भारत की राजधानी दिल्ली कई मायनों में खास है। देश की राजनीतिक गतिविधियों के साथ ही दिल्ली ट्रवल लवर्स की भी फेवरेट है। यहां घूमने का क्रेज न केवल देशी बल्कि विदेशियों में भी खूब है। इस क्रेज की वजह केवल दिल्ली का कैपिटल होना नहीं है बल्कि एतिहासिक होना भी है। जी हां, दिल्ली एक ऐसा शहर है जो इतिहास की कई कहानियों को अपने दिल में समेटे है। भारत के इतिहास में दिल्ली एक ऐसी महत्वपूर्ण जगह है, जिसने कई बार भारत को वर्ल्ड मैप पर बनते बिगड़ते देखा है। दिल्ली ही वह शहर है जहां से भारत शुरू भी होता है और खत्म भी। यह एक ऐसा शहर है, जिसे जीतने के लिए सैकड़ों लड़ाइयां हुई हैं, लाखों लोग जान गवाई है और यहां के तख-तो-ताज पर कई राजाओं ने बैठ कर अपनी हुकूमत चलाई है। समय के साथ दिल्ली में कई बदलाव आए। आज दिल्ली को हर तौर पर एक विकसित शहरो की सुची में गिना जाता है। मगर इतिहास की कई निशानियां दिल्ली में आज भी मौजूद हैं, जो इस बात की गवाही देती हैं कि यह शहर कैसे बना।
वैसे दिल्ली की स्थापना का संदर्भ महाभारत में भी मिलता है। कहा जाता है कि दिल्ली को हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र ने बसाया था। उस वक्त दिल्ली को खांडवप्रस्थ के नाम से जाना जाता था। यहां जंगल ही जंगल होते थे। पांडव राजकुमार युधिष्ठिर ने इन जंगलों को साफ कराया और यहां एक सुंदर नगर बसाया जिसका नाम इंद्रप्रस्थ रखा गया। तब से दिल्ली कई बार बसाई और उजाड़ी गई। दिलचस्प बात तो यह है कि जिस दिल्ली को आज हम देखते हैं उसमें 7 शहर छुपे हुए हैं। आज हम उन्हीं सात शहरों के बारे में आपको बताएंगे।
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ऐसा माना जाता है कि दिल्ली को तोमर राजपूतों ने खोजा था और बसाया था। उस वक्त दुश्मनों से शहर को बचाने के लिए और रक्षा कार्यों को एक स्थान से संचालित करने के लिए एक किला बनवाया गया। यह किला तोमर राजा, अनंगपाल ने बनवाया था और इसका नाम लाल कोट रखा गया । बाद में पृथ्वीराज चौहान के पूर्वजों द्वारा तोमर वशं के राजा को एक लड़ाई में हरा देने के बाद इस किले पर चौहानों का कब्जा हो गया। बाद में पृथ्वीराज चौहान ने अपने शासन काल में अपने शहर राय पिथौरा तक इस किले का विस्तार कराया तब इस इस किले को लाल कोट राय पिथौरा कहा जाता है। इस किले का बहुत एतिहासिक महत्व है। भारत में मुस्लिम शासकों के आक्रमण करने पर पृथ्वीराज चौहान इस किले से ही लड़ाई लड़ी। आज भी इस किले के अवशेषों को कुतुब मीनार के आसपास देखा जा सकता है। आज पृथवीराज चौहान के राय पिथौरा शहर को दिल्ली में ही शामिल कर लिया गया है।
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कभी हिंदुओं राजों की जागीर रहे मेहरौली में कई मंदिर हुआ करते थे। मगर वर्ष 1192 में मोहम्मद गौरी के आक्रमण के बाद यह शहर तबहा हो गया। चौहानों के नामोनिशान के साथा ही यहां के सभी मंदिरों को भ ध्वस्त कर दिया गया। तराइन की दूसरी लड़ाई में मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया और भारत की जिम्मेदारी अपनी गुलाम कुतुबद्दीन ऐबक को सौंप दी। चौहानों द्वारा बसाए गए इस शहर को फिर से बसाया गया। मंदिरों की जगह इस्लामिक इमारते बनवाई गईं। यहां आज भी कई मकबरे और खंडहर मौजूद हैं, जो यह दर्शाता है कि किसी समय में महरौली सुंदर और संपन्न शहर था। 1206 में मोहम्मद गौर की मृत्यु की बाद जब कुतुबद्दीन ऐबक को भारत का राजा घोषित किया गया तो राजधानी के तौर पर मेहरौली को ही उसने चुना। भारत में गुलाम वशं की शुरुआत हुई कुतुबद्दीन भारत पर राज करने वाला पहला मुस्लिम शासक बन गया।
