ऑनलाइन शॉपिंग - क्या करें जब रेट अलग-अलग दिखे

ऑनलाइन खरीदारी में रेट को लेकर जब भी कंफ्यून हो तो जहां सामान सस्ता मिले वहीं से खरीद लेना चाहिए क्योंकि सामान की गारंटी तो कंपनी देती है।

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मुझे अपने बच्चे के लिए टिफिन बॉक्स चाहिए था जिसमें खाना गर्म रहे। मैंने कई ऑनलाइन कंपनियों की वेबसाइट पर जाकर खोजना शुरु किया। पहले तो सामान खोजने में कुछ समय लगा, लेकिन जब रेट देखा तो मैं फिर कंफ्यूज हो गया। आखिर एक ही सामान अलग-अलग वेबसाइट पर अलग-अलग रेट पर क्यों है। फिर मैंने यू-ट्यूब की मदद ली। उसने मुझे ना केवल टिफिन खोजने में मदद मिली बल्कि सस्ते रेट वाले टिफिन बॉक्स के बारे में बताया। लेकिन प्रश्न यहां भी वही था आखिर कीमत में फर्क क्यों?

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अपना कंफ्यूजन को दूर करने के लिए मैंने अपने दोस्त को फोन किया, जो कभी ई-कॉमर्स कंपनी में काम करता था। उसने मुझे जो बातें बताई वह आप तक पहुंचाना जरूरी है, ताकि आप भी समझ सकें कि आखिर एक ही वस्तु की कीमत अलग-अलग वेबसाइट पर अलग-अलग क्यों होती है।

सेल बढ़ाने के लिए प्रॉफिट कम रखते हैं सैलर्स

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देश में अमेज़न, फ्लिपकार्ट, क्लब फैक्टी, शॉपक्लूज़ जैसी कई ई-कॉमर्स कंपनियां हैं। इनकी वेबसाइट पर अपना सामान डालने के लिए सैलर्स को रिजस्टर्ड करना होता है जिसका ये कंपनियां चार्ज लेती हैं। जब सैलर्स किसी चीज की कीमत तय करता है तो वह इस तरह के चार्जेज को भी ध्यान में रखता है। सैलर्स चार्ज से लेकर अन्य खर्चों को घटाकर सामान की कीमत तय करता है। हर सैलर्स का यह खर्च अलग-अलग आता है जिस कारण यह रेट में फर्क नज़र आता है। कई बार ई-कॉमर्स कंपनियां सेल्स ऑफर चलाती हैं। इस दौरान सैलर्स को बहुत कम फिक्स चार्ज देना होता है जिससे सैलर्स का मुनाफा ज्यादा हो जाता है जिसका फायदा वह ग्राहकों को दे देती है

सैलर्स ने कितना सामान बेचा, इस पर भी ई-कॉमर्स कंपनियां उसका कमीशन तय करती हैं। आमतौर पर यह सैलर्स के कुल सेल्स या नेट सेल्स की वेल्यू पर तय होता है। जिनका नेट सेल्स अच्छा होता है उसको ई-कॉमर्स कंपनी ज्यादा कमीशन देती हैं. इसी कमीशन से होने वाली कमाई का एक हिस्सा सैलर्स ग्राहकों को दे देते हैं। यह भी सामान के अलग-अलग रेट के पीछे कारण होता है। कई बार सैलर्स के सामने अपने नेट सेल्स को बढ़ाने में दिक्कत आती है जिस कारण वह कमीशन कम कर सामान को सस्ते रेट पर दिखाता है।

कहां से खरीदें सामान

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हर कोई इस तरह के बिजनेस में पैसा बनाना चाहता है फिर चाहे वह खरीददार ही क्यों ना हो। खरीददार को जिस वेबसाइट पर कम कीमत में सामान मिलता है वहीं से खरीद लेता है। वैसे भी सैलर्स कोई सामान नहीं बनाता, सामान तो कंपनी बनाती है। गारंटी भी कंपनी देती है। इसलिए जहां कम रेट में सामान मिलता हो वहीं से खरीद लेना चाहिए। खरीददार को यह भी देखना चाहिए कि क्या कोई डिलीवरी चार्ज तो नहीं है। जहां डिलीवरी चार्ज नहीं हो वहीं से खरीदें।

वायर्स को सामान उन ई-कॉमर्स वेबसाइट से खरीदने चाहिए जो एक ही तरह के सामान के लिए पॉपुलर हों। या फिर ऐसी वेबसाइट से खरीदना चाहिए जिनके यहां अच्छी क्वालिटी का सामान मिलता हो। क्लब फैक्टरी इसी तरह की एक बेवसाइट है। यहां सामान सस्ते होने के पीछे कारण अलग है। यहां सैलर्स को कोई कमीशन और फिक्स चार्ज नहीं देना होता है जिसे सैलर्स का प्रॉफिट ज्यादा होता है, जिसका फायदा वो अपने खरीददार को देते हैं और वायर्स को सामान सस्ते में मिल जाता है।

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यही नीति बाकी वेबसाइट भी अपनाने लगे हैं। यही कारण है कि अलग-अलग ई-कॉमर्स वेबसाइट अपना कमीशन कम करके सैलर्स को कमाने का मौका दे रहे हैं और सैलर्स यही प्रॉफिट ग्राहक को दे रहे हैं। जिससे अलग-अलग वेबासाइट पर अलग-अलग रेट देखने को मिलता है।

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