शिक्षा से वंचित रखने से लेकर घरेलू हिंसा तक, क्यों आजादी के 76 साल बाद भी महिलाओं के साथ हो रहा दुर्व्यवहार

महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवाया है। इसके बावजूद आज भी महिलाओं का हर तरह से शोषण किया जाता है। क्या यही है असली आजाद भारत की पहचान?

  • Hema Pant
  • Editorial
  • Updated - 2023-08-14, 22:38 IST
condition of women after  year of independence in hindi

कल भारत को आजाद हुए 76 साल पूरे हो जाएंगे। इन 76 सालों में भारत ने कई मुकाम हासिल किए हैं। इन मुकामों को हासिल करने में देश के हर नागरिक की हिस्सेदारी रही है। इनमें महिला और पुरुषों दोनों शामिल हैं। भारत में कल्पना चावल से लेकर रानी लक्ष्मीबाई जैसी कई सशक्त नारियां रही हैं, लेकिन इनके बावजूद भी आज भी महिलाओं के साथ हर स्तर पर दुर्व्यवहार किया जाता है।

हरजिंदगी अपनी खास मुहिम 'आजाद भारत आजाद नारी' के तहत हमने कुछ एक्सपर्ट से बातचीत है, जिसमें उन्होंने 76 साल बाद महिलाओं के इस दयनीय स्थिती का कारण बताया है।

क्यों आज भी घर में पहली लड़की होने पर परिवार को पूरा नहीं माना जाता है?

सोशलएक्टिविस्ट और दुलारी देवी फाउंडेशन की संस्थापक प्रीति पांडे जी से हमने यह सवाल पूछा, जिस पर उन्होंने बताया कि आज भी जब किसी घर में बेटी होती है, तो परिवार को पूरा नहीं माना जाता है। लड़की होने के बावजूद दूसरे और तीसरे बच्चे की प्लानिंग की जाती है। यह मिथ है कि यह सोच सिर्फ अशिक्षित या ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों की है। ऐसा बिल्कुल नहीं है। शिक्षित लोग भी ऐसा ही सोचते हैं, लेकिन अगर उसी परिवार में पहला बच्चा लड़का होता है, तो वह फैमिली आगे बढ़ाने की नहीं सोचते हैं। यह एक सामाजिक समस्या है। जब तक 130 करोड़ की आबादी इसे सामाजिक तौर पर नहीं देखेंगे,तब तक यह समस्या खत्म नहीं हो सकती है।

कानून होने के बावजूद भी क्यों महिलाएं नहीं हैं आजाद?

why women in india is not free for their freedom

हमने सुबुही, जो पेशे से वकील और एक्टिविस्ट हैं, उनसे सवाल पूछा कि आखिर क्यों कानून होने के बावजूद भी क्यों महिलाएं आजाद नहीं है? इस पर उन्होंने हमें बताया कि देश कई चुनौतियों से जूझ रहा है। इस चुनौतियों से हम इसलिए नहीं लड़ पा रहे हैं, क्योंकि देश की आधी आबादी सशक्त और स्वतंत्र नहीं है। हर स्तर पर महिलाओं को प्रताड़ित किया जाता है। कहीं बच्चियों को कोख में मार दिया जाता है। अन्य जगह पैदा होने के बाद लड़की और लड़के में फर्क किया जाता है। पढ़ाई करने के बाद नौकरी करने के लिए मनाही है। शिक्षित और अशिक्षित हर महिला के साथ घरेलू हिंसा होती है। यहां तक की आर्थिक तौर पर सक्षम महिलाएं भी घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं। इसलिए हमें यह समझना होगा कि स्वतंत्रता कहीं न कहीं बंधी हुई है। यह मानासिक और मनोवैज्ञानिक तौर पर बंधी है। इस बंधन से केवल महिला ही अपने आप को बाहर निकाल सकती है। मनोवैज्ञानिक तौर पर महिला कहां बंध रही है? वह क्यों अपने आप को इतना कमजोर समझ रही है कि सवाल नहीं उठा पा रही है? महिला को अपनी आजादी की लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ेगी।

समाज में महिलाओं को क्यों नहीं दिया जाता सम्मान?

इस विषय पर हमने मिशिक सिंह से सवाल किया। वह पेशे से वकील हैं। उन्होंने बताया कि महिला को आज भी वह सम्मान नहीं दिया जाता है, जिसकी वह हकदार हैं। इसका कारण महिलाओं को व्यक्ति के रूप में नहीं देखा जाना है। महिलाओं के साथ रिश्ते जोड़ दिए गए हैं। इसका एक उदाहरण यह है कि समाज में पुरुषों को यह समझाया जाता है कि क्या वह आपकी बहन, भाभी या मां होती, तो आप ऐसा करते हैं।

गरीब से लेकर अमीर परिवारों तक में कहीं न कहीं महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है। हमारी परवरिश ही इस तरह से की गई है कि परिवार का उत्थान केवल महिला ही कर सकती है। महिलाओं को बताया जाता है कि अगर आप नाकामयाब हो रही हैं, तो यह आपकी गलती है। ऐसे में एक महिला हर चीज की नाकामी को अपनी खामी समझ लेती है। उन्हें लगता है कि उनके साथ हो रहे अत्याचार का कारण वह खुद हैं।

