हिंदुओं में प्रत्येक पर्व का अपना अलग महत्त्व है। इन्हीं व्रत और त्योहारों में से एक प्रमुख त्यौहार है अहोई अष्टमी का त्यौहार। यह पर्व करवा चौथ के चार दिन बाद यानी की कार्तिक महीने की अष्ठमी तिथि को मनाया जाता है। इस पर्व का विशेष महत्त्व है और यह संतान की अच्छे स्वास्थ्य की कामना हेतु मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को माताएं अपनी संतान की दीर्घायु व उज्जवल भविष्य की कामना के लिए अहोई अष्टमी का व्रत करती हैं।
इस व्रत में माताएं निर्जला व्रत रखकर संतान के अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हैं। मान्यता है कि यदि निःसंतान स्त्रियां यह व्रत रखती हैं तो अहोई माता जल्दी ही उनकी संतान प्राप्ति की इच्छा को पूरा करती हैं। आइए प्रख्यात ज्योतिर्विद पं रमेश भोजराज द्विवेदी जी से जानें इस साल कब मन जाएगा अहोई अष्टमी का त्यौहार, पूजा की सही विधि और महत्त्व।
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इस व्रत में माताएं पूरे दिन निर्जला उपवास करने के बाद शाम को तारों की छांव में अर्घ्य देकर व्रत का पारण करती हैं। ऐसी मान्यता है कि ये व्रत विशेषतौर पर संतान के लिए किया जाता है। यदि किसी स्त्री को संतान प्राप्ति की कामना है तो इस दिन पूजा व्रत और उपवास करके अहोई माता का पूजन कर सकती है। अहोई अष्टमी के दिन महिलाएं अपनी संयतां के कल्याण के लिए निर्जला व्रत करती हैं। रात को चंद्रमा या तारों को देखने के बाद ही व्रत खोला जाता है।( करवा चौथ व्रत की पूर्ण कथा )
प्राचीन समय में एक नगर में एक साहूकार रहा करता था जिसके सात लड़के थे। दिवाली से पूर्व साहूकार की पत्नी घर की सफाई और लीपा-पोती के लिए मिट्टी लेने गई और कुदाल से मिट्टी खोदने लगी। उसी जगह एक सेही जानवर की मांद थी। साहूकार की पत्नी के हाथ से कुदाल सेही के बच्चे को लग गई जिससे वह बच्चा मर गया। साहूकार की पत्नी को इससे काफी दुख पहुंचा और वह पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई। इस घटना के कुछ दिनों बाद साहूकार के बेटे की भी मौत हो गई। फिर अचानक दूसरे, तीसरे और साल भर में उसके सातों पुत्र मर गए। एक दिन उसने अपने आस-पड़ोस की महिलाओं को विलाप करते हुए बताया कि उसने जान-बूझकर कभी भी कोई पाप नहीं किया है, लेकिन एक बार खदान में मिट्टी खोदते समय अनजाने में उससे एक सेही के बच्चे की हत्या हो गई थी और उसके बाद उसके सातों बेटों की मौत हो गई। सभी औरतों ने साहूकार की पत्नी को कहा कि यदि तुम कार्तिक महीने की अष्टमी तिथि को भगवती पार्वती का स्मरण करके और उनकी शरण लेकर सेही और उसके बच्चे का चित्र बनाकर उनकी पूजा-अर्चना करो और क्षमा मांगो, ईश्वर की कृपा से तुम्हारा पाप दूर होगा। साहूकार की पत्नी ने उनकी बात मानकर कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को व्रत रखककर क्षमा-याचना की। वह हर साल नियमित रूप से ऐसा करने लगी, बाद में उसे सात पुत्रों की प्राप्ति हुई। तब से ये कहा जाता है कि कार्तिक मास की अष्टमी तिथि को व्रत उपवास करने से संतान को दीर्घाऊ मिलती है और कल्याण होता है।
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इस प्रकार अहोई माता की पूजा करने से संतान का स्वास्थ्य ठीक बना रहता है और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
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Image Credit: freepik and pintrest
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