इस जगह को आज हौज खास के नाम से जाना जाता है। मगर एक समय था जब सीरी एक शहर के रूप में विकसित हो रहा था। इस शहर को बनाने वाला अलाउद्दीन खिलजी था। अलाउद्दीन ने इसी शहर को अपनी राजधानी बनाया था। हालाकि आज इस स्थान पर किले के खंडर ही बचे हैं। मगर किले का विस्तृत रूप बताता है कि यहा कितना विशाल और सुंदर होगा। आज इस स्थान पर दिल्ली का सबसे पौश एरिया और मार्केट है।
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वर्ष1320 में दिल्ली के राजसिंघासन पर जब ग्यासुद्दीन तुगलक बैठा तो उसने अपना एक खुद का नगर बसाया और उसका नाम तुगलकाबाद रखा। इतिहास बताता है कि तुगलक काल में कई इमारतें बनाई गईं मगर अब इस जगह एक भी इमारत ऐसी नहीं बची जिससे उस काल की कला या निशानी के तौर पर संभाल कर रखा जा सके। अब यहां इमारतों के अवेशेष ही बचे हैं। तुगलकाबाद के किले के मुख्य प्रवेश द्वार के पास ही गियासुद्दीन तुगलक का मकबरा भी स्थापित है, जो लाल बलुई पत्थर से बनाया गया था। इसके अलावा तुगलक काल की निशानी के तौर पर एक सड़क भी यहां मौजूद है। यह सड़क नई दिल्ली को को ग्रैंड ट्रंक रोड से जोडती है। इस रोड को आज मेहरुली-बदरपुर रोड के नाम से भी जाना जाता है।
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1360 में दिल्ली के पांचवे शहर के रूप में फिरोजाबाद की स्थापना फिरोज शाह तुगलक ने की थी। फिरोज शाह ने इस शहर अपनी राजधानी बना कर यहां एक किले का निर्माण कराया। यह किला यमुना नदी के तट पर बना है यहां एक जामा मस्जिद और अशोक स्तम्भ के बचे कुचे अवशेष भी देखने को मिलते हैं। वैसे यह किला अब पूरती तरह से खंडहर बन चुका है मगर जामा मस्जिद में हर रोज लोग नमाज पढ़ने आते हैं। दिल्ली के इंटरनेशनल क्रिकेट ग्राउंड का नाम भी फिरोज शाह कोटला रखा गया है। यह ग्राउंड किले के नजदीक ही है।
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1540 में शेर शाह सूरी ने मुगल शासक हुमायू को हरा कर दिल्ली के तख तो ताज पर अपना कब्जा कर लिया। उस वक्त शेर शाह से अपने लिए एक नया नगर बसाया और उसका नाम शेरगढ़ रखा। यहां उसने एक विशाल किला भी बनवाया जिसे आज दिल्ली के पुराने किले के तौर पर जाना जाता है। शेरशाह इस किले का निर्माण पूरा करा भी नहीं सका था कि मुगल सेना ने उसे दोबारा हरा दिया और किले के निमार्ण को अधूरा छोड़ उसे वहां से भागना पड़ा। इसके बाद इस किले को हुमायूं ने ही पूरा बनवाया और यहीं रहने लगा। कहते हैं हुमायुं को पढ़ने का बहुत शौक था। इस किले में उसने एक लाइब्रेरी का निर्माण भी करवाया था। एक दिन इसी लाइब्रेरी की सीढि़यों से गिर कर उसे ऐसी चोट लगी कि वो चलने फिरने में लाचार हो गया और बहुत ही कम उम्र में उसे अपने बेटे अकबर को राजपाट सौपना पड़ा।
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यह दिल्ली का सांतवा शहर है। इसे मुगल शासक शाहजहां ने बसाया था। आपको जानकर हैरानी होगी कि यही शहर मुगलों के पतन का कारण भी बना था। इस शहर में शाहजहां द्वारा लालकिला बनवाया गया था। मुगल वंश के अंतिम शासक इसी किले में रहे हैं। इसके बाद इस किले पर अंग्रेीज हुकुमत का कब्जा हो गया। इस किले के सामने बसे इलाके को शाहजहांबाद कहा जाता है। कहते हैं कि शाहजहां चाहता था कि व्यपारियों को एक ऐसा बाजार मिले जहां वह इकट्ठा होकर अपने सामान की बिक्र कर सकें। इस लिए उसने इस शहर का निर्माण कराया था। आज इस इलाके को चांदनी चौक, चावड़ी बाजार और सदर बाजार के तौर पर लोग जानते हैं।
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