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महिलाओं की आजादी पर एक्सपर्ट रंजना कुमारी की राय

आजादी का मतलब बंधनों से मुक्ति, लेकिन ऐसे कई बंधन है जिन्होंने भारतीय नारी को बांधकर रखा है। सबसे बड़ी जिम्मेदारी है सामाजिकता की। हमारी सामाजिकता है, जिसमें महिलाओं को दूसरे दर्जे पर रखकर देखा जाता। इसका कारण हमारी सोच है। राजनीतिक तौर पर हमने मान लिया है कि हम एक लोकतंत्र है। हमारे यहां मानव अधिकार हैं। हमारे सविंधान में पुरुष-महिला में कोई अंतर नहीं है। इसके बावजूद परिवार और समाज की यह लड़कों को पढ़ाई से लेकर जॉब करने तक के लिए सपोर्ट करता है। वहीं, इस समाज में जब बात लड़की की पढ़ाई की आती है, तो कहा जाता है क्या करेगी पढ़-लिखकर? आज भी आजादी के 76 साल बाद माता-पिता सोचते हैं कि लड़की की शादी कर देंगे। वह हमारे घर से चली जाएगी, लड़की का क्या मतलब है पढ़ाई-लिखाई से? समाज की यही सोच लड़के को लड़का और लड़की को लड़की बनाता है। यानी, अधिकार का हक पुरुष के हाथ में देते हैं और स्त्री के हक से वह छिन लेते हैं।

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रिपोर्ट दर्ज करवाने के लिए महिलाओं को किन तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है?

यह बात हम सभी जानते हैं कि एक महिला को अपने साथ हुए अपराध के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाने में परेशानी आती है। इस विषय पर हमने सुबोही जी से बात की, उन्होंने हमें कहा कि पक्षपात समाज में बाद में आता है। यह पक्षपात सबसे पहले हमारे मन में आने लगता है। अगर किसी महिला के साथ कोई अपराध होता है, तो कोर्ट की जजमेंट से पहले वह खुद ही अपने आप को दोष देने लगती हैं। सबसे पहले वह अपने मन में अपने आप को अपराधी मानती हैं। उन्हें यह लगता है कि उन्ही के कारण यह हुआ है। जैसे शायद मैंने वह ड्रेस न पहनी होती तो मेरे साथ ऐसा न होता। महिलाओं को अपने आप को खराब का सर्टिफिकेट देना बंद करना चाहिए। अगर आपके साथ कुछ गलत हुआ है, तो जजमेंटल न हो।

कई बार पुलिस वाले भी महिलाओं के साथ सही तरीके से व्यवहार नहीं करते हैं। उनकी बॉडी लैंग्वेज ही बदल जाती है। क्या अपराध हुआ है, उस पर वह ताने देकर बात करते हुए पूछते हैं। वहां पर महिलाएं बता नहीं पाती हैं। मुझे लगता है कि हर स्तर पर जागरूकता की जरूरत है। कहीं न कहीं यह समाज और पुलिस वाले दुर्व्यवहार तब करते हैं, जब वह आपको दुर्बल समझते हैं। उसी व्यक्ति के बात करते का तरीका सशक्त और सक्षम महिला के साथ तुरंत बदल जाता है। इसलिए आत्मविश्वास बेहद जरूरी है।

कोर्ट में महिलाओं को किस तरह की परेशानियां होती हैं?

इस विषय पर मिशिका ने कहा कि जब एक महिला पुलिस के पास जाती है और वह लाचार नजर आती है, तो केस स्ट्रॉन्ग नहीं होता है। वहीं, अगर आप पढ़ी-लिखी, अंग्रेजी बोलने वाली और अच्छे कपड़े पहने हुए हैं, तो संभावना है कि आपकी बात सुनी जाए।

वहीं कोर्ट में यही चीज आपके खिलाफ हो जाती है, क्योंकि कानून ऐसे बनाए गए हैं कि अगर आप बेचारी और पीड़ित नहीं हैं, तब कह दिया जाता है कि यह पीड़ित की तरह व्यवहार नहीं कर रही हैं। कानून है, लेकिन कानून की समझ ज्यादातर लोगों को नहीं है। इसके लिए आपको शिक्षा नहीं मिल रही है, जो समस्या बन जाती है कि क्या मेरे साथ गलत हुआ है या नहीं हुआ है।

कैसे महिलाओं के प्रति हो रहे अपराधों को कम किया जा सकता है?

