Chandraayan-3 Mission ISRO: चंद्रमा की सतह पर चंद्रयान-3 के पहुंचते ही दुनिया में भारत चांद के साउथ पोल पर पहुंचने वाला पहला देश बन जाएगा। चंद्रयान-3 का मकसद, चांद की सतह पर पानी की मौजूदगी का पता लगाना है। चंद्रयान की सॉफ्ट लैंडिंग के बाद भारत इस मामले में रूस, अमेरिका और चीन जैसे देशों की बराबरी में आ जाएगा।
दरअसल, अभी तक रूस, अमेरिका और चीन ने चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने में सफलता हासिल की है। आपको बता दें कि चंद्रयान-3 का लॉन्च सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र शार, श्रीहरिकोटा से दोपहर 2 बजकर 35 मिनट पर 14 जुलाई को हुआ था। इसको चंद्रमा की सतह पर पहुंचने में 35 दिन लगे हैं।
असल में हिन्दू पंचांग के मुताबिक, पूर्णिमा के दिन चंद्रमा बिलकुल गोल नज़र आता है, लेकिन एक उपग्रह के तौर पर चांद किसी गेंद की तरह गोल आकार का नहीं है। चांद अंडाकार होता है। जब आप धरती से चांद की ओर देखते हैं, तो आपको इसका कुछ ही हिस्सा नज़र आता है। साथ ही, चांद का वजन भी उसके ज्यामितीय केंद्र में नहीं रहता है और यह अपने ज्यामितीय केंद्र बिन्दु से 1.2 मील दूर मौजूद है।
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आप कभी भी चांद को देखते हैं, तो आप उसका मैक्सिमम 59 प्रतिशत हिस्सा ही देख पाते हैं। चांद का 41 प्रतिशत हिस्सा धरती से दूर होने की वजह से नज़र नहीं आता है। अगर आप अंतरिक्ष में जाते हैं और उस 41 प्रतिशत क्षेत्र में खड़े हो जाएं, तो आपको चांद से धरती दिखाई नहीं देगी।
चांद के साउथ पोल पर लैंड करना किसी भी लैंडर के लिए बहुत मुश्किल है। इस क्षेत्र में कई बड़े गड्ढे हैं। साथ ही, इस इलाके की ज्यादा जानकारी अबतक नहीं है। इसी के कारण पूरी सावधानी के साथ लैंडिंग स्पॉट का चयन किया गया है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस क्षेत्र में पानी और कई खनिज मौजूद हो सकते हैं।
चंद्रयान-3 मिशन के बाद इसरो का अगला बड़ा प्रोजेक्ट आदित्य एल 1 मिशन, है। यह अंतरिक्ष में जाकर सूर्य की स्टडी करेगा। इसमें सूर्य से पैदा किए गए लैगरेंज बिंदु 1 आसपास अंतरिक्ष के मौसम का अध्ययन करेगा।
चांद का साउथ पोल क्षेत्र जहां चंद्रयान-3 पहुंचने की कोशिश कर रहा है, उसे वैज्ञानिक अभी तक बेहद रहस्यमयी मानते हैं। नासा के मुताबिक, इस क्षेत्र में ऐसे कई गहरे गड्ढे और पर्वत हैं जिनकी छांव वाली जमीन पर अरबों सालों से सूरज की रोशनी नहीं पहुंची है। चंद्रयान 3 इन सभी रहस्य का खुलासा करेगा।
चंद्रमा से जुड़ा 'ब्लू मून' शब्द साल 1883 में इंडोनेशियाई द्वीप क्राकाटोआ में हुए ज्वालामुखी विस्फोट के कारण उपयोग में आया है। आपको बता दें कि इस घटना को पृथ्वी के इतिहास में बड़े ज्वालामुखी विस्फोटों में गिना जाता है। कुछ खबरों के अनुसार, इस धमाके की आवाज़ पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के में स्थित शहर पर्थ और मॉरीशस तक सुनी गई थी। वहीं, इस विस्फोट के बाद वायुमंडल में बहुत राख फैल गई थी। इसकी राख के असर से रातों में चांद नीला नज़र आया था। इसके बाद से ही ब्लू मून शब्द का इस्तेमाल किया जाता है।
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Photo Credit:Twitter, Isro
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