड़ रही है। देवउठनी एकादशी को देवोत्थान एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार, देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार माह की निद्रा के बाद जागते हैं और पाताल से अपने धाम वैकुंठ पुनः लौट आते हैं। देवउठनी एकादशी के साथ ही सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है। हालांकि इस बार सूर्य अस्त होने के कारण मांगलिक कार्यों की शुरुआत 21 नवंबर से होगी।
हमारे एक्सपर्ट ज्योतिषाचार्य डॉ राधाकांत वत्स ने देवउठनी एकादशी के पर्व पर हमें इस दिन की पावन कथा के बारे में बताया जो आज हम आपसे साझा करने जा रहे हैं। हमारे एक्सपर्ट के अनुसार, देवउठनी एकादशी के दिन बिना इसकी कथा श्रवण के भगवान विष्णु की पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती है। हमारे एक्सपर्ट के अनुसार, एकादशी के दिन अगर पूजा पाठ के बाद व्रत कथा सुनी जाए तो पूजा का दोगुना फल प्राप्त होता है। तो आइये जानते हैं देवउठनी एकादशी की व्रत कथा।
पौराणिक कथा के अनुसार, एक राज्य था जहां के सभी निवासी एकादशी व्रत का पालन किया करते थे। पालन इतनी कड़ाई से होता था कि एकादशी के दिन क्या मनुष्य और क्या पशु पक्षी किसी को भी भोजन नहीं दिया जाता था। एक बार एक बाहरी व्यक्ति राजा के राज्य में नौकरी पाने की इच्छा से पहुंचा। तब राजा ने नौकरी देने का वचन तो दिया लेकिन एक शर्त के साथ। शर्त ये थी कि महीने में जो दो बार एकादशी आती है उन दोनों दिन उसे भोजन नहीं मिलेगा।
नौकरी के चलते व्यक्ति ने राजा की बात मान ली। जब अगले महीने एकादशी आई तो राजा के कथन अनुसार उस व्यक्ति को अन्न नहीं मिला। हालांकि उसे राजा की ओर से फलाहार की सामग्री प्रदान की गई लेकिन उस व्यक्ति से भूख बर्दाश्त नहीं हुई और वो राजा से अन्न की मांग करने लगा। वह राजा के सामने अन्न के लिए गिड़गिड़ाने लगा। राजा ने उस व्यक्ति को नौकरी की शर्त याद दिलाते हुए अन्न देने से मना कर दिया। मगर भूख से बेबस वो व्यक्ति अन्न की मांग करता रहा जिसके बाद राजा ने उसे अन्न देने का आदेश जारी कर दिया।
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राजा के आदेश पर उस व्यक्ति को कच्चा आटा, चावल और दाल दिया गया। भोजन सामग्री पाकर व्यक्ति खुश हो गया और नदी किनारे पहुंच गया। नदी के तट पर पहुंचते ही उसने स्नान किया और भोजन पकाने की तैयारी में जुट गया। जैसे ही भोजन तैयार हुआ उसने भगवान विष्णु का स्मरण किया और उन्हें भोजन पर आमंत्रित करने लगा। उसकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु (भगवान विष्णु के मंत्र) अपने चतुर्भुज स्वरूप में पीले वस्त्र धारण किए प्रकट हुए। वह व्यक्ति भगवान के साथ भोजन करने लगा। भगवान विष्णु ने भी उसके साथ बड़े ही प्यार से खाना खाया और फिर वो अपने धाम वापस लौट गए।
जब अगली एकादशी आई तो उस व्यक्ति ने राजा से पुनः ज्यादा मात्र में खाना मांगा जिसका कारण उसने यह बताया कि वह भगवान के साथ खाना खाता है और पहली एकादशी पर खाना कम पड़ गया था। व्यक्ति की बात सुन राजा अचरज में पड़ गया। उस यूस व्यक्ति की बात पर भरोसा नहीं हुआ। राजा मन ही मन सोचने लगा कि इतने सालों से वह एकादशी का व्रत कर रहा है लेकिन भगवान ने उसे आजतक दर्शन नहीं दिए। वहीं, जिसने एकादशी (देवउठनी एकादशी पूजा विधि) का कभी व्रत नहीं किया भगवान उसके साथ खाना खाते हैं।
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राजा के मन में अविश्वास देख उस व्यक्ति ने राजा को अपने साथ चलने को कहा। एकादशी के दिन राजा एक पेड़ के पीछे छिप गया और वह व्यक्ति अपने हमेशा के नियम अनुसार स्नान ध्यान करके और भोजन बना कर भगवान को बुलाने लगा मगर इस बार भगवान नहीं आए। व्यक्ति ने कई बार भगवान से आने की प्रार्थना की लेकिन मानो भगवान ने उसकी हर प्रार्थना अनसुनी कर दी। जिसके बाद उस व्यक्ति ने नदी में कूदकर भगवान से अपनी जान देने की बात कही।
वह व्यक्ति नदी में कूदने ही जा रहा था कि तभी भगवान प्रकट हो गए और उसे रोक लिया। वे उसके साथ बैठकर भोजन करने लगे। भोजन के बाद भगवान उस व्यक्ति को बैठाकर अपने साथ अपने धाम ले गए। राजा ने यह पूरा दृश्य छुपकर देखा और तब उसे इस बात का ज्ञान हुआ कि मन की शुद्धता के साथ ही व्रत और उपवास करना चाहिए तभी व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है। इस घटना के बाद से राजा भी पवित्र मन से व्रत और उपवास करने लगा। जीवन के अंत में उसे भी स्वर्ग की प्राप्ति हुई।
तो ये थी देवउठनी एकादशी की पावन कथा। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर जरूर शेयर करें और इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ। आपका इस बारे में क्या ख्याल है? हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।
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