स्वाति मालीवाल डीसीडब्लू की चेयरपर्सन हैं। आजाद भारत आजाद नारी के इस अभियान में हमने स्वाति मालीवाल से बातचीत की। हमने स्वाति मालीवाल से पूछा ऐसी कौन-सी चीजें हैं, जिनसे अपराध कम या कंट्रोल हो सकते हैं? इस पर स्वाति जी ने कहा आजादी के 76 साल बाद भी महिलाएं पूरी तरह से आजाद नहीं हैं। अगर किसी महिला के साथ किसी तरह का कोई अपराध होता है, तो उस अपराधी को हर हाल में सजा हो और तुरंत सजा होनी चाहिए। प्रक्रिया द्वारा सजा होनी चाहिए। तब जाकर ऐसा सिस्टम बनेगा, जिससे लोगों को डर लगेगा। आज के समय में किसी को डर ही नहीं लगता है। लोगों के बीच यह सोच बन गई है कि वह किसी भी महिला और बच्ची के साथ कुछ भी कर सकते हैं और सिस्टम उनका कुछ नहीं कर पाएगा।

हमें सझना पड़ेगा कि जब बेटी को हम अपने आप ही बेटे से कम समझते हैं। हम परिवार से ही यह भेदभाव शुरू करते हैं, तब मुझे लगता है कि समाज के तौर पर हम असल में अपराध कर रहे हैं। इसके कारण बेटियों को यह लगता है कि वह लड़कों से कम है। परिवार और शिक्षा संस्थानों का अहम रोल होता है, जिसमें महिलाओं को असल मायनों में सशक्त महसूस कराया जा सके।

क्यों बेटियों की शिक्षा में निवेश करना व्यर्थ माना जाता है?

Why investing in girl child's education is considered futile

ज्यादातर मामलों में बेटियां पढ़ाई में अव्वल होती हैं। घर में भी यह देखने को मिलता है कि लड़की का रिजल्ट अच्छा आया है और भाई का नहीं। इसके बावजूद लड़की को पढ़ाई करने से रोका जाता है। कहा जाता है कि यह पढ़कर क्या करेगी? नौकरी करेगी, तो सुसराल जाकर कमाएगी। यानी उनकी सोच है कि लड़की की पढ़ाई में लगाया गया पैसा उन्हें वापस नहीं मिलेगा।

पीरियड्स के कारण क्यों लड़कियों को छोड़ना पड़ता है स्कूल

यह देखा गया है कि पीरियड्स होने पर सुविधा न मिलने के कारण लड़कियों को स्कूल छोड़ना पड़ता है। इस विषय पर भी हमने सुबुही से सवाल किया। इसमें उन्होंने बताया कि इसके खिलाफ वह खासतौर पर मुस्लिम समाज से जंग लड़ रही हैं। मुस्लिम पर्नसल लॉ में कहा जाता है कि लड़कियों की शादी की उम्र यौवन की आयु के बराबर है। इसका मतलब है कि जब लड़की को पीरियड्स होने शुरू हो जाएं, तब उनकी शादी की जा सकती है। हैदराबाद और तेलंगाना जैसी जगहों पर 12 साल की बच्चियों का निकाह 80 साल के शेख से करवाया जाता है। हमारे समाज में भी कुछ इस ही तरह की अवधारणा है, जिसके कारण छोटी उम्र में ही बच्चियों को शिक्षा से वंचित रखा जाता है।

बाल श्रम के लिए सामाजिक तौर पर हम क्या कर सकते हैं?

आज भी छोटी बच्चियां गैर अधिकृत क्षेत्र में काम करती हैं। इनमें किसी घर में खाना बनाने से लेकर दिहाड़ी मजदूरी तक शामिल हैं। इस पर मिशिका जी ने बताया कि ऐसा नहीं है कि इसके लिए कानून नहीं है। यहां तक कि सरकार द्वारा लाडली स्कीम तक चलाई जा रही है। फर्क यहां आता है कि क्या बच्चों को इनका लाभ मिल रहा है? कानून और स्किम में परेशानी नहीं है, लेकिन परेशानी यह है कि इनका लाभ कैसे जनता तक पहुंचाया जाए।

लीडरशीप के लिए क्यों महिलाओं को नहीं माना जाता सक्षम?

जब बात घर को संभालने की आती है, तो सभी की नजरें महिलाओं पर अटक जाती है, लेकिन वहीं देश चलाने के लिए महिलाओं को सक्षम नहीं माना जाता है। इस विषय पर हमने मेधा पाटकर जी से बात की है। उन्होंने बताया कि भारत में महिलाओं को देवी और दासी मानने की परंपरा रही है। मातृत्व के साथ कर्तृत्व जुड़ा होता है, लेकिन बात जब नेतृत्व की आती है, तो महिलाओं को समक्ष नहीं माना जाता है। पुरुष प्रधान समाज महिलाओं को नकारता है।

महिला प्रतिनिधित्व क्यों जरूरी है?

यह सामाजिक समस्या है। सोच में बदलाव लाने का समय है। शुरुआत माता-पिता से की जानी चाहिए। उन्हें यह सोचना चाहिए कि क्या पता पढ़ाई करने के बाद मेरी लड़की एसडीएम बन जाए। इससे अपराध भी कम होंगे। महिलाओं की भागीदारी हर स्तर पर जरूरी है।

उम्मीद है कि आपको हमारा यह आर्टिकल पसंद आया होगा। इसी तरह के अन्य आर्टिकल पढ़ने के लिए हमें कमेंट कर जरूर बताएं और जुड़े रहें हमारी वेबसाइट हरजिंदगी के साथ।

Image Credit:Freepik

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