दिवाली आने वाली है और इसकी तैयारी हर घर में चल रही है। साफ-सफाई कार्यक्रम हर घर में शुरू हो गया है। 5 नवम्बर को धनतेरस है और उस दिन से दिवाली शुरू हो जाएगी। दिवाली के छह दिन बाद छठ पूजा है। इस कारण ही यह पर्व सूर्य पष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। इस कारण 13 नवंबर को देश के कई उत्तर पूर्वी राज्यों में धूमधाम से छठ पूजा मनाई जाएगी।
वैसे तो ये बिहार में मनाया जाता है लेकिन अब इसे पूरे उत्तर भारत में भी मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य तौर पर महिलाएं परिवार की खुशी के लिए करती हैं। लेकिन अब पुरुष भी करने लगे हैं। छठ पूजा में सूर्य भगवान और छठी मैया की पूजा और उगते सूर्य और डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है। आज हम आपको बताएंगे छठ पूजा शुभ मुहूर्त, नहाय खाये, खरना, पहला अर्घ्य और दूसरे अर्घ्य देने के शुभ मुहुर्त से जुड़ी सारी जानकारी इस आर्टिकल में बताने वाले हैं।
11 नवंबर का छठ पूजा का पहला दिन है। इस दिन नहाय-खाय है। छठ के पहले दिन नहाय खाये से मतलब है कि इस दिन नहाने के बाद घर की सफाई और मन को तामसिक प्रवृत्ति से बचने के लिए शु्द्ध शाकाहारी भोजन किया जाता है। इस दिन 06:44 पर सूर्योदय और 18:01 पर सूर्यास्त होगा।
छठ के दूसरे दिन 12 नवंबर को खरना है। खरना का मतलब होता है पूरे दिन का उपवास। मान्यता के अनुसार, इस दिन उपवास के दौरान व्यक्ति जल की एक बूंद तक नहीं ग्रहण करता है। वहीं शाम के समय में गुड की खीर, घी चिपड़ी रोटी और फलों का सेवन किया जाता है। इस दिन 06:44 पर सूर्योदय और 18:01 पर सूर्यास्त होगा। सूर्यास्त होने के बाद व्रतधारी परसाद ग्रहण करती हैं और फिर लोगों में परसाद बांटा जाता है।
13 नवंबर को छठ पूजा का तीसरा दिन है और इस दिन नदी के साफ जल में खड़े होकर व्रतधारी सूर्य को संध्या अर्घ्य देते हैं। इस दिन संध्या के समय ठेकुआ, बांस की टोकरी में फल, चावल के लड्डू आदि से अर्घ्य सूप सजाने का योग है। इसके बाद व्रति अपने परिवार को सूर्य अर्घ्य देती हैं। अर्घ्य के समय दूध और जल से सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है।
रात में छठ माता की कथा सुनाई जाती है। फिर छठी माता के गीत गाए जाते हैं। इस दिन 06:45 पर सूर्योदय और सूर्यास्त 18:01 पर होगा। (Read More: छठ पर्व पर 10 मिनट में बनाएं गुड़ वाले ठेकुआ)
छठ पूजा का चौथे दिन 14 नवंबर को उषा अर्घ्य दिया जाता है। यह छठ पूजा का अंतिम दिन होता है। मान्यता के अनुसार, सुबह सूर्योदय से पहले इस दिन नदी के घाट पर उगते हुए सूरज को अर्घ्य दिया जाता है। जिसके बाद छठ माता से परिवार की सुख-शांति और संतान की रक्षा मांगी जाती है। इस दिन व्रति पूजा के बाद कच्चे दूध का शर्बत पीकर और हल्का प्रसाद ग्रहण कर व्रत को पूरा करती हैं जिसे परना या पारण कहा गया है। इस दिन 06:45 पर सूर्योदय और सूर्यास्त 18:00 बजे होगा।
छठी माता को ठेकुआ का भोग लोग जाता है। ठेकुआ बनाना जरूरी होता है। इस दिन बनाए जाने वाले ठेकुआ गुड़ के बनते हैं। गुड़ शरीर को गर्मी देता है और छठ पूजा के बाद सर्दियां शुरू हो जाती हैं। इसी का संकेत होता है ठेकुआ।
तो इन तरीकों से ठेकुआ बनाए और सच्चे मन से छठ पूजा का व्रत रखें। लेकिन छठ पूजा का व्रत हर कोई नहीं रख पाता है। इसलिए आप शुद्ध तरीके से ठेकुआ बनाकर और गन्ना को लेकर सूप बनाएं और छठी माता को व्रतधारी के द्वारा चढ़ाएं।
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