मनु स्मृति का एक श्लोक है "यत्र नर्यस्तु पूज्यन्ते रमंते तत्र देवता, यत्रितास्तु न पूज्यन्ते सर्वस्तत्रफलाः क्रियाः।" यानी जहां नारियों की पूजा होती है, वहां देवताओं का निवास होता है और जहां नारियों का अनादर होता है, वहां सारे काम निष्फल होते हैं। हमारी संस्कृति में हमेशा से महिलाओं को पूजनीय माना गया है। भले ही आज भी समाज के कई हिस्सों में महिलाएं भेदभाव का शिकार हैं। लेकिन, सच यह भी है कि महिलाएं समाज की नींव रखने में एक अहम भूमिका निभाती हैं और उनके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। आचार्य प्रशांत का भी यही मानना है। जी हां, हाल ही में इंडियन फिलॉस्फर और ऑथर आचार्य प्रशांत, जागरण मंथन का हिस्सा बने। यहां उन्होंने राष्ट्र निर्माण में महिलाओं की भूमिका, मदरहुड, समाज में महिलाओं की स्थिति और करियर से जुड़े कई मुद्दों पर खुलकर बात की। चलिए, आपको बताते हैं पॉलिटिकल एडिटर स्मृति रस्तोगी के साथ आचार्य प्रशांत की बातचीत के खास अंश।
आचार्य प्रशांत ने बातचीत की शुरुआत में ही महिलाओं की भूमिका को लेकर एक बड़ी बात कही। उन्होंने साफ शब्दों में कहा, "स्त्री को सताकर कोई पुरुष सुखी नहीं रह सकता।" उनका मानना है कि राष्ट्र निर्माण में महिलाओं को अहम भूमिका है और उन्हें उनका दर्जा और सम्मान मिलना ही चाहिए। महिलाओं के सुसाइड के आंकड़ों और महिलाएं के स्ट्रगल पर भी यह बातचीत आगे बढ़ी।
महिलाएं मैटरनिटी लीव के बाद ऑफिस आने और अपने करियर से जुड़े कई चैलेंजेस फेस करती हैं। मसलन अगर महिलाएं दो साल का ब्रेक लेती हैं, तो उसके बाद वापिस काम पर लौटने और उसी ओहदे को हासिल करने में उन्हें मुश्किल आती है। इस बारे में आचार्य का कहना है कि मां का अहम रोल बच्चों को सिखाने और उसके जीवन को बनाने में होता है। अक्सर लोगों को लगता है कि अगर मां कामकाज छोड़कर घर पर बैठ जाएगी, तो शायद वह बच्चे का अच्छे से पालन-पोषण कर पाएगी। लेकिन, ऐसा नहीं है। असल में अगर मां ही खुद आश्रित हो जाएगी, दुनिया में निकलना और चीजों को जानना छोड़ देगी, तो फिर वह बच्चे को क्या सिखा पाएगी? ऐसे में मां के लिए काम और बच्चे के प्रति प्रेम को साथ लेकर चलना जरूरी है और इसके लिए पहसे से प्लानिंग करनी होगी। इस समीकरण को बैठाने में बच्चे के पिता और जहां महिला नौकरी कर रही है, उनकी भी अहम भूमिका रहेगी। महिलाओं को वर्क फ्रॉम होम ऑप्शन्स दिए जा सकते हैं।
आचार्य ने बातचीत के दौरान इस बात का भी जिक्र किया कि महिलाएं काम में अपना शत प्रतिशत देती हैं। वे पूरे मन और लगन से काम करती हैं। ऐसे में जिस कम्पनी में वे काम कर रही हैं, उनका भी फर्ज है कि वे उन्हें मातृत्व की जिम्मेदारी निभाने का समय दें। मैटरनिटी लीव के बाद कुछ वक्त वे घर से काम कर सकें और इसे अलावा, वर्कप्लेस पर बच्चों को लेकर आ पाना और उनकी देखभाल के लिए इंतजार होना भी एक सराहनीय कदम हो सकता है।
स्मृति ने 2021 के आंकड़ों के आधार पर महिलाओं के सुसाइड के मुद्दे को उठाया। उन्होंने बताया कि 2021 में 10,000 किसानों ने सुसाइड किया। वही, 45,000 से अधिक महिलाओं ने सुसाइड किया। आचार्य ने इस बारे में कहा कि अक्सर पुरुषों को अगर घर में टॉक्सिक वातावरण लगता है, तो वे घर छोड़ देते हैं। लेकिन, महिलाएं घर सिर्फ तब छोड़ती हैं जब उनकी शादी हो जाती है या वे कहीं गायब हो जाएं। कई महिलाएं अपने पति के घर में सुसाइड करती हैं। उन्होंने कहा कि सबसे अजीब बात ये है कि इन आंकड़ों को देखकर भी हम आंखें मूंद लेते हैं और इन्हें नजरअंदाज करते रहते हैं। उन्होंने कहा जैसे किसी भी पुरुष के लिए पोषण, शिक्षा और आध्यात्म जरूरी है। ठीक वैसे ही लड़कियों के लिए भी है। इसमें कुछ अलग से समझने जैसा या अनोखा नहीं है। उन्होंने कहा कि इसमें नारीवाद जैसा कुछ नहीं है, महिलाओं को समान हक मिलने चाहिए और जब ऐसा होने लगेगा तो हमें अपने आप बदलाव दिखेगा।
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आचार्य ने महिलाओं के आगे बढ़ने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि आज हम चीन से मुकाबला कर रहे हैं, अर्थव्यवस्था के मामले में चीन की बराबरी करना चाहते हैं, लेकिन ये हमारे लिए बहुत मुश्किल है क्योंकि चीन में 60 प्रतिशत से ज्यादा महिलाएं काम कर रही हैं, जिंदगी अपनी शर्तों पर जी रही हैं। वहीं, हमारे देश में सिर्फ 30 प्रतिशत से भी कम महिलाएं काम कर रही हैं। ऐसे में हम कैसे चीन का मुकाबला कर पाएंगे। किसी भी राष्ट्र को बड़ा बनने और आगे आने के लिए महिलाओं का काम करना बहुत जरूरी है।
आचार्य का मानना है कि आज भी कई जगहों पर यहां तक कि अच्छी पढ़ी-लिखी महिलाओं के बीच भी यह सोच बनी हुई है कि महिलाएं नौकरी तभी करती हैं, जब उनका पति घर को चलाने में सक्षम नहीं होता है यानी अगर घर में पैसे की कमी है, तो महिला नौकरी करेगी वरना नहीं करेगी। असल में महिलाओं को इस सोच को बदलन चाहिए। इसी सोच की वजह से काफी सारी कम्पनीज भी महिलाओं को बड़े रोल नहीं दे पाती हैं। असल में काम करना या अपनी पहचान बनाना, महिलाओं की सोच में होना चाहिए